Sonipat : 1550 रुपये प्रति बंदर होता था भुगतान, फिर भी करते थे परेशान

- नगर निगम द्वारा बंदर पकड़ने के लिए दिया गया था टेंडर
- कलेसर के जंगलों में छोड़कर आना था बंदरों को
- 500 के करीब बंदर पकड़ चुकी थी हरिशचंद्र ठेकेदार की एजेंसी
- स्वर्णजयंती पार्क के पास बंदरों के शव फेंकने के बाद हुआ था हंगामा
Sonipat : बंदर प्राकृतिक रूप से शरारती जानवर होता है। वैसे भी धार्मिक दृष्टिकोण से बंदरों को भगवान राम की सेना और भगवान हनुमान का स्वरूप भी बताया जाता है। इसके बावजूद बंदरों पर अत्याचार होता है तो आम आदमी का परेशान होना स्वाभाविक है। मंगलवार देर शाम स्वर्णजयंती पार्क के पास पांच बंदरों के शव फेंके जाने के बाद हंगामा खड़ा हो गया। जिसके बाद नगर निगम (Municipal council) द्वारा बंदर पकड़ने का जो ठेका दिया गया है, उस पर सवाल खड़े हो रहे हैं। आरोप लगाए गए हैं कि इन बंदरों को अमानवीय तरीके से रखा जाता था। एक पिंजरे में 10-15 बंदरों को ठूस दिया जाता था और ना ही खाने-पीने के लिए कुछ नहीं दिया जाता था।
ऐसे में निगम अफसरों की नाकामी और ठेकेदार की कार्यप्रणाली स्पष्ट तौर पर पता चलती है। कमाल की बात ये है कि नगर निगम इन बंदरों को पकड़ने से लेकर डाइट और जंगलों तक छोड़कर आने तक का भुगतान करता है। इसके बावजूद ठेकेदार द्वारा ज्यादा बजत के लालच में जिस तरीके से बंदरों को रखा गया था, उसकी शहर भर में चर्चा है। नगर निगम ने इस मामले में कार्रवाई करते हुए बंदर पकड़ने का ठेका चला रही एजेंसी का टेंडर रद्द करते हुए एजेंसी को ब्लैकलिस्ट कर दिया है। इसके अलावा एजेंसी की सिक्योरिटी राशि भी जब्त कर ली गई है। वहीं मामले की जांच के लिए एक कमेटी का भी गठन किया गया है।
1550 रुपये था हर एक बंदर का हिस्सा
शहर में बंदरों का आतंक बढ़ता देख नगर निगम ने बंदर पकड़ने का ठेका दिया था। द वेलकेम को.ओ. लेबर कंस्ट्रक्शन सोसाइटी लिमिटेड सोनीपत को टेंडर दिया गया था। इसके तहत एजेंसी को बंदर पकड़ने और इन्हें खाने-पिलाने व कलेसर के जंगलों तक छोड़कर आने का भुगतान किया जाता था। 1550 रुपये प्रति बंदर के हिसाब से पेमेंट की जाती थी। एजेंसी द्वारा अब तक दो बार अभियान चलाकर लगभग 500 बंदरों को पकड़ा जा चुका था। इन बंदरों को पकड़कर अंबेडकर कॉलोनी में रखा जा रहा था।
क्या थी व्यवस्था और क्या होनी चाहिए
टेंडर की शर्तों के अनुसार बंदरों को 3 या 4 दिनों के बाद जंगल में छोड़कर आना अनिवार्य किया गया था। इसके अलावा बंदरों के खाने-पीने, उचित रख-रखाव, बीमार होने पर चिकित्सक की व्यवस्था का जिम्मा भी एजेंसी पर था। इन सबके उलट एजेंसी द्वारा बंदरों को कई-कई दिन सोनीपत में ही रखा जा रहा था। एक पिंजरें में 10-15 बंदरों को ठूस दिया जाता था और खाने-पीने के लिए ना के बराबर सामान दिया जाता था। ये ही नहीं बीमार बंदरों के लिए किसी चिकित्सक की व्यवस्था भी नहीं की गई थी।
जांच कमेटी गठित, ब्लैकलिस्ट हुई कंपनी
मंगलवार देर रात मामला उजागर होने के बाद नगर निगम ने इस मामले में कार्रवाई करते हुए द वेलकेम को.ओ. लेबर कंस्ट्रक्शन सोसाइटी लिमिटेड सोनीपत का बंदर पकड़ने का टेंडर रद्द कर दिया है। इसके साथ ही कंपनी की सिक्योरिटी राशि को जब्त करते हुए कंपनी को ब्लैकलिस्ट कर दिया गया है। वहीं इस पूरे मामले की जांच के लिए संयुक्त आयुक्त की अध्यक्षता में एक जांच कमेटी का गठन किया गया है। जांच कमेटी की रिपोर्ट के आधार पर आगामी कार्रवाई की जाएगी। इसके अलावा ठेकेदार के खिलाफ पुलिस में पशु कू्ररता अधिनियम के तहत एफआईआर भी दर्ज करवाई गई है।
ये है मामला
मंगलवार देर रात को महलाना रोड स्थित अंबेडकर कॉलोनी में सामाजिक कार्यकर्ता पहुंचे थे और बंदर पकड़ने वाले ठेकेदार के खिलाफ रोष जताया था। आरोप लगाया गया था कि बंदरों को बंधक बनाकर रखा गया है। उनको कई दिन से भूखा-प्यासा रखा गया था। इसी दौरा सूचना मिलने पर सभी लोग स्वर्णजयंती पार्क पहुंचें, जहां पर पांच बंदरों के शवों को हाल-फिलहाल में फेंका गया था। इसके बाद मौके पर हंगामा हो गया और पुलिस को भी बुलाया गया। लोगों ने निगम ठेकेदार हरिशचंद्र पर कार्रवाई की मांग उठाई। लोगों का कहना था कि भूख-प्यास और अमानवीय तरीके से पिंजरों में ठूसे जाने के कारण बंदरों की मौत हुई है और ठेकेदार ने मृत बंदरों को स्वर्णजयंती पार्क के पीछे फेंक दिया। इस मामले की वीडियो भी खूब वायरल हो रही हैं।
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