देश के असली हीरो : हीरासिंह ने चटगांव में एनआईए का झंडा फहराकर ब्रिटिश सरकार के विरूद्ध शुरू की थी जंग

हरिभूमि न्यूज : नारनौल
गांव चिंडालिया में जन्में स्वतंत्रता सेनानी हीरासिंह आजाद उन गौरवशाली सेनानियों में शामिल हैं, जिन्होंने आजादी से पहले ही चटगांव में आजाद हिंद फौज का झंडा फहराने का सौभाग्य प्राप्त है। हीरासिंह ब्रिटिश सरकार में सेना की यूनिट 716 रायफल में भर्ती हुए थे, लेकिन जब उनकी मुलाकात आजादी महानायक नेताजी सुभाष चंद्र बोस से हुई तो वहीं से उनके साथ कदम-ताल करने लगे और अंग्रेजी हुकूमत के विरुद्ध आजादी का बिगुल फूंक दिया। जिन्हें आजादी के बाद स्वतंत्रता सेनानी का तमगा मिला और आज वह परिवार के साथ खुशहाल जीवन व्यतीत कर रहे हैं। सरकार द्वारा उन्हें हर माह पेंशन दी जाती है तथा एक पेट्रोल भी नवाजा गया है, जो नारनौल बाइपास पर सिंघाना चौक के समीप बना है।
छोटे से गांव से निकलकर हीरासिंह का सफर
स्वतंत्रता सेनानी हीरासिंह आजाद का जन्म एक अप्रैल 1921 को चिंडालिया गांव में तोताराम नामक किसान के यहां हुआ। उनके पिता साधारण किसान थे, वहीं माता सुंदरी देवी गृहणी थी। उन्होंने प्रारंभिक शिक्षा गांव से करीब दस किलोमीटर दूर धरसूं-निवाजनगर स्कूल से की। पांच जमात पास करने के बाद वह शहर आने लगे और फिर वहां से दिल्ली पहुंच गए। दिल्ली में 11 अप्रैल 1941 को सेना की यूनिट 716 रायफल में भर्ती हो गए। उन्हें ब्रिटिश सरकार में ट्रेनिंग पूरी होने के बाद हथियारों का लेखा-जोखा व तार-डाक विभाग में ड्यूटी मिली। सन 1942 में हीरासिंह की मुलाकात दिल्ली में नेताजी सुभाष चंद्र बोस से मुलाकात हुई और एनआईए गठित करने की योजना बनाई। परंतु तभी ब्रिटिश सरकार ने हीरासिंह व उनके सार्थियों को बंबार भेंट ग्रुप के नाम से एक टुकड़ी बनाकर बर्मा देश में लड़ने के लिए भेज दिया। वहां उन्होंने चटगांव, जीगरगचा आदि जगहों पर ब्रिटिश सरकार की हुकूमत में लड़ाईयां लड़ी, लेकिन वहां वे व उनके कुछ साथी बंदी बना लिए गए। जब नेताजी को इस बात की भनक लगी तो उन्होंने वहां जाकर उन्हें कैद से रिहा कराया। फिर वह नेताजी के साथ हो गए और नेताजी की मदद से चटगांव में आईएनए का झंडा फहरा दिया। वहीं से ब्रिटिश सरकार के विरुद्ध जंग शुरू कर दी। इसके बाद तो हीरासिंह ने नेताजी के साथ मिलकर कई देशों में जाकर ब्रिटिश सरकार के विरुद्ध लड़ाईयां लड़ी। इन्होंने जापानियों के साथ मिलकर अंग्रेजों से गुरीला युद्ध भी किया। इस लड़ाई में इनका साथी ब्रिगेडियर होशियार सिंह मारा गया और इन्हें अंडेमान निकोबार से सैलेलर जेल में बंद कर दिया गया, जहां से 29 दिसंबर 1943 को बोस ने आजाद करवा लिया।
हीरासिंह की जुबानी...नेताजी ने कहा तुम भारत पहुंचो हमारा देश आजाद हो गया
बाहर आने पर वहीं पर आईएनए का झंडा फहराया और जर्मन चले गए। वहीं इनकी 10 अगस्त 1945 को इनकी नेताजी से आखिरी बार मुलाकात हुई। तब नेताजी ने कहा था कि तुम भारत पहुंचो। हमारा देश आजाद हो गया है। मेरा कुछ मालूम नहीं, क्या होगा। अब हमारा देश आजाद है और आजाद ही रहेगा। यह कहकर वह वहां से चले गए, जबकि पूरी फौज भारत रवाना हो गई। लेकिन यहां आने पर इन पर देशद्रोही होने का ठप्पा लगा दिया गया। इंक्वारी कराई गई और सन 1950 तक इन पर पहरा रखा गया। फिर इंदिरा गांधी सरकार ने 25 साल बाद सन 1971 में सम्मान पेंशन योजना के अंतर्गत 100 रुपये महीना पेंशन मुहैया कराई। धीरे-धीरे यह सेवाएं एवं पेंशन बढ़ती चली गई और अब एक पेट्रोल पंप भी सरकार दे चुकी है। फिलहाल हीरासिंह आजाद परिवार के साथ गांव में भरपूर जीवन जी रहे हैं।
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