Sonipat : प्रदेश में सबसे ज्यादा केएमपी का टोल, अधिग्रहण में दर्जा सामान्य रोड का भी नहीं

Sonipat : प्रदेश में सबसे ज्यादा केएमपी का टोल, अधिग्रहण में दर्जा सामान्य रोड का भी नहीं
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  • वापसी के समय भी पूरा टोल वसूल रहा केएमपी
  • टोल के मामले में टॉप तो किसानों के मामले में निम्नतर है केएमपी एक्सप्रेस-वे

Sonipat : इन दिनों कुंडली मानेसर पलवल एक्सप्रेस वे (केएमपी) के साथ-साथ आर्बिटल रेल कोरिडोर बनाने के लिए भूमि का अधिग्रहण हो चुका है। लेकिन बहुत से किसानों ने मुआवजा नहीं उठाया है, क्योंकि केएमपी एक्सप्रेस वे को मुआवजा तय करते समय किसी भी श्रेणी का मार्ग मानने से हरियाणा सरकार (Haryana Government) ने इंकार कर दिया। अगर इसे हाईवे का दर्जा दिया जाता है तो सभी किसानों को दोगुने से अधिक मुआजवा मिलेगा। इसी मांग को ध्यान में रखते हुए किसान धरने पर बैठे हुए हैं।

एक तरफ तो प्रदेश सरकार केएमपी को न तो एनएच मान रही है और ना ही एक्सप्रेस वे। लेकिन टोल के मामले में केएमपी का दर्जा नैशनल हाईवे से ज्यादा हैं। टोल वसूली भी ज्यादा है और 24 घंटे में वाहन की वापसी पर भी आधे की बजाय पूरा टोल वसूला जाता है। इस मामले में केएमपी को स्पेशल कटेगरी में रखा गया है। इसका असर 5 जिलों के किसानों पर पड़ रहा है । जिसमें सोनीपत, झज्जर, गुड़गांव, नूंह व पलवल शामिल हैं।

ऐसे समझे केएमपी पर टोल वसूली

माना आप कुंडली से वाया मानेसर होते हुए पलवल तक 135 किलोमीटर दूरी तय करते हैं तो आपको 1.73 रुपए प्रति किलोमीटर के मुताबिक करीब 235 रुपए की राशि देनी होती है। लेकिन अगर 24 घंटे की अवधि में वापस कुंडली आ जाते हैं तो आपसे 118 रुपए की बजाय पूरा टोल 235 रुपए ही वसूला जाता है। कहने का मतलब ये है कि वाहन चालकों को कोई रियायत नहीं है। जबकि अगर सोनीपत से अंबाला या दिल्ली से आगरा या कहीं भी नैशनल हाईवे पर जाते हैं तो 24 घंटे में वापसी के दौरान आधा टोल वसूला जाता है। माना जाते समय आपने 100 रुपए टोल दिए तो 24 घंटे में वापसी के दौरान आपसे 50 रुपए वसूले जाते है। इस हिसाब से केएमपी का दर्जा ज्यादा होना चाहिए। लेकिन बात किसानों की भूमि अधिग्रहण की आती है तो केएमपी को सामान्य मार्ग का दर्जा दिया जाता है, ताकि किसानों को ज्यादा मुआवजा ना देना पड़े। अगर बात केएमपी के साथ-साथ प्रस्तावित रेल ऑर्बिटल कोरिडोर भूमि अधिग्रहण में जिन किसानों की भूमि अधिग्रहण हुई है उन किसानों को लाभ देने की आती है तो यहां पर प्रदेश सरकार पीछे हट रही है, और कह रही है केएमपी का दर्जा नेशनल हाईवे से ज्यादा या नेशनल हाईवे के बराबर नहीं है। केएमपी का दर्जा नेशनल हाईवे से कम है। इसे केवल स्टेट रोड कह सकते हैं। अगर केएमपी का दर्जा स्टेट हाईवे की तर्ज पर है तो प्रदेश में स्टेट हाईवे पर कोई भी टोल टैक्स नहीं है, तो यहां केएमपी पर रोड टोल टैक्स क्यों है? अगर केएमपी का दर्जा नेशनल हाईवे से कम है तो यहां नेशनल हाईवे से टोल ज्यादा क्यों है?

किसानों को गुमराह कर रही सरकार

किसान नेता रमेश दलाल ने कहा कि प्रदेश की भाजपा सरकार किसानों को गुमराह कर रही है, जबकि किसानों को रेल अधिग्रहण का मुआवजा केएमपी को नेशनल हाईवे मानते हुए जारी किया जाना उचित है, क्योंकि केएमपी पर सभी रूल नेशनल हाईवे की तर्ज पर हैं और टैक्स भी ज्यादा लिया जा रहा है। लेकिन बात किसानों के लाभ की आती है तो सरकार इससे पीछे हट जाती है । किसानों ने चंडीगढ़ जाकर मुख्यमंत्री से भी मुलाकात की थी। इसके बावजूद भूमि अधिग्रहण मामले में मुआवजा बढ़ाने की मांग को लेकर अभी सहमति नहीं बनी है । किसानों की मांग है कि जल्द ही किसानों को मुआवजा बढ़ा कर दिया जाए, ताकि किसान कहीं दूसरी जगह अपनी जमीन खरीद सके। केएमपी के साथ-साथ व्यवसायिक रेट 5 करोड से 7 करोड रुपए प्रति एकड़ हो चुका है।

केएमपी पर आने-जाने बराबर लगता है टोल

केएमपी एचएसआईआईडीसी के मैनेजर आरपी वशिष्ठ ने बताया कि कुंडली मानेसर पलवल एक्सप्रेसवे पर आना और जाना दोनों का टोल बराबर लगता है। वापसी के दौरान कोई रियायत नहीं है । जबकि नेशनल हाईवे पर छूट निर्धारित है। जिसके तहत वापसी में आधा टोल देना होता है। केएमपी को अभी रिकॉर्ड में नेशनल हाईवे के समकक्ष या कोई विशेष दर्जा नहीं है । जैसे ही केएमपी को विशेष दर्जा मिलेगा तो साइन बोर्ड लगाकर सूचना जारी कर दी जाएगी।

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