पशुपालन विभाग के पोर्टल पर 40 किस्म की दवाइयाें का स्टॉक, अस्पतालों में आठ महीने से नहीं सप्लाई, पशुपालक परेशान

Mahendragarh-Narnaul News : पशु पालन विभाग के पोर्टल पर 40 किस्म की दवाइयां अपलोड हैं। सभी जीवन रक्षक दवाइयों को जरूरत के अनुसार अस्पताल तथा डिस्पेंसरी में सप्लाई करने की हिदायत है। लेकिन सप्लाई में सिर्फ 20 किस्म की दवाइयां ही उपलब्ध होती हैं। इनकी सप्लाई भी आठ-दस महीने में एकबार होती है, जिनसे एक महीने तक भी इलाज करना संभव नहीं होता। आपात स्थिति में पशुपालक और चिकित्स्क स्टॉफ को परेशानी झेलनी पड़ रही है। अव्यवस्था के चलते सरकार की नि: शुल्क इलाज एवं दवाई वितरण की योजना मजाक साबित हो रही है।
आपको बता दें कि कृषि योग्य जमीन का रकबा घटने तथा भूजल के आभाव में ग्रामीणों का खेताबाड़ी व्यवसाय प्रभावित हो गया। कमाई के अन्य विकल्प नहीं होने के कारण लोगों को घरेलू खर्चा चलाना भी मुश्किल हो गया है। समाधान को लेकर सरकार द्वारा पशुधन संरक्षण योजना लांच कर दी गई थी। तर्क दिया गया कि पशुओं के दूध-घी बेचने से ग्रामीणों की आय बढ़ेगी, साथ ही जमीन को भरपूर मात्रा में देशी खाद मिल सकेगी। जिसके इस्तेमाल से अनाज में पौष्टिकता आएगी तथा पैदावार में बढोतरी संभव हो पाएगी। इतना ही नहीं पशुपालकों को बैंकों से कम ब्याज पर लोन देने की सुविधा उपलब्ध है। जिसके सहारे ग्रामीणों ने पशुपालन व्यवसाय करना शुरू कर दिया है। उनकी सुविधा के लिए सरकार ने जिले में 66 पशु अस्पताल तथा 72 डिस्पेंसरी खोल दी। जहां चिकित्सक टीम की नियुक्ति के साथ विभिन्न संसाधनों का प्रबंध किया गया है। यहां बीमार पशुओं को इलाज व दवाईयां निशुल्क मुहैया कराने के निर्देश हैं। विभाग के पोर्टल पर 40 किस्म की दवाईयों की सूची अपलोड है, जिनकी सभी अस्पताल तथा डिस्पेंसरी में जरूरत के अनुसार सप्लाई होती है। लेकिन जिले की अधिकतर अस्पतालों में दवाइयां उपलब्ध नहीं, बीते आठ महीने से सप्लाई भी नहीं मिली। कभी सप्लाई आती भी है तो बहुत कम मात्रा होती है। जिनसे चिकित्सकों को एक महीने तक भी बीमार पशुओं का ईलाज करना संभव नहीं होता है। किल्लत की सूचना उच्चाधिकारियों को भेजी जाती है, किंतु डिमांड पत्रों पर अमल नहीं होता। जिस कारण आपात स्थिति में पशुपालकों व चिकित्सक स्टॉफ को परेशानी झेलनी पड़ रही है।
पशुओं का विवरण और बीमा सुविधा
विभागीय जानकारी के मुताबिक जिले में 187207 भैंस, 51113 गाय, 22955 भेड़, 45967 बकरी तथा 1344 सुअर हैं। जिनमें दूधाओं पशुओं के लिए बीमा सुविधा उपलब्ध है, लेकिन बीमारी के दौरान दवाइयों का प्रबंध नहीं होता। इधर नांगल चौधरी तीन ओर राजस्थान का बार्डर होने के कारण पशुओं को संक्रमित बीमारियों का खतरा बना रहता है।
नकली और मंहगी दवाई खरीदने को मजबूर पशुपालक
बीमार पशु का चेकअप करने के बाद चिकित्सक को दवाइयों की जरूरत होती है। इसके लिए पशुपालक को पांच-छह किलोमीटर की भागदौड़ करके प्रबंध करना पड़ता है। लेकिन उन्हें दवाईयों की जानकारी नहीं होती, मेडिकल स्टोर संचालक नकली दवाई की महंगी कीमत वसूल लेते हैं। ऐसे में आर्थिक नुकसान होने बावजूद पशु का स्वास्थ्य ठीक नहीं हो पाता।
दवाइयों की लोकल परचेज नहीं होती, सप्लाई पर निर्भर
विभाग के उप निदेशक डॉ नसीब सिंह ने बताया कि दवाइयों की लोकल परचेज नहीं होती। मुख्यालय से ही सप्लाई होती हैं, सप्लाई मिले कितने दिन हो गए यह बताना सभव नहीं। उन्होंने बताया कि पशुओं के इलाज को लेकर विभाग पूरी तरह अलर्ट है तथा समय-समय पर टीकाकरण भी कराए जाते हैं।
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