शहीद दिवस : राष्ट्र नायक भगत से लें प्रेरणा

शहीद दिवस : राष्ट्र नायक भगत से लें प्रेरणा
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देश के लिए कुछ कर गुजरने का भगत सिंह का जज्बा न केवल आज के युवाओं में रोमांच भरता है बल्कि उन्हें एक नई प्रेरणा भी देता है। ऐसी स्थिति में सबसे बड़ा सवाल यह है कि क्या आज का युवा अव्यवस्था और भ्रष्टाचार के खिलाफ आवाज बुलन्द करने हेतु भगत सिंह के सिद्धान्तों पर चल रहा है? भगत सिंह शुरू से ही युवाओं को देश पर मर मिटने की प्रेरणा देते रहे। देश के प्रति उनके समर्पण ने ही उन्हें युवाओं के बीच लोकप्रिय बनाया। स्वतन्त्रता संग्राम में उन्होंने अपने लिए एक अलग रास्ता बनाया लेकिन इस रास्ते पर चलते हुए अपने आदर्शों से कभी समझौता नहीं किया। छोटी सी उम्र में दूरदृष्टि, धैर्य, आत्मविश्वास और नेतृत्व क्षमता जैसे गुणों के लिए भगत सिंह हमेशा याद किए जाएंगे।

रोहित कौशिक

आज 23 मार्च का दिन हमें एक साथ बहुत कुछ सोचने के लिए प्रेरित करता है। एक सच्चे देशभक्त होने के नाते भगत सिंह ने मात्र तेईस वर्ष की उम्र मेें शहीद होकर भारत के प्रति अपनी दीवानगी का परिचय दिया। मात्र तेईस वर्ष की उम्र में अपने देश के लिए शहीद होना ही उनकी उपलब्धि नहीं है बल्कि इस छोटी सी उम्र में उनकी वैचारिक परिपक्वता ने भी स्वतन्त्रता आन्दोलन में उनका एक अलग स्थान निर्धारित किया। देश के लिए कुछ कर गुजरने का भगत सिंह का जज्बा न केवल आज के युवाओं में रोमांच भरता है बल्कि उन्हें एक नई प्रेरणा भी देता है। ऐसी स्थिति में सबसे बड़ा सवाल यह है कि क्या आज का युवा अव्यवस्था और भ्रष्टाचार के खिलाफ आवाज बुलन्द करने हेतु भगत सिंह के सिद्धान्तों पर चल रहा है? इस दौर में कुछ युवा जरूर भगत सिंह के सिद्धान्तों पर चलकर क्रान्ति का बीज बो रहे हैं लेकिन ऐसे युवाओं की संख्या भी कम नहीं है जो भगत सिंह के सिद्धान्तों की आड़ में अपने स्वार्थ और हित साध रहे हैं।

भगत सिंह शुरू से ही युवाओं को देश पर मर मिटने की प्रेरणा देते रहे। देश के प्रति उनके समर्पण ने ही उन्हें युवाओं के बीच लोकप्रिय बनाया। स्वतन्त्रता संग्राम में उन्होंने अपने लिए एक अलग रास्ता बनाया लेकिन इस रास्ते पर चलते हुए अपने आदर्शों से कभी समझौता नहीं किया। राष्ट्रपिता महात्मा गांधी के विपरीत अंग्रेजों को टक्कर देने के लिए उन्होंने हिंसा का सहारा लिया। वे अंग्रेजों को मुंहतोड़ जवाब देना चाहते थे लेकिन उनकी हिंसा मात्र अंग्रेजी सरकार की हिंसा का जवाब थी। इसीलिए स्वतन्त्रता संग्राम में बडे़-बड़े योद्धाओं ने भी उनके जज्बे को सलाम किया और वे युवाओं के चेहते बने। जवानी की दहलीज पर कदम रखने के बावजूद उनमें गजब की दूरदृष्टि थी। छोटी सी उम्र में दूरदृष्टि, धैर्य, आत्मविश्वास और नेतृत्व क्षमता जैसे गुणों के लिए भगत सिंह हमेशा याद किए जाएंगे। व्यावसायिकता और निजीकरण के इस दौर में तो उनके इन गुणों का महत्व और अधिक बढ़ गया है।

जेल में बन्द भगत सिंह अपना अधिकतर समय पढ़ने-लिखने में व्यतीत करते थे। उनकी इस प्रवृति के कारण ही बौद्धिक समाज में भी उन्हें सम्मान प्राप्त हुआ। जेल में उन्होंने चार्ल्स डिकेन्स के उपन्यास खूब पढे़। उनकी प्रिय पुस्तकें थीं -उपटन सिंकलेयर द्वारा लिखित बोस्टन, जंगल, आयल तथा क्राई फार जस्टिस, हाल केन की इटर्नल सिटी, रीड की टेन डेज दैट शुक दी वर्ल्ड, रास्फिन की व्हाट नैवर हैपेंड, मैक्सिम गोर्की की मदर, स्टेपनियेक की कैरियर आफ ए निहिलिस्ट तथा आस्कर वाइल्ड की वीरा आफ दी निहिलिस्ट आदि। कम्युनिस्ट साहित्य को पढ़कर वे अपने को कम्युनिस्ट सिद्धान्तों के अनुरूप ढालने की कोशिश करने लगे। उन्होंने महसूस किया कि समाज में विषमता की गहरी खाई है। उन्होंने धर्म के खोखले आदर्शवाद पर गंभीरतापूर्वक विचार किया और मैं नास्तिक क्यों हूं नामक आलेख लिखा । यह आलेख एक ऐतिहासिक दस्तावेज है। इसके अतिरिक्त भगत सिंह के धर्म और हमारा स्वतन्त्रता संग्राम ,साम्प्रदायिक दंगे और उनका इलाज तथा अछूत समस्या जैसे आलेख भी हमें बहुत कुछ सोचने के लिए मजबूर करते हैं। भगत सिंह का लेखन 16-17 वर्ष की उम्र से शुरू हुआ। उनका सर्वाधिक लेखन हिन्दी में तथा उसके बाद पंजाबी और अंग्रेजी में हुआ। उन्होंने किरती नामक पत्रिका में भी नियमित रूप से लिखा।

