मां की ममता का कोई न तो विकल्‍प है, और न ही कोई मोल : हाई कोर्ट

मां की ममता का कोई न तो विकल्‍प है, और न ही कोई मोल : हाई कोर्ट
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हाई कोर्ट ने यह टिप्पणी एक महिला द्वारा अपने बच्‍चे को सौंपने को लेकर दायर बंदी प्रत्यक्षीकरण की याचिका (Petition) पर सुनवाई करते हुए की।

मां की ममता का कोई न तो विकल्‍प है और न ही कोई मोल। पंजाब एवं हरियाणा हाई कोर्ट (Punjab and Haryana High Court) ने भी एक मामले की सुनवाई में इसे रेखांकित किया। हाई कोर्ट ने एक बच्‍चे की मां की याचिका पर सुनवाई (Hearing) के दौरान कहा कि मां के प्यार और उसके द्वारा की गई देखभाल को कोई मूल्य नहीं है, ऐसे में मां का स्थान कोई नहीं ले सकती। पैसे से ली गई सुविधा मां के प्‍यार और देखभाल की जगह नहीं ले सकती।

हाई कोर्ट ने कहा कि शिशु के लिए मां की सुरक्षा अपरिहार्य है और कोई भी सुरक्षा उपाय उसके आगे टिक नहीं सकता। हाई कोर्ट ने यह टिप्पणी एक महिला द्वारा अपने बच्‍चे को सौंपने को लेकर दायर बंदी प्रत्यक्षीकरण की याचिका पर सुनवाई करते हुए की। म‍हिला ने अपनी याचिका में कहा कि उसकी बच्ची की उम्र पांच साल से कम है। इसलिए उसे बच्‍ची की कस्टडी दी जाए। हाई कोर्ट के जस्टिस एके त्यागी ने मामले की सुनवाई के बाद बच्ची को मां को सौंपने का आदेश दिया। ज‍स्टिस एके त्‍यागी ने कहा कि नाबालिग के कल्याण के लिए उसे मां को सौंपा जाना जरूरी है।

बेंच ने कहा कि वर्तमान मामले में नाबालिग बेटी के कल्याण और हित के सवाल पर मां के सहज निस्वार्थ प्रेम को अनदेखा नहीं किया जा सकता। बेंच ने कहा कि मांं की गोद एक प्राकृतिक पालना है, जहां बच्‍चे की सुरक्षा और कल्याण की भावना है। इसका कोई विकल्प नहीं हो सकता। बच्‍चे के लिए मां का संरक्षण जरूरी है और कोई अन्य इसके बराबर नहीं। पैसे या पैसे से ली गई सुविधा भी मां के प्यार और देखभाल की जगह नहीं ले सकता। बच्‍चों की स्वास्थ्‍य की वृद्धि के लिए मातृ देखभाल और स्नेह जरूरी है।

कोर्ट ने कहा कि यह मांता-पिता के कानूनी अधिकारों के बावजूद नाबालिग बच्चे का कल्याण पर सर्वोपरि है। बठिंडा के एक दंपति के बीच वैवाहिक विवाद चल रहा था और उनके कारण बच्ची की कस्टडी पति के पास थी। बेंच ने कहा कि इसमें कोई शक नहीं, पिता के साथ नाबालिग बेटी की हिरासत को गैरकानूनी नहीं कहा जा सकता है, लेकिन नाबालिग बेटी की उम्र पांच साल से कम होने के कारण उसे मा के पास रहने का अधिकार है। कोर्ट ने यह भी आदेश दिया कि पिता सप्ताह में एक बार बेटी से मिल सकता है।

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