Diwali 2021 : अबकी बार सितारों की नगरी मुंबई में अपनी भरपूर चमक नहीं बिखेर पाएंगे झज्जर के दीये

झज्जर : मिट्टी कला की बदौलत दिल्ली से मुंबई तक अपनी पहचान बना चुके झज्जर के दीये अबकी बार अपनी भरपूर चमक नहीं बिखेर सकेंगे। इस दफा ना तो कोरोना महामारी के चलते लॉकडाउन रहा, ना ही बाजार में मंदी रही फिर भी दीपावली पर दीयों का व्यापार करने वाले झज्जर के कारीगरों के लिए यह त्यौहार सामान्य रहा। पिछले दो माह के दौरान हुई बरसात की अधिकता के चलते मिट्टी के कारीगर डिमांड के अनुसार दीयों का उत्पादन नहीं कर पाए।
कृष्ण मिट्टी कला उद्योग के संचालक विनोद कुमार, जितेंद्र कुमार व सुनील कुमार ने बताया कि वे मिट्टी से तैयार दीयों को थोक के भाव में हरियाणा प्रदेश के अलावा राजस्थान, दिल्ली, मध्य प्रदेश व महाराष्ट्र में भेजते हैं। खासकर फिल्मी सितारों की मुबंई नगरी में यहां के बने दीयों की डिमांड रहती है। उन्होंने बताया कि अबकी बार उनके पास करीब सवा करोड़ दीयों की डिमांड आई थी लेकिन बरसात के कारण समय पर दीये तैयार न होने के चलते उनके यहां से करीब 50 लाख दीयें ही विभिन्न राज्यों में भेजे जा सके।
व्यापारियों में रहा तीसरी लहर का भय
मिट्टी कला उद्योग के जैकी ने बताया कि वे आस-पास के उत्पादकों से दीये एकत्रित करके दीयों की गाड़ी भरकर भेजते हैं। हालांकि वे सीजन को लेकर तीन माह पहले से ही तैयारी करना शुरू कर देते हैं लेकिन अबकी बार कोरोना महामारी की तीसरी लहर का भय भी व्यापारियों में रहा। अधिकांश व्यापारियों को अगस्त और सितंबर माह में लॉकडाउन की आशंका थी जिस कारण उन्होंने दीये तैयार करने का आर्डर नहीं दिया। इसी के चलते वे भी डिमांड के अनुरूप की उत्पादन में जुटे थे। जब दीपावली पर बाजार खुले रहने की उम्मीद जगी तो व्यापारियों ने अक्टूबर माह में एक दम से आर्डर देने शुरू किए लेकिन कम समय में इतना उत्पादन एकदम से नहीं हो पाया। जिसका एक कारण पिछले दिनों की तेज बरसात के कारण मिट्टी तैयार न होना भी रहा।
घर की महिलाएं व बच्चे भी बंटाते हैं हाथ
जैकी ने बताया कि उन्होंने जहां बाहरी राज्यों में उत्पादन के अनुरूप दीये भेज दिए है वहीं अब शहरी क्षेत्र में दीपावली पर लगने वाले दीयों, कुलिया व बडे़ दीयों की तैयारियां की जा रही हैं। आर्डर पूरा कराने व दीयों को आकर्षक रूप देने के कार्य में घर की महिलाएं व बच्चे भी उनका हाथ बंटाते हैं। इस सीजन को भुनाने के लिए महिलाएं जहां गृहकार्य के बाद दीयों पर पेंट व कलाकृतियां बनाने के लिए बैठ जाती हैं वहीं बच्चे भी स्कूल से आने के बाद अपने अभिभावकों द्वारा तैयार किए जा रहे दीयों की पेंटिंग व पैकिंग करने में जुट जाती हैं। जैकी के अनुसार बगैर पेंट किया हुआ सादा दीया जहां एक रुपये से भी कम कीमत का रहता है वहीं तैयार होने के बाद उसकी कीमत पांच रुपये तक हो जाती है। इसके अलावा उनके यहां थोक रेट में कुलिया की कीमत तीन रुपये, सादा दीये साठ पैसे तथा धनतेरस के दिन जलाया जाने वाला बड़ा दीया तीन रुपये से पांच रुपये तक उपलब्ध है।
डिमांड के चलते रोहतक व रूखी से भी मंगवाए दीये
मिट्टी को दीयों, सुराही व विभिन्न आकार देने में निपुण महाबीर ने बताया कि छोटे दीयों की कीमत जहां उनकी मेहनत की अपेक्षा के अनुरूप नहीं हैं। ऐसे में उन्होंने छोटे दीयों का निर्माण करना लगभग बंद कर दिया है। वहीं पेट्रोल व डीजल के दामों में हुई वृद्धि के कारण गाड़ी का किराया बढ़ गया है। जिस कारण तीन-तीन व्यापारी भी एक ही गाड़ी मंगवाने को मजबूर हैं। पहले जो गाड़ी चालीस से पचास हजार रुपये किराए में महाराष्ट्र पहुंच जाती थी अबकी बार वे साठ से सत्तर हजार रुपये किराया मांग रहे थे। अब बाहरी राज्यों की पूर्ति के लिए आस-पास के गांव छोछी, कलानौर, छुड़ानी, सिलानी, के अलावा भट्टी गेट, बेरी गेट व छावनी के अन्य कारीगरों की मदद लेते हैं। अबकी बार अधिक डिमांड के चलते रोहतक व गोहाना क्षेत्र के रूखी गांव से भी तैयार दीये मंगवाए गए।
झज्जर : तैयार दीयों के डिजाइन दिखाता मिट्टी कला उद्योग संचालक जैकी।
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