असेंबली बम कांड के बाद भगत सिंह की लोकप्रियता और अधिक बढ़ गई। इस सिलसिले में उनके द्वारा की गई एक अपील ने युवाओं को उनका दीवाना बना दिया। आजादी के बाद भी युवाओं के दिलों में भगत सिंह की दीवानगी कायम रही। गांधी जी भी भगत सिंह का बहुत सम्मान करते थे। दुर्भाग्यपूर्ण यह है कि आज कुछ लोगों द्वारा गांधी को भगत सिंह का दुश्मन सिद्ध करने की कोशिश की जा रही है। ऐसे लोग ही गाँधी के विरुद्ध दुष्प्रचार कर युवाओं के दिमाग में यह बात घुसा रहे हैं कि गाँधी ने भगत सिंह को फाँसी से बचाने की कोशिश नहीं की। वास्तविकता यह है कि गाँधी ने भगत सिंह को फाँसी की सजा से बचाने की कोशिश की थी। गाँधी जी ने 23 मार्च 1931 को वाइसराय इर्विन को एक पत्र लिखा था जिसमें उन्होंने क्रान्तिकारियों की सजा बदल देने का अनुरोध किया था। युवाओं को यह पत्र जरूर पढ़ना चाहिए, ताकि उन्हें भगत सिंह की फाँसी की सजा टालने के सम्बन्ध में गाँधी जी द्वारा किए गए प्रयास की सही जानकारी हासिल हो सके। लेकिन वाइसराय इर्विन ने गाँधी जी का अनुरोध ठुकरा दिया। इसके बाद गाँधी ने लिखा कि, "सरकार ने क्रान्तिकारियों को अपने पक्ष में करने का सुनहरा अवसर गँवा दिया। सरकार ने अपने अपरिमित पशुबल का प्रदर्शन किया। पशुबल से काम लेने का यह आग्रह कदाचित अशुभ है।" जाहिर है कि गाँधी, भगत सिंह और अन्य क्रान्तिकारियों की फाँसी से बहुत दुःखी थे। इसलिए युवाओं को अपने मन से यह बात निकाल देनी चाहिए कि गाँधी ने भगत सिंह को बचाने का प्रयास नहीं किया।

इस दौर में भी किसी कॅालेज या विश्वविद्यालय के छात्रावास में जाकर देखिए, आपको किसी न किसी कमरे में भगत सिंह का पोस्टर जरूर दिखाई दे जाएगा। सीमाओं पर तैनात जवानों को देखिए,उनमें न जाने कितने भगत सिंह नजर आएंगे। आज हम इंकलाब जिन्दाबाद का जो नारा युवाओं और अन्य आन्दोलनकारियों के मुख से सुनते हैं, उसे भगत सिंह ने ही लोकप्रिय बनाया। दुर्भाग्यपूर्ण यह है कि इस दौर में अव्यवस्था के खिलाफ इंकलाब जिन्दाबाद का नारा लगाने वाले आन्दोलनकारियों को देश की उतनी चिन्ता नहीं है जितनी कि इस नारे के माध्यम से अपनी राजनीति चमकाने की हैेेे। चाहे छात्र राजनीति हो या फिर देश की राजनीति ,वह अपनी दिशा से भ्रमित है। आज क्रान्ति का मतलब एक-दूसरे से वैयक्तिक-वैर निकालना रह गया है। भगत सिंह से जब अदालत में यह पूछा गया कि क्रान्ति से उनका क्या मतलब है ? तो उन्होंने कहा था - "क्रान्ति का मतलब केवल खूनी लड़इयां अथवा वैयक्तिक-वैर निकालना नहीं है और न बम अथवा पिस्तौल का प्रयोग करना ही उसका एक मात्र उद्देश्य है। क्रान्ति से हमारा अभिप्राय केवल उस अन्याय को समूल नष्ट कर देना है जिसकी भित्ती पर वर्तमान शासन प्रणाली का निर्माण हुआ है ।" सवाल यह है कि भगत सिंह के इस वक्तव्य के परिप्रेक्ष्य में आज हमारे आन्दोलन कहां ठहरते हैं? अब समय आ गया है कि हम भगत सिंह के आदर्शोंं के आईने में खोखले आदर्शवाद की हर परत हटाएं। आइए आज हम सब राष्ट्र नायक भगत सिंह व उनके साथ फांसी की तख्त पर चढ़े राजगुरु व सुखदेव के अखंड भारत के लिए बलिदान को याद करते हुए उनके गुणों को आत्मसात करने की कोशिश करें।

(लेखक रोहित कौशिक वरिष्ठ पत्रकार हैं, ये उनके अपने विचार हैं।)


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