Success : साइकिल पेंचर लगाने वाले का बेटा बना हरियाणा पुलिस में एसआई, ट्रेनिंग पूरी कर घर लौटा

Success : साइकिल पेंचर लगाने वाले का बेटा बना हरियाणा पुलिस में एसआई, ट्रेनिंग पूरी कर घर लौटा
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पिता ने दिन-रात साइकिल के पेंचर लगाकर बेटे को पढ़ाया। चार बहनों पर एक इस भाई ने आज परिवार ही नहीं क्षेत्र का नाम रोशन किया है। जब पंकज ट्रेनिंग करके लौटा और वर्दी में फोटो देखी तो परिवार के पास खुशी का ठिकाना ही नहीं है।

नारनौल। हरियाणा पुलिस में अगर इस पद पर कोई साइकिल पेंचर लगाने वाले गरीब व्यक्ति का बेटा लग जाए तो बड़ी बात है। ऐसा ही एक मामला शहर के मोहल्ला पुरानी मंडी में सामने आया है। गरीब तबके से जुड़े युवा पंकज ने अपनी मेहनत के बल पर पर्ची-खर्ची के सिस्टम को नकारते हुए एसआई पद पर काबिज होने में सफलता पाई है। पिता ने दिन-रात साइकिल के पेंचर लगाकर बेटे को पढ़ाया। चार बहनों पर एक इस भाई ने आज परिवार ही नहीं क्षेत्र का नाम रोशन किया है। जब पंकज ट्रेनिंग करके लौटा और वर्दी में फोटो देखी तो परिवार के पास खुशी का ठिकाना ही नहीं है।

ट्रेनिंग पूरी करके लौटे एसआई पंकज से हरिभूमि ने बातचीत की। पंकज ने बताया कि 10वीं कक्षा तक वह मोहल्ले में ही डीवीए स्कूल में पढ़ा। फिर 11वीं व 12वीं पुल बाजार स्थित सरस्वती बाल मंदिर स्कूल से की। बीएससी पीजी कॉलेज नारनौल से की। एमएससी में एडमिशन भी लिया, पर पूरी करने से पहले ही वह जीनियस एकेडमी महेंद्रगढ़ में कोचिंग के लिए चला गया। वहां सवा साल कोचिंग की। इस बीच डीवीए में अध्यापक बन बच्चों को पढ़ाने का काम भी किया। इस दौरान परिजनों ने बहुत सहयोग किया। आखिरकार 31 अक्टूबर 2021 का वह समय आ ही गया, जब उन्हें यह सूचना मिली कि हरियाणा पुलिस में एसआई पद के लिए चयन हो गया है। ट्रेनिंग मधुबन में हुई। ट्रेनिंग वैसे तो एक साल की थी, पर करीब डेढ़ साल का समय लग गया। अभी दो-तीन दिन वह छुट्टी पर घर आए है। उन्हें पहली पोस्टिंग रेवाड़ी मिली है।

परिवार का सहयोग से मिला मुकाम

नारनौल में जो राजीव चौक के पास पीजी कॉलेज है, वहां पिता विजय सिंह ने साइकिल पेंचर की दुकान की हुई है। पिता की रात-दिन मेहनत और माता बिमला देवी सहित चारों बहनों की दुआएं उसे इस मुकाम पर लेकर पहुंची है। अब लगता है कि अगर कोई मनुष्य जिसे हासिल करना चाहे, वह कर सकता है। बाधाएं जरूर सामने आती है, पर उन्हें पार करके भविष्य संवारा जाता है। हरिभूमि ने पूछा कि कहीं पर्ची-खर्ची तो बीच में नहीं है। जवाब मिला-नहीं, पिता की साइकिल पेंचर की दुकान है। घर में कमाई का ओर जरिया नहीं है, फिर ऐसे में हमारे पास ना तो पर्ची है और ना ही खर्ची। यह पद उन्हें अपनी मेहनत के बल पर मिला है। उन्होंने युवाओं से भी आह्वान किया कि वे कड़ी मेहनत करें और तय किए गए लक्ष्य को बिना थके, डटे हासिल करें।

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