पानीपत की तीसरी लड़ाई के आज 261 साल : इस युद्ध में मिली हार को अब तक नहीं भूल नहीं पाया मराठा समाज, इतना हुआ था जान-माल का नुकसान

विकास चौधरी : पानीपत
पानीपत की धरती पर 14 जनवरी 1761 को मराठा सेना व अफगानिस्तान के अक्रांता अहमद शाह अब्दाली की सेनाओं के बीच हुए लड़े गए युद्ध की आज 261वीं बरसी है। वहीं 18वीं शताब्दी का यह सबसे खतरनाक युद्ध था। युद्ध में मराठा व अब्दाली की सेनाओं का जान-माल का भीषण नुकसान हुआ था। युद्ध में 30 हजार मराठा शहीद हुए थे, जबकि 22 हजार पठान भी मारे गए थे। पशु धन को भी अपार क्षति हुई थी। वहीं 261 साल बाद भी मराठा समाज पानीपत की धरती पर हुई हार को अभी तक भुला नहीं पाया। महाराष्ट्र में चुनाव हो या खेल या फिर अन्य कोई क्षेत्र हार होने पर यह नहीं कहा जाता कि हार गए, कहा जाता है ये तो पानीपत हो गया। स्मरणीय है कि पानीपत की धरती पर हुए मराठाओं के अब्दाली से युद्ध में महाराष्ट्र का कोई ऐसा घर बचा होगा जिसका सदस्य युद्ध में शहीद और घायल न हुआ हो।
दो मोती टूट गए, 73 स्वर्ण मुद्रा खो गई
अब्दाली की सेना के साथ हुए युद्ध में मराठा सेना को जो क्षति हुई थी, इस संबंध में एक पत्र मराठा पेशवा बालाजी राव को भेजा गया था, जिसमें लिखा था कि दो मोती टूट गए, यानि पेशवा बालाजी राव के पुत्र व मराठा सेना के सेनापति विश्वास राव व इसके संरक्षक व पेशवा के चचेरे भाई सदाशिव राव भाऊ युद्ध में शहीद हो गए। 73 स्वर्णमुद्रा खो गई यानि युद्ध में 73 मराठा सरदार भी युद्ध में वीरगति को प्राप्त हुए। चांदी व तांबें का भी अपार नुकसान हुआ यानि सैनिक व पशु धन का भी युद्ध में बडी संख्या में बलिदान हुआ। दूसरी ओर, अब्दाली का भी युद्ध में भीषण नुकसान हुआ। इस युद्ध में हुई क्षति से दुखी अहमद शाह अब्दाली दिल्ली नहीं गया बल्कि पानीपत से ही सीधे अफगानिस्तान चला गया।
जाट सम्राट की सलाह मानी गई होती तो नहीं होता युद्ध
भारतीय इतिहास के अनुसार मराठा सेना के मराठा पेशवा बाजाजी राव में राजनीतिक महत्वकांक्षा के चलते उत्तर भारत के ज्ञाता मराठा सरदारों की अनदेखी कर अपने चचेरे भाई सादशिव राव भाऊ व अपने पुत्र विश्वास राव को उत्तर भारत में अब्दाली से युद्ध करने भेजा था। वहीं भाऊ जहां दंभी प्रवृति के थे, विश्वास राव स्वयं कोई निर्णय लेने में सक्षम नहीं थे। भाऊ ने तैश में आकर महाराजा भरतपुर सूरजमल के साथ जहां संधि तोड़ी, वहीं अब्दाली से युद्ध करने के लिए गर्मी का मौसम आने तक का इंतजार नहीं किया। मराठा सेना के पास रसद नहीं थी, सेना घास फूंस खाकर काम चला रही थी।
महाराजा भरतपुर ने दी मराठाओं को शरण
युद्ध होने के बाद महाराजा भरतपुर सूरजमल ने मराठा सेना को अपने राज्य में शरण दी और घायलों का उपचार करवाया। मराठा, महिलाओं को अब्दाली की फौज के कहर से बचाया। माहौल सामान्य होने पर महाराजा सूरजमल ने मराठा सेना व महिलाओं को चांदी का एक सिक्का, भोजन व वस्त्र देकर अपनी फौज के संरक्षण में उन्हें महाराष्ट्र भिजवाया।
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