Tokyo Olympics : हॉकी में बेटियों की ऐतिहासिक जीत पर छलक पड़े परिजनों के आंसू, बोले- आज ही मनाएंगे दिवाली

Tokyo Olympics : हॉकी में बेटियों की ऐतिहासिक जीत पर छलक पड़े परिजनों के आंसू, बोले- आज ही मनाएंगे दिवाली
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कप्तान रानी के पिता रामपाल व माता राममूर्ति, नवजोत कौर के पिता सतनाम सिंह व नवनीत के पिता बूटा सिंह ने कहा कि मैच शुरू होने से पहले ही वह तड़के गुरूद्वारे व मंदिर में पहुंचे जहां जाकर उन्होंने भारतीय महिला हॉकी टीम की जीत के लिए अरदास की थी।

हरिभूमि न्यूज. कुरुक्षेत्र/ शाहबाद

टोक्यो ओलंपिक ( Tokyo Olympic) में क्वार्टर फाईनल में बेटियों की शानदार जीत पर हॉकी खिलाड़ियों ( Women Hockey Players ) के परिजन और हॉकी प्रेमी में खुशी की लहर है। हॉकी प्रेमियों ने जगह-जगह मिठाई बांंटी और बड़ी संख्या में लोग बधाई देने खिलाड़ियों के घर पहुंच रहे हैं। बेटियों की इस ऐतिहासिक जीत पर उनके परिजनों की आंखों से खुशी के आंसू छलक पड़े। परिजनों ने बेटियों को सेमिफाइनल व फाइनल में जीत का आशीर्वाद दिया है। उन्होंने कहा कि इस जीत की खुशी दिवाली से कम नहीं है और घरों पर दीपमाला कर खुशी का इजहार किया जाएगा। टोक्यों ओलंपिक में बेटियों की ऐतिहासिक जीत पर खुश कप्तान रानी के पिता रामपाल व माता राममूर्ति, नवजोत कौर के पिता सतनाम सिंह व नवनीत के पिता बूटा सिंह ने कहा कि मैच शुरू होने से पहले ही वह तड़के गुरूद्वारे व मंदिर में पहुंचे जहां जाकर उन्होंने भारतीय महिला हॉकी टीम की जीत के लिए अरदास की और टीम की जीत के बाद भी मंदिर व गुरूद्वारे में जाकर भगवान का शुक्रिया अदा किया।

परिजनों ने कहा कि इस ऐतिहासिक से बेटियों ने दिखा दिया है कि बेटियों किसी भी क्षेत्र में कम नहीं है। इस जीत के साथ हॉकी को देश में नई पहचान मिली है और अब सरकार को देश में हॉकी को मजबूत करने के लिए सशक्त कदम उठाने चाहिए। रानी के पिता रामपाल, नजवोत के पिता सतनाम सिंह व नवनीत के पिता बूटा सिंह ने कहा कि वह टीवी पर आंखे गढ़ा मैच देख रहे थे। लेकिन जब पेनल्टी कार्नर को मौका मिला और टीम ने इस मौके को गोल में तबदील किया तो उनकी आंखों से खुशी के आंसू छलक पड़े थे और सभी ने एक दूसरे को फोन पर बधाई देकर इस खुशी का इजहार किया।

मुफलिसी में बीता रानी रामपाल का जीवन

कप्तान रानी रामपाल ने महज 6 साल की उम्र में हॉकी स्टिक थामी थी। उनके पिता घोड़ागाड़ी चलाते थे, जिंदगी बड़ी मुफलिसी में गुजरी लेकिन बावजूद इसके उन्होंने कभी हार नहीं मानी। 9 साल की उम्र से ही शाहाबाद हॉकी अकादमी में दाखिला ले लिया और द्रोणाचार्य अवॉर्डी बलदेव सिंह से हॉकी के गुर सीखे। इतना ही नहीं बल्कि 14 साल की कम उम्र में नैशनल टीम में चयन हुआ और सबसे कम उम्र की महिला हॉकी प्लेयर का खिताब अपने नाम किया। उसके बाद 2009 में चैंपियन चैलेंज टूर्नामेंट के फाइनल में 4 गोल दागकर टीम को तो जीत दिलाई ही साथ ही टीम में अपना लोहा भी मनवाया। उसी साल एशिया कप में भी टीम को सिल्वर मेडल जीताने में बड़ी भूमिका निभाई। इसके बाद उन्हें 2020 में राजीव गांधी खेल रत्न और पद्म श्री से सम्मानित किया गया।


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