Tokyo Olympics : लाॅकेट में स्वर्गीय मां की फाेटो डालकर ले गया था हॉकी खिलाड़ी सुमित, कभी टपकती थी घर की छत

Tokyo Olympics : लाॅकेट में स्वर्गीय मां की फाेटो डालकर ले गया था हॉकी खिलाड़ी सुमित, कभी टपकती थी घर की छत
X
बचपन में हॉकी स्टिक व जूतों की चाहत ने सुमित को मैदान की तरफ खींचा तो फिर उन्होंने पीछे मुड़कर नहीं देखा। मात्र आठ वर्ष की आयु में बड़े भाई अमित ने सुमित को खेलने के लिए यह लालच दिया था।

सोनीपत। टोक्यो ओलंपिक ( Tokyo Olympics ) में आज 41 साल बाद पूरा देश पुरुष हॉकी टीम ( Indian men's hockey team) द्वारा कांस्य पदक जीतने का जश्न मना रहा है और पूरा देश हॉकी टीम पर गर्व कर रहा है जिस हॉकी टीम के लिए स्पॉन्सर भी नहीं मिले थे आज उसी हॉकी टीम ने देश का सीना चौड़ा कर दिया है। गन्नौर के गांव कुराड के रहने वाले सुमित ( Sumit ) के गांव में भी जश्न का माहौल है। नया इतिहास रचने वाली भारतीय पुरूष हॉकी टीम के सदस्य सुमित के घर पर जश्र का माहौल बन गया है। सुमित के घर व गांव में उत्सव का माहौल बना हुआ है। ढ़ोल बजाकर नाचते-गाते हुए गांव में खुशियां मनाई। सुमित के पिता प्रताप सिंह, बड़े भाई जय सिंह व भाभी ज्योति तथा बीच वाले भाई अमित कुमार ने कहा कि सुमित ने उनका नाम रोशन कर दिया। पिता व भाई आंखों में छलकते आंसू रोक नहीं सके। ग्रामीणों ने लड्डू बाटते हुए खुशी मनाई और कहा कि सुमित की उपलब्धि पर उन्होंने गौरवमयी अनुभूति व्यक्त करते हुए कहा कि गांव-जिला-प्रदेश व देश का नाम ऊंचा किया है। पूरी टीम ने दमदार प्रदर्शन करते हुए भारत की झोली को पदक से भरा है।

लाकेट में मां की फोटो डालकर वादा करके गया था सुमित, लेकर गांव में आऊंगा

हॉकी खिलाड़ी सुमित पहली बार मां की तस्वीर के लॉकेट को गले में डालकर एक वादा करके गया था और इस वादे के कारण आज सुमित के परिवार में हॉकी टीम द्वारा कांस्य पदक लाने की खुशी का जश्न मनाया जा रहा है । लेकिन मां के बीमारी से मौत के बाद इस संसार से चले जाने के बाद भी सुमित ने हौसला नहीं छोड़ा। परिवार और गुरु जी से भी वादा किया था कि मां के लोकेट की निशानी को मेडल में तब्दील करके लेकर आएगा और लिहाजा आज वह खुशी का दिन सबके सामने है। पूरी टीम की मेहनत के बलबूते आज सुमित ने भी टीम का हिस्सा रहते हुए मां के लॉकेट को मेडल में तब्दील कर दिया है। बेहद गरीब परिवार से निकलकर ओलंपिक का सफर तय करने वाला सुमित हॉकी टीम में सबसे ज्यादा फिट खिलाड़ी माना जाता है।


भारतीय हॉकी टीम की जीत के बाद विजयी चिन्ह बनाते हुए सुमित के परिजन।

रात भर छत टपकती थी, इंतजार करते थे बरसात बंद हो, बहुत गरीब में जीवन यापन किया

बड़ भाई जय सिंह, छोटे भाई अमित का कहना कि उनके लिए आज बहुत खुशी का दिन है। मेरे भाई ने खुद मजदूरी कर अपने लिए हाकी व अन्य साधन जुटाए। वह परिवार के साथ होटल पर भी मजदूरी करने गया। वे गांव के लोगों के द्वारा किए सहयोग को भी नही भूल सकते। ग्रामीणों ने भी भाई के सपने को साकार करने में बहुत योगदान दिया। आज उनका भाई व उनकी टीम पूरे देश में छाई हुई है। उनका परिवार आज भी अपना जीवन बसर करने के लिए मेहनत मजदूरी करता है। पारिवारिक हालात काफी दयनीय रही है। जिनको बयां करना भी उनके लिए आसान नहीं है। एक वक्त होता था जब पूरा परिवार एक ही कमरे में रहता था और बारिश के दिनों में छत टपकने लगती थी। रात भर टपकने वाली छत के बंद होने इसका इंतजार करते थे और ऐसे करते-करते सुबह हो जाती थी और हालात यह थे कि सुबह मजदूरी करने के लिए जाना पड़ता था। सुमित की मेहनत के बल पर परिवार में खुशी है।

सुमित की मां जिंदा होती तो आज बेटे को टोक्यों में पदक की डबल खुशी होती

सुमित के पिता प्रताप सिंह ने पदक जितने की खुशी जाहिर करते हुए बताया कि अगर आज सुमित की मां जिंदा होती तो बेटे को टोक्यों में डबल खुशी होती। बेटे सुमित ने पिछले साल नवम्बर में जब बीमारी होने के दौरान उनकी हालत नाजुक थी तो सिर पर हाथ रखवाकर वायदा किया था कि मां बस भगवान तुझे वो दिन दिखा दे कि अपने बेटे के गले में मैडल देख और बेटा देख में आपका नाम रौशन करे। सुमित अपने गले के लोकेट में मां की फोटो को डाले रहता है कि उसके साथ मां हमेशा रहे। आज उनकी जीत की खुशी बहुत है। वे इसका श्रेय अपने गांव को देते है। गांव ने भी उनका बहुत सहयोग किया।

अभावों की भट्ठी में तपकर खरा सोना बना कुराड़ का सुमित

अभावों की भट्ठी में तपकर कुराड़ का प्रतिभाशाली हॉकी खिलाड़ी सोना बनकर निकला है, जिसे सोनीपत का पहला पुरूष ओलंपियन हॉकी खिलाड़ी होने का गौरव भी मिला है। सुमित आज किसी परिचय के मोहताज नहीं है। बचपन में हॉकी स्टिक व जूतों की चाहत ने उन्हें मैदान की तरफ खींचा तो फिर उन्होंने पीछे मुड़कर नहीं देखा। मात्र आठ वर्ष की आयु में बड़े भाई अमित ने सुमित को खेलने के लिए यह लोभ दिया। बस, सुमित फौरन गांव के एचके वरिष्ठ माध्यमिक विद्यालय में स्थापित हॉकी अकादमी की ओर दौड़ लिया। हॉकी स्टिक व जूते पाकर ऐसी खुशी मिली कि उन्होंने हॉकी को ही जीवन बना लिया।

Tags

Next Story