2024 के आम चुनाव की नींव तैयार

निरंकार सिंह
पांच चुनावी राज्यों में से बीजेपी ने चार में सत्ता बरकरार रखी है। यहां तक कि उन राज्यों में जहां सत्ता विरोधी लहर बताई जा रही थी, उनमें भी जीतकर अपनी मजबूत पकड़ का अहसास कराया है। मोदी की लोकप्रियता अभी शिखर पर है। उनके आते ही बीजेपी के खिलाफ दिखने वाले तमाम फैक्टर बेअसर हो जाते हैं। साल भर लंबे चले किसान आंदोलन का भी इन चुनावों पर कोई असर नहीं हुआ। नतीजों का एक अहम संदेश यह भी है कि 2024 के आम चुनाव की भी नींव तैयार हो गई है और राजनीतिक दिशा भी तय हो गई है। वैसे तो पहले से ही पांच राज्यों के चुनाव को अगले आम चुनाव का सेमीफाइनल माना जा रहा था, पर नतीजों के एलान के बाद खुद प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी ने चार राज्यों और खासकर उत्तर प्रदेश के विधानसभा चुनाव में मिले जनादेश को 2024 से जोड़ दिया। उन्होंने कहा कि इसने लोकसभा चुनाव के नतीजे तय कर दिए हैं।
इसमें कोई संदेह नहीं कि विपक्ष अपनी नकारात्मक राजनीति से ही असफल रहा है। देश दो साल से कोविड संकट से जूझ रहा है और अब यूक्रेन संकट ने चुनौतियों को और भी बढ़ा दिया है। सरकार लगातार इन वैश्विक चुनौतियों से निपटने की कोशिश कर रही है, वहीं विपक्ष इसमें मदद करने के बजाय झूठ फैलाकर लोगों को बरगलाने की कोशिश में जुटा है। भारत में बनी कोविड वैक्सीन पर भी विपक्षी नेताओं द्वारा सवाल उठाए जाने के साथ-साथ यूक्रेन में फंसे छात्रों व उसके परिवार वालों के बीच दशहत फैलाने की कोशिशों की गई। जहां पूरा देश एकजुट होकर यूक्रेन से भारतीयों को निकालने की कोशिश कर रहा था, वहीं विपक्षी दलों ने इसमें भी प्रदेशवाद को शामिल कर दिया। भ्रष्टाचार के आरोपों की जांच का सामना कर रहे नेताओं के पक्ष में हो रही राजनीतिक गोलबंदी भी विपक्षियों के राजनीतिक पतन की पराकाष्ठा ही कही जाएगी । भ्रष्ट नेताओं को बचाने के लिए ये लोग निष्पक्ष जांच करने वाली एजेंसियों को ही कठघरे में खड़ा कर दवाब बनाने की कोशिश कर रहे हैं और उनके ईको सिस्टम इसे हवा दे रहे हैं। उनके इस खेल को जनता अब समझ गई है और चुनावों के नतीजे भी इसी बात की पुष्टि करते हैं। उत्तर प्रदेश, उत्तराखंड, गोवा व मणिपुर भाजपा की जीत उसकी प्रो-पूअर और प्रो-एक्टिव गवर्नेस माडल पर ही लोगों की मुहर हैं।
उत्तर प्रदेश और उत्तराखंड की बड़ी जीत के साथ-साथ मणिपुर और गोवा में भी दोबारा सत्ता हासिल कर भाजपा और प्रधानमंत्री मोदी ने एक बहुत बड़ी लकीर खींच दी है। एक ऐसी लकीर जो जातिवाद से परे है, ऐसी लकीर जो विकास के साथ आस्था को लेकर संवेदनशील है। मालूम हो कि 2019 के चुनाव में मुलायम सिंह यादव परिवार के कई खिलाड़ी पैवेलियन लौट गए थे। उत्तर प्रदेश की बात की जाए तो पहली बार उसने कार्यकाल पूरा करने के बाद मुख्यमंत्री को फिर चुना है।
योगी आदित्यनाथ ने 19 मार्च 2017 को प्रदेश के मुख्यमंत्री की कमान संभाली। बतौर मुख्यमंत्री उन्होंने तमाम उपलब्धियों के बीच न केवल शानदार कार्यकाल पूरा किया है बल्कि सार्वजनिक जीवन में बेदाग छवि को बरकरार रखा। योगी प्रदेश के अब तक के इकलौते मुख्यमंत्री रहे हैं, जिन्होंने प्रदेश के हर जिले का कई बार दौरा करने के साथ नोएडा जाने के मिथक को भी तोड़ा है। पहले मुख्यमंत्री इस मिथक के भय से नोएडा नहीं जाते थे कि वहां जाने से सीएम की कुर्सी चली जाती है।
