छात्रा को रिसर्च के लिए जाना था स्वीडन, साइबर ठगों ने खाते से उड़ाए रुपये

हरिभूमि न्यूज. रेवाड़ी
इसे संयोग था या प्रयोग। मॉडल टाउन निवासी छात्रा अंजलि गुप्ता के खाते से दो लाख 49 रुपए उड़ा लिए। साइबर ठगो ने इंटरनेशनल कार्ड धारक अजंलि के स्वीडन रवाना होने से दो दिन पहले ठगी की इस घटना को अंजाम दिया तथा पश्चिमी बंगाल से सिस्टम को ऑपरेट कर मुबंई स्थित इंटरनेशनल बैंक शाखा में ठगी की राशि को ट्रांसफर किया। बिना ओटीपी शेयर किए चंद मिनटों में अलग अलग आईडी से की गई ठगी की इस घटना से ऑनलाइन बैकिंग सर्विस, सिस्टम व सुरक्षा पर प्रश्नचिन्ह लगा दिया है। साइबर थाना पुलिस ने अज्ञात लोगों के खिलाफ धोखाधड़ी सहित विभिन्न धाराओं के तहत मामला दर्ज कर जांच शुरू कर दी है।
बीएसएमएस मोहली की छात्रा मॉडल टाउन निवासी अंजलि को को एक रिसर्च में हिस्सा लेने के लिए स्वीडन सरकार का निमंत्रण मिला था। 10 मई को स्वीडन रवाना होने से पहले अंजलि ने बैंक ऑफ बड़ौदा में ऑनलाइन इंटरनेशन कार्ड के लिए आवेदन किया। तीन चार मई को कार्ड मिलने के बाद अंजलि ने स्वयं कार्ड का पिन जरनेट कर पिन की जांच करने के लिए पिता राकेश गुप्ता को इंटरनेशन कार्ड से कुछ राशि निकालने को कहा। राकेश गुप्ता के तीन बार एक-एक हजार रुपए की निकासी करने पर एक हजार रुपए निकले, परंतु खाते से तीन हजार रुपए कट गए। जिसकी ऑनलाइन शिकायत दर्ज करवाई गई। 8 मई को अंजलि को अनजान नंबर से फोन कॉल करने वाला व्यक्ति बैंक प्रतिनिधि के रूप में अपना परिचय दिया तथा खाते से कटे दो हजार रुपए खाते में ट्रांसफर करने की बात कही। बाद में उनका मोबाइल बैंकिंग सेवा का पंजीकरण रद कर उन्हें एक संदेश भेजकर इस नंबर पर 8422009988 पर शेयर करने को कहा। अंजलि ने जैसे ही संदेश शेयर करते ही खाते से अलग-अगल आईडी से 2 लाख 49 रुपए की राशि खाते से गायब हो गई। जिसमें 49800, 49900, 49750, 49900, 500 रुपए की निकासी हुई।
पिता बोले, बिना मिलीभगत संभव नहीं
मॉडल टाउन निवासी अजंलि के पिता एवं उद्यमी राकेश कुमार गुप्ता ने कहा कि हमने बैंक के पास ऑनलाइन शिकायत की। उसी शिकायत का हवाला देकर साइबर ठगो ने खाते से दो लाख 95 हजार रुपए की ठगी की। आरोपित पश्चिमी बंगाल से ऑपरेट कर मुंबई में स्थिति मॉरीसस बैंक की ब्रॉच में खाता ट्रांसफर कर रहे हैं। जिसकी जानकारी बैंक अधिकारियों व पुलिस को भी। गलती से यदि कोई हमारे खाते में राशि ट्रांसफर कर दे तो बैंक स्वयं ही खाते से काट लेता है। संयोग से खाते में पैसे नहीं हो तो पुलिस घर तक पहुंच जाती है। फिर साइबर ठगी के मामलों में ऐसा क्यों नहीं हो रहा।
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