जीव उपचार केंद्र में करंट से पशु चिकित्सक की मौत, बचपन से था पशुओं से लगाव, सेवा करते-करते चल बसे

जीव उपचार केंद्र में करंट से पशु चिकित्सक की मौत, बचपन से था पशुओं से लगाव, सेवा करते-करते चल बसे
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मृतक की पहचान करीब 31 वर्षीय इंद्रपाल सिंह पूनिया के रूप में हुई है। इंद्रपाल मूलरूप से राजस्थान के झुंझनू का निवासी था। पिछले कई वर्षों से यहां बहादुरगढ़ में पशुओं को चिकित्सा सेवा दे रहा था। इन दिनों बालोर रोड स्थित श्रीकृष्णा उपचार केंद्र में कार्यरत था।

हरिभूमि न्यूज. बहादुरगढ़

गांव बालोर रोड स्थित श्रीकृष्णा गो एवं वन्य जीव उपचार केंद्र में करंट लगने से एक पशु चिकित्सक की मौत हो गई। पशुओं के लिए हिटर चालू करते वक्त चिकित्सक हादसे का शिकार हुआ। पुलिस ने पोस्टमार्टम करा शव परिजनों को सौंप दिया है।

मृतक की पहचान करीब 31 वर्षीय इंद्रपाल सिंह पूनिया के रूप में हुई है। इंद्रपाल मूलरूप से राजस्थान के झुंझनू का निवासी था। पिछले कई वर्षों से यहां बहादुरगढ़ में पशुओं को चिकित्सा सेवा दे रहा था। इन दिनों बालोर रोड स्थित श्रीकृष्णा उपचार केंद्र में कार्यरत था। जानकारी के अनुसार, सोमवार की सायं एक पीडि़त कुत्ते को ठंड से बचाने के लिए हिटर चालू कर रहा था। इसी दौरान करंट से झुलस गया। केंद्र के कर्मचारियों की नजर पड़ी तो उन्होंने संभाला लेकिन इंद्रपाल की सांसें थम चुकी थी। सूचना मिलते ही पुलिस मौके पर पहुंची और आवश्यक कार्रवाई शुरू की। मंगलवार को नागरिक अस्पताल में पोस्टमार्टम करा शव परिजनों को सौंप दिया गया। सेक्टर-9 चौकी से जांच अधिकारी श्रीचंद ने कहा कि मामले में 174 के तहत कार्रवाई की गई है।

इंद्रपाल को बचपन से था पशुओं से लगाव, सेवा करते-करते चल बसा

करंट लगने से जान गंवाने वाले चिकित्सक इंद्रपाल को बचपन से ही पशुओं से गहरा लगाव था। इसी लगाव के चलते वह पशु चिकित्सक बना और जीव सेवा को अपना ध्येय बना लिया। अंतिम समय भी वह एक पीडि़त जीव की सेवा में लगा था। सेवा करते-करते ही इस दुनिया से चल बसा। उसकी मौत पर जीव प्रेमियों ने दु:ख जताया है।

नागरिक अस्पताल में मौजूद परिजनाें ने बताया कि इंद्रपाल परिवार का इकलौता पुत्र था। बचपन से ही उसका गाय सहित अन्य जीवों से गहरा लगाव था। जब भी किसी घायल पशु को देखता तो दु:खी हो जाता था। खुद घायल या बीमार जीव को उपचार देने का प्रयास करने लगता। उम्र बढ़ने के साथ-साथ जीव सेवा के प्रति उसकी रुचि भी और बढ़ती गई। बहन डॉक्टर है और कुणबे के अन्य युवा भी आईआरएस सहित अन्य बड़ी पोस्ट पर हैं, लेकिन इंद्रपाल ने दूसरी राह चुनी। स्कूली पढ़ाई के बाद पशु चिकित्सा की पढ़ाई शुरू कर दी। वह कहता था कि इंसान तो अपना दु:ख बोलकर बयां कर देता है, लेकिन इन बेजुबां जीवों के दर्द को समझने वाला कोई तो होना ही चाहिए।

पशु चिकित्सक बनने के बाद राजस्थान में ही बाइक पर घूम-घूमकर घायल व बीमार पशुओं का ईलाज करने लगा। फिर वह हरियाणा आ गया। यहां बहादुरगढ़ में करीब चार-पांच साल से था। इंद्रपाल की सेवा और खुशी में हम भी खुश थे, लेकिन हमें क्या मालूम था कि सेवा करते-करते वह हमें हमेशा