योगी आदित्यनाथ ऐसे प्रदेश में भाजपा का नेतृत्व कर रहे हैं जो 2024 के मिशन में भी पार्टी के लिए अहम भूमिका निभाएगा। 2014 में 73 और 2019 में 62 लोकसभा सीटें भाजपा की झोली में यूपी से गई। इस ट्रैक रिकॉर्ड को बनाए रखने का दारोमदार योगी पर है। इस जीत से एक बात पक्की हो गई कि यूपी में योगी का विकल्प कोई नहीं है। विधानसभा चुनाव से पहले कुछ महीनों तक चली खींचतान को अब बहुत पुराना इतिहास ही मान कर चलना चाहिए। योगी ने अपनी नेतृत्व क्षमता का लोहा मनवाकर पार्टी के सभी मुख्यमंत्रियों की कतार में अपनी लाइन सबसे आगे कर ली है। किसान आंदोलन और लखीमपुर की घटना के बाद भाजपा का फिर सत्ता में आना यह संदेश देता है कि पार्टी की विचारधारा से समझौता किए बगैर अगर कोई नेता सारे विपक्षी मॉड्यूल को ध्वस्त कर सकता है तो वह योगी ही हैं। महंगाई, बेरोजगारी जैसे मुद्दे मतदाताओं का ध्यान तो खींचते हैं, लेकिन वोट का आधार नहीं बनते क्योंकि ये मुद्दे तो हमेशा रहे हैं और दुनिया कोई भी सरकार सबको रोजगार नही दे सकती है। 2014 से 'राष्ट्रवाद' की जो अवधारणा विकसित हुई, वह और मजबूत हुई है। ये चुनाव नतीजे गठबंधन को भी पारिभाषित करते हैं। ध्यान रहे कि उत्तर प्रदेश में समाजवादी पार्टी ने तीन चुनावों में गठबंधन के हर विकल्प का प्रयोग कर लिया है। पहले कांग्रेस के साथ, फिर बसपा के साथ और इस बार रालोद व भाजपा को छोड़कर आए कुछ दलों के साथ। बल्कि भाजपा का साथ छोड़कर सपा में गए कई नेता भी पस्त हो गए। जो नेता चुनाव जिताने-हराने का दावा करते थे, वे खुद हार गए। यानी गठबंधन की सफलता असफलता भी मुख्य दल की विश्वसनीयता के साथ जुड़ी होती है।
पांच राज्यों के विधानसभा चुनावों पर करीब से नजर रख रहे अंतरराष्ट्रीय मीडिया का मानना है कि उत्तर प्रदेश समेत चार राज्यों में भाजपा की रिकार्ड जीत भारतीय राजनीति में प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी के प्रभुत्व को निकट भविष्य में फिर से मजबूत करेगी। वाशिंगटन पोस्ट की खबर के मुताबिक, भाजपा ने यह जीत कल्याणवाद, हिंदुत्व और मोदी की लोकप्रियता के स्तंभ पर खड़े गवर्नेंस माडल पर हासिल की है। उत्तर प्रदेश में अपनी प्रचंड जीत से भाजपा ने दिखा दिया है कि अर्थव्यवस्था के प्रबंधन को लेकर उसकी आलोचना से निपटने के लिए उसका जनसमर्थन बरकरार है। इन चुनाव परिणामों ने 2024 के आम चुनाव जीतने की भाजपा की संभावनाएं बढ़ा दी हैं। अखबार यह भी लिखता है कि भाजपा की जीत राष्ट्रीय राजनीति में उसकी स्थिति मजबूत करेगी और भारत को हिंदू राष्ट्र बनाने और पंथनिरपेक्षता के संस्थापक सिद्धांतों से दूर होने के मोदी के दृष्टिकोण को जोरदार समर्थन प्रदान करेगी।
न्यूयार्क टाइम्स के अनुसार मोदी की पार्टी को राज्यों और आम चुनावों में कभी कभी मजबूत क्षेत्रीय पार्टियों के खिलाफ संघर्ष करना पड़ा है, लेकिन इनमें से किसी के लिए भी विपक्षी पार्टी के रूप में उभरकर देश पर उनकी पकड़ को चुनौती देना आसान नहीं होगा। राष्ट्रीय स्तर पर मौजूदगी वाली सबसे बड़ी विपक्षी पार्टी कांग्रेस तेजी से कमजोर होती दिखाई दे रही है। लंदन स्थित डेली टेलीग्राफ लिखता है कि उत्तर प्रदेश में जीत से मोदी की 2024 में लगातार तीसरी जीत हासिल करने की उम्मीदों को बल मिलेगा और पिछले दशकों में देश के सर्वाधिक लोकप्रिय नेता की उनकी छवि और मजबूत होगी।
(ये लेखक के अपने विचार हैं।)
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