Nag Panchami 2021 : नाग पंचमी पर पूजा का यह है सबसे शुभ मुहूर्त

पूंडरी। हर साल सावन महीने के शुक्ल पक्ष की पंचमी तिथि को नाग पंचमी मनाई जाती है। इस बार ये तिथि 13 अगस्त को पड़ रही है। भगवान शिव का रुद्राभिषेक भी करता है उसके जीवन के सारे कष्ट दूर हो जाते हैं। कुंडली में राहु-केतु की स्थिति भी मजबूत होती है। शिव-शक्ति ज्योतिष अनुसंधान केंद्र फरल के संचालक आचार्य जेपी कौशिक के अनुसार नाग पंचमी इस बार 13 अगस्त दिन शुक्रवार को मनाया जा रहा है। पंचमी तिथि की शुरुआत 12 अगस्त को दोपहर 3.24 बजे पर हो जाएगी और इसकी समाप्ति दोपहर 13 अगस्त 1.42 बजे पर होगी। पूजा का सबसे शुभ मुहूर्त सुबह 5.49 बजे से 8.28 बजे तक रहेगा।
रुद्राभिषेक के लिए जरूरी सामग्री
गाय का घी, दीपक, गंध, पुष्प, कपूर, मौसमी फल, चंदन, धूप, पान का पत्ता, सुपारी, नारियल, भांग, धतूरा, बिल्वपत्र आदि की व्यवस्थ्या करनी होती है। जिस मनोकामना पूर्ति के लिए रुद्राभिषेक कराना चाहते हैं। उससे संबंधित चीजें दूध, दही, शहद, गन्ने का रस, श्रृंगी (गाय के सींग से बना अभिषेक का पात्र) आदि।
रुद्राभिषेक करने की विधि : सबसे पहले गणेश जी, माता पार्वती, भगवान शिव, नौ ग्रह, माता लक्ष्मी, सूर्य देव, अग्नि देव, ब्रह्म देव, पृथ्वी माता आदि को याद करते हैं। फिर शिव-पार्वती, गणेश जी और नौ ग्रह को पूजा स्थान पर स्थापित करते हैं। इसके बाद सभी देवी-देवताओं का विधि पूर्वक पूजन करने के बाद शिवलिंग की पूजा की जाती है। पंडित भगवान शिव के मंत्रों का उच्चारण करते हैं और शिवलिंग का गंगा जल से अभिषेक कराया जाता है। शिवलिंग पर भांग-धतूरा, भस्म, इत्र इत्यादि सामग्री चढ़ाई जाती है। फिर जिस चीज से भगवान शिव का रुद्राभिषेक करना चाहते हैं, उसकी प्रक्रिया शुरू की जाती है। रुद्राभिषेक के समय मन ही मन ओम नम शिवाय मंत्र का उच्चारण किया जाता है। फिर एक-एक बिल्पवत्र शिवलिंग पर चढ़ाए जाते हैं। अंत में आरती उतारकर भगवान को भोग लगाया जाता है। फिर उस भोग को प्रसाद स्वरूप सब ग्रहण करते हैं।
माना जाता है कि इस दिन नागों की पूजा करने से और उन्हें दूध पिलाने से नाग देवता प्रसन्न होते हैं। इसके अलावा इस दिन लोग अपने घर के द्वार पर नागों की आकृति भी बनाते हैं। हिंदू धर्म में सभी त्योहार और उनसे जुड़ी कथाओं का बारे में वर्णन किया गया है। ऐसी ही कुछ कथाएं नाग पंचमी से भी जुड़ी हुई हैं।
क्या है नागपंचमी की कथा-कौशिक
महाभारत की एक कथा के अनुसार महाभारत के अनुसार, कुरु वंश के राजा परीक्षित के पुत्र जनमेजय ने अपने पिता की मृत्यु का बदला लेने के लिए एक अनुष्ठान करने का फैसला किया। चूंकि राजा परीक्षित की मृत्यु सर्प के काटने से हुई थी, इसलिए जनमेजय ने यज्ञ में सांपों की बलि चढ़ाने का निश्चय किया। दरअसल, उसका उद्देश्य सांपों के राजा तक्षक को फंसाना था, क्योंकि उसने ही जनमेजय के पिता को काटा था। इस प्रकार यज्ञ का नाम सर्प सत्र या सर्प यज्ञ रखा गया। ये यज्ञ अत्यंत शक्तिशाली था. इस यज्ञ की शक्ति के कारण चारों ओर से सांपों को इसमें खींचा जाने लगा। हालांकि तक्षक सर्प पाताल लोक में जाकर छिपने में कामयाब रहा। तब जनमेजय ने यज्ञ करने वाले षियों से मंत्रों की शक्ति को बढ़ाने के लिए कहा, जिससे अग्नि का ताप बढ़ सके। दरअसल, मंत्रों की शक्ति ऐसी थी कि तक्षक को लगा कि वो आग की ओर खिंचा जा रहा है। तब इंद्र ने तक्षक के साथ यज्ञ स्थल पर जाने का निश्चय किया। इसके बाद, तक्षक के जीवन को बचाने के अंतिम प्रयास में, देवताओं ने सर्पों की देवी मनसा देवी का आह्वान किया। देवताओं की पुकार पर मनसा देवी ने अपने बेटे, अष्टिका को भेजा और जनमेजय से यज्ञ को रोकने की विनती करने के लिए कहा जनमेजय को यज्ञ रोकने के लिए राजी करना कोई आसान काम नहीं था, लेकिन अष्टिका सर्प सत्र यज्ञ को रोकने में सक्षम रहे। इस प्रकार सांपों के राजा तक्षक का जीवन बच गया. ये नवी वर्धिनी पंचमी का दिन था। तभी से इस दिन को जीवित बचे सर्पों को श्रद्धांजलि देने रूप में नाग पंचमी का त्योहार मनाया जाने लगा।
ज्योतिष के अनुसार नाग पंचमी के दिन काल सर्प दोष से भी मुक्ति पाई जा सकती है. अगर किसी की कुंडली में काल सर्प दोष है तो नाग पंचमी के दिन उपाय करने से व्यक्ति को इस दोष से मुक्ति मिल सकती है। प्राचीन ग्रंथों के अनुसार, नाग देवता, सांपों के राजा पंचमी तिथि के शासक हैं। इसलिए नाग पंचमी पर नाग देवता की पूजा करने से और उन्हें दूध पिलाने से अध्यात्म की प्राप्ति होती है। जीवन में सफलता मिलती है और धन लाभ के योग बनते हैं।
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