जुनून : शिक्षा की सरकारी व्यवस्था को बदलने में जुटा यह शिक्षक, आगे पढ़ें

विकास चौधरी : पानीपत
कौन कहता है कि सरकारी स्कूलों में शिक्षक मेहनत नहीं करते। बस उस मेहनत के पीछे कुछ कर गुजरने का जज्बा, जोश व जुनून चाहिए जिसके बलबूते सरकारी शिक्षा व्यवस्था को प्रभावी व गुणात्मक बनाने से कोई नहीं रोक सकता। कुछ ऐसा ही कारनामा कर दिखाया है इसराना के राजकीय वरिष्ठ माध्यमिक विद्यालय में कार्यरत कला अध्यापक प्रदीप मलिक ने।
पानीपत जिले के गांव बुआना लाखू में अध्यापक चंद्रहास मलिक व अध्यापिका आजाद कौर के घर 1982 में जन्मे प्रदीप मलिक ने अपने माता पिता के मान,सम्मान व यश को बढ़ाने में कोई कसर नहीं छोड़ी। छुट्टी के बाद व छुट्टी वाले दिन अपने निजी कार्यों को दरकिनार करते हुए अपने स्कूल को समय देने वाले प्रदीप आज किसी परिचय के मोहताज नहीं हैं।
शौक को जुनून में बदला
जिस उम्र में हर कोई बड़े बड़े सपने देखता है उस बचपन से कला अध्यापक प्रदीप ने शिक्षक बन राष्ट्र निर्माण की ठान ली थी। पढ़ना, पढ़ाना अपने घर पर उन्हें विरासत में मिला। बचपन से ही अपनी क्लास के बच्चों को पढ़ाने का शौक उन्हें अध्यापक पेशे की ओर खींच लाई। प्रदीप का कहना है कि शिक्षण को अपना जुनून समझकर राष्ट्र निर्माण करने के प्रति संकल्पित हूं। प्रदीप को बचपन से ही घर में एक दूसरे से सीखने का मौका मिलता था।
जहां गए बदल दी व्यवस्था
अपने शिक्षण कार्य की शुरुआत एसएम हिन्दू स्कूल सोनीपत से 2000 में करने वाले प्रदीप जिस भी विद्यालय में गए वहीं उन्होंने अपनी विशिष्ट कार्यशैली की महक बिखेर शिक्षा व्यवस्था को मजबूत किया। 2004 में सरकारी नौकरी में आने के बाद भी अपने जोश, जज्बे व जुनून को कम नहीं होने दिया। इनके अथक प्रयासों से राजकीय स्कूल पूठर के बच्चों ने सन 2007 से 2013 तक हर क्षेत्र में परचम लहराया। बात चाहे पौधरोपण की हो, साफ सफाई, छात्र संख्या बढ़ाने, शैक्षणिक माहौल बनाने, विद्यालय में शिक्षण को रुचिकर बनाने की हो ये जीतोड़ मेहनत करते हैं। दूसरे जिले के स्कूलों के प्राचार्य भी उन्हें बड़े खुशी खुशी अपने विद्यालय में कार्यभार का न्योता देते रहते हैं। वे जहां भी गए छात्र संख्या में बढ़ोतरी हुई है।
संकल्पित होकर प्रयास किया
विगत दिनों अपने इसराना स्कूल में शिक्षा शताब्दी शैक्षणिक रेल बनाकर उन्होंने हरियाणा भर में ही नहीं अपितु भारत वर्ष में अलग पहचान बनाई। इनकी शिक्षण एवं पाठ्यक्रम को समर्पित पेंटिंग ना केवल मुंह से बोलती हैं अपितु छात्रों को सीखने के लिए आकर्षित करती हैं।
काम ही पहचान : मलिक
बतौर कला अध्यापक प्रदीप मलिक का कहना है कि उन्होंने शिक्षक पेशे को मजबूरी वश नहीं अपितु अपने शौक से लिया है। उन्होंने हमेशा अपने काम को पूजा माना है। अपने कर्तव्य को पूर्ण निष्ठा से पूरा किया जाता है जिसके बलबूते उन्हें ना केवल सुकून मिलता है अपितु खुशी व सम्मान भी मिलता है। बच्चों संग मिलकर काम करने का आनन्द ही अलग है। बच्चे नवाचार व सीखने के प्रति गम्भीर रहते हैं। उनके साथ काम करने ये फायदा भी है वो क्रियाशील तो बनते ही हैं वहीं दूसरी ओर वो पेंटिंग को अपना मानकर सुरक्षित भी रखते हैं। मुझे शिक्षक होने पर गर्व है। जिससे राष्ट्र निर्माण में अपना शत प्रतिशत योगदान दे सकूं।
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