Kisan Andolan : आंदोलनरत किसान ने बनाया चलता-फिरता आशियाना

हरिभूमि न्यूज. बहादुरगढ़
दिल्ली की सीमाओं पर आंदोलन कर रहे किसान बार-बार सिद्ध कर रहे हैं कि आवश्यकता अविष्कार की जननी है। गर्मी की तपिश में एक अदद छत का क्या महत्व होता है, इसका अंदाजा आप सभी को है। इंसान की बुनियादी तीन जरूरतों में रोटी और कपड़े के बाद मकान ही आता है। दिल्ली के बॉर्डराें पर डटे किसान सर्दी और बरसात से निपटने के बाद अब गर्मी में आशियाने का जुगाड़ करने में जुटे हैं।
चार महीने से अधिक समय से आंदोलन कर रहे किसानों ने दिल्ली-एनसीआर की सर्दी झेल ली, अब वह गर्मी झेलने का इंतजाम करने में जुट गए हैं। दिल्ली-एनसीआर का पारा जैसे-जैसे ऊपर जा रहा है, वैसे-वैसे किसानों ने चौबीसों घंटे खुद को सड़क पर स्वस्थ्य व सुरक्षित रखने का इंतजाम करना शुरू कर दिया है। किसानों ने आंदोलन स्थल पर रहने-खाने-सोने का शेड्यूल बदल दिया है। पंजाब के भटिंडा का एक युवक अपने साथ चलता-फिरता आशियाना लेकर यहां पहुंच गया है। इसके निर्माण पर गांव माइसर खाना के अमनदीप ने करीब साढ़े 3 लाख रुपए खर्च किए हैं।
करीब 25 फुट लंबे और 11 फुट चौड़े इस आशियाने में 40 लोग आराम से रह सकते हैं। इसमें कूलर-पंखे व एसी तक की व्यवस्था का प्रावधान है। किसानों ने अपनी ट्रॉलियों को 'मिनी हाउस' का रूप दे दिया है। किसानों को गर्मी से बचाने के लिए तंबुओं में भी मच्छरदानी, कूलर और पंखे लगाए जा रहे हैं। किसानों का कहना है कि वे किसी कीमत पर पीछे नहीं हटने वाले। वे पहले भी कह चुके हैं कि कानून वापस नहीं होने तक किसान घर नहीं जाएंगे। अब सरकार को अपनी हठधर्मिता छोड़ देनी चाहिए। जनता उनको समझ चुकी है। सरकार किसानों के हित में उदार होने से झिझक रही है।
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