मरने के बाद भी मिसाल बना शिक्षक : छात्रों के अध्ययन के लिए शरीर किया दान

नारनौंद : रतन सिंह ने अध्यापक के रूप में सालों तक छात्रों को पढ़ाया और जब दुनिया से विदा हुए तो अपने शव को भी अध्ययन के लिए छात्रों के लिए छोड़ दिया। अध्यापक की इस अनूठी पहल की चर्चा है।
हिसार के गांव लाडवा निवासी रतन सिंह का जन्म वर्ष 1940 में हुआ। युवावस्था में वह अध्यापक बने। कुछ समय बाद वह हेडमास्टर बन गए थे। उनके पढ़ाए अनेक छात्र उच्च पदों तक पहुंचे जिनमें किरमारा गांव के निवासी सुखबीर सिंह डीआईजी पद पर तैनात हैं। अपनी नौकरी का ज्यादातर समय गांव हरीकोट में गुजारने के दौरान जब उनका तबादला हुआ था तो हरीकोट के ग्रामीणों ने तबादला रूकवाने के लिए सड़क जाम कर दी थी। साल 2001 में स्वर्गीय रतन सिंह रिटायर हो गए। उसके बाद उन्होंने सामाजिक कार्यकर्ता के रूप में जीवन जिया।
पिछले चार-पांच दिनों से सांस लेने की तकलीफ होने पर हिसार के एक निजी हॉस्पिटल में भर्ती हुए थे, जहां उन्होंने अंतिम सांस ली। उसके बाद परिजन उनके शव को पैतृक गांव लाडवा में घर लेकर गए थे। उसके बाद शव को अग्रोहा मेडिकल कॉलेज के छात्रों के लिए रिसर्च के लिए दान दे दिया। घर में उनकी पत्नी सुनहरी देवी, बेटे बलजीत सिंह, कुलदीप तथा दो लड़कियां कमलेश व मुकेश हैं। उनके बेटे बलजीत सिंह पूनिया ने बताया कि वह चाहते थे कि उनकी मृत्यु के बाद उनके शव को जलाया नहीं जाए बल्कि रिसर्च के लिए छात्रों को दिया जाए। ताकि उनके शरीर से भी छात्रों को कुछ सीखने को मिले।
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