जिनको राव इंद्रजीत ने किया निराश, उनको अब भूपेंद्र यादव से आस

जिनको राव इंद्रजीत ने किया निराश, उनको अब भूपेंद्र यादव से आस
X
अहीरवाल की राजनीति में भूपेंद्र यादव के एक्टिव होने से अब कई नेताओं को मजबूत अल्टरनेट मिल चुका है। भूपेंद्र के नेतृत्व में यह खेमा उनके साथ मिलकर अहीरवाल में राव की सियायत को मात देने को आतुर है।

नरेन्द्र वत्स : रेवाड़ी

वर्ष 2014 के लोकसभा चुनावों से पहले कांग्रेस छोड़कर भाजपा में शामिल हुए राव इंद्रजीत सिंह ने कभी भी नई पार्टी के पुराने वर्करों और लीडरों को तव्वजो नहीं दी। राव का भाजपा के कई वरिष्ठ नेताओं के साथ भी विरोधियों जैसा बर्ताव रहा। राव ने उन्हें किसी तरह की कोई अहमियत देने की बजाय, अपनी ओर से पूरी तरह दरकिनार रखा गया। उन्होंने भाजपा के कुछ पुराने नेताओं का पॉलीटिकल कैरियर तक को हासिए पर पहुंचाने का काम कर दिया था। अहीरवाल की राजनीति में भूपेंद्र यादव के एक्टिव होने से अब इन नेताओं को मजबूत अल्टरनेट मिल चुका है। भूपेंद्र के नेतृत्व में यह खेमा उनके साथ मिलकर अहीरवाल में राव की सियायत को मात देने को आतुर है।

भाजपा में शामिल होने के बावजूद अहीरवाल में अपने मजबूत जनाधार को राव ने भाजपा के ही अपने पुराने विरोधियों पर हथियार की तरह इस्तेमाल किया। यह बात राव भी अच्छी तरह से जानते हैं कि भाजपा में आने के बाद उनके दो बार गुरूग्राम से सांसद बनने के पीछे उनके अपने जनाधार से कहीं ज्यादा 'मोदी लहर' ने अपना काम किया था। अगर ऐसा नहीं होता, तो गत लोकसभा चुनावों से पहले ही वह अपना रास्ता बदल सकते थे। पटौदा में बड़ी रैली ने यह तो साबित कर दिया था कि इस क्षेत्र में उनके व्यक्तिगत जनाधार को चुनौती देना आसान नहीं है, परंतु अगली रणनीति के लिए उन्होंने पांच राज्यों के चुनाव परिणाम का इंतजार करने की बात कहकर अपने जनाधार पर एक तरह से 'अविश्वास' जता दिया था।

आगामी रणनीति के लिए इन राज्यों के चुनाव परिणाम का इंतजार करने की बात कहकर राव ने यह स्पष्ट संकेत दिया था कि अगर इन चुनावों में भाजपा को जीत हासिल होती है, तो उनके लिए पार्टी छोड़ना बड़े घाटे का सौदा साबित होगा। अगर परिणाम भाजपा के प्रतिकूल होते, तो राव के लिए अलग रास्ते का विकल्प आसान हो सकता था। अब यह तय माना जा रहा है कि व्यक्तिगत जनाधार के सहारे राव किसी भी सूरत में अपना रास्ता बदलने की बजाय, भाजपा में ही बने रहने में भलाई महसूस करेंगे। भूपेंद्र यादव की अहीरवाल में सक्रियता के बाद उन्हें कई मामलों में पार्टी के साथ समझौता भी करना पड़ सकता है। उनकी अपनी ही पार्टी के विरोधी इस समय उनका कद हासिए पर लाने के लिए पूरा जोर लगाएंगे।

पुराने जख्मों का हिसाब बराबर करने की तमन्ना

अहीरवाल भाजपा में ऐसे नेताओं की कमी नहीं हैं, जिन्हें राव के भाजपा में व्यापक प्रभाव का बड़ा राजनीतिक नुकसान उठाना पड़ा है। पूर्व डिप्टी स्पीकर संतोष यादव और पूर्व विधायक रणधीर सिंह कापड़ीवास को राव ने पार्टी की टिकट से वंचित रख दिया था। इसके बाद कापड़ीवास की बगावत भाजपा के हाथ से एक सीट निकाल देने का काम कर गई थी। संतोष ने बगावत का रास्ता अपनाने की बजाय पार्टी में बने रहना ही उचित समझा था। नांगल चौधरी के विधायक अभयसिंह यादव को भाजपा टिकट से वंचित रखने के प्रयास सिरे नहीं चढ़ पाए थे, परंतु ऐन मौके पर राव उनकी मंत्री पद पर ताजपोशी को रोकने में पूरी तरह सफल रहे थे। अटेली से मनीष राव को भाजपा की टिकट से वंचित रखने में भी राव का बड़ा रोल रहा था। अब इन नेताओं ने अपने 'कांटे' निकालने के लिए अहीरवाल में भूपेंद्र यादव को ताकत देने की दिशा में प्रयास तेज कर दिए हैं।

Tags

Next Story