टीबी अब नहीं रहेगी असाध्य बीमारी : GJU के शोधार्थी ने दिखाई नई उम्मीद, परंपरागत दवा को दिया नया रूप

टीबी अब नहीं रहेगी असाध्य बीमारी : GJU के शोधार्थी ने दिखाई नई उम्मीद, परंपरागत दवा को दिया नया रूप
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गरीबों की बीमारी के नाम से कुख्यात इस संक्रामक बीमारी पर बहुत कम ही शोध कार्य हुए हैं। कोई भी मल्टीनेशनल फार्मास्यूटिकल कंपनी ट्यूबरकुलोसिस पर शोध करने में रुचि नहीं दिखा रही थी। डॉ. धारीवाल ने इस विषय को अपनी पीएचडी के लिए चुना और शोध कार्य करते हुए इसकी परंपरागत दवाई को नया रूप दिया है।

हिसार। गुरु जंभेश्वर यूनिवर्सिटी ( gju ) के डिपार्टमेंट ऑफ फार्मास्यूटिकल साइंसेस के शोधकर्ता डॉ. सुमित धारीवाल ने ट्यूबरकुलोसिस tuberculosis (टीबी) की परंपरागत दवाई को नया रूप देते हुए उसके प्रभाव को बढ़ाने में महत्वपूर्ण उपलब्धि हासिल की है। गरीबों की बीमारी के नाम से कुख्यात इस संक्रामक बीमारी पर बहुत कम ही शोध कार्य हुए हैं। कोई भी मल्टीनेशनल फार्मास्यूटिकल कंपनी ट्यूबरकुलोसिस पर शोध करने में रुचि नहीं दिखा रही थी। डॉ. धारीवाल ने इस विषय को अपनी पीएचडी के लिए चुना और शोध कार्य करते हुए इसकी परंपरागत दवाई को नया रूप दिया है। इससे आने वाले समय में टीवी के मरीजों को लाभ होगा तथा टीवी को जड़ से मिटाते हुए टीवी मुक्त भारत का लक्ष्य बहुत जल्द प्राप्त किया जा सकेगा। डॉ धारीवाल की इस उपलब्धि पर राज्यसभा सांसद डॉ सुभाष चंद्रा ने उन्हें प्रशस्ति पत्र देकर सम्मानित किया और विश्वास जताया कि उनका यह शोध इस बीमारी के समूल खात्मे में अपना अहम योगदान देगा।

19 वर्षों से समाज के हर वर्ग के लिए कर रहे काम

डॉ. सुमित धारीवाल बताते हैं कि पिछले लगभग 19 वर्षों से वे अपनी शिक्षा के साथ साथ किसान, मजदूरों, दुकानदारों, व्यापारियों, कर्मचारियों, दलितों, पिछड़ों व विमुक्त एवं घुमंतू जातियों के साथ-साथ स्वर्ण जाति के गरीब लोगों सहित समाज के हर वर्ग के लिए कार्य करते हुए समाज की मुख्यधारा से जोड़ने के लिए काम कर रहे हैं। उनकी बचपन से ही रूचि विभिन्न सामाजिक गतिविधियों में रही है। इसके चलते उनके सामने अनेकों बार ट्यूबरकुलोसिस की बात सामने आई तो उन्होंने प्रारंभिक शोध के दौरान पाया कि ट्यूबरक्लोसिस उन लोगों को ज्यादा प्रभावित कर रही है जो कि आर्थिक रूप से काफी कमजोर होने के कारण संतुलित आहार नहीं ले पाते और झुग्गी झोपडिय़ों व अन्य ऐसी भीड़भाड़ वाली जगहों पर रहते हैं, जहां वायु प्रदूषण ज्यादा हो व जिनके फेफड़ों में अन्य कोई बीमारी हो या जिनके फेफड़े काफी कमजोर हो।

ट्यूबरक्लोसिस को अपना शोध विषय चुना

इन सभी बातों को ध्यान में रखते हुए उन्होंने इसके बारे में अपने पीएचडी के सुपरवाइजर व डिपार्टमेंट ऑफ फार्मास्यूटिकल साइंसेस के पूर्व में रहे चेयरमैन व डीन फैकल्टी ऑफ मेडिकल साइंसेस प्रोफेसर डीसी भट्ट से चर्चा की। उन्होंने इसमें बहुत अधिक रुचि दिखाते हुए उन्हें ट्यूबरक्लोसिस को अपना शोध का विषय चुनने पर अनुमति दी व इस पर शोध करने के लिए प्रेरित किया। शोध के दौरान यह सामने आया कि कोई भी मल्टीनेशनल फार्मास्यूटिकल कंपनी ट्यूबरकुलोसिस पर शोध करने में रुचि नहीं दिखा रही। उन्होंने सभी को आश्वस्त करते हुए कहा कि उनकी टीम ने परंपरागत दवाई को जो नया रूप दिया गया है, उससे जरूर ही आने वाले समय में टीवी के मरीजों को लाभ होगा।

सांसद डॉ. सुभाष चंद्रा ने किया सम्मानित

राज्यसभा सदस्य डॉ. सुभाष चंद्रा ने उन्हें सम्मानित करते हुए कहा कि ट्यूबरकुलोसिस एक सामाजिक प्रासंगिकता का विषय है तथा ट्यूबरकुलोसिस के विषय पर बहुत ही कम शोधार्थी शोध करते हैं। इस बीमारी के कारण बहुत अधिक संख्या में लोगों की मौत हर साल होती है। डब्ल्यूएचओ के आंकड़ों के मुताबिक लगभग चार हजार लोग हर रोज इस बीमारी से मौत का शिकार हो जाते हैं। वहीं 28 हजार के करीब लोग टीबी से हर रोज ग्रसित हो रहे हैं। उन्होंने विश्वास जताया कि आपके शोध परिणाम के बाद प्राप्त हुई दवाई टीवी को जड़ से खत्म करने में महत्वपूर्ण भूमिका अदा करे करते हुए टीवी मुक्त भारत का लक्ष्य टीवी टीवी मुक्त व वैश्विक लक्ष्य से 5 वर्ष पूर्व 2025 में पूरा करने में अहम भूमिका अदा करेगी।

सरकार को भेजा जाएगा प्रस्ताव

डॉ. धारीवाल ने कहा कि वे भारत सरकार से इस पर आगे शोध करने के लिए आर्थिक सहायता के लिए प्रस्ताव तैयार कर रहे हैं और जल्द ही उसे तैयार कर करके भारत सरकार के पास भेज दिया जाएगा। उन्होंने इस विशेष सम्मान का श्रेय अपने परिजनों व पीएचडी के सुपरवाइजर रहे प्रोफेसर डीसी भट्ट को देते हुए कहा कि उन्होंने हमेशा उन्हें जीवन में सही दिशा व सकारात्मकता के साथ आगे बढ़ने के लिए प्रेरित किया है।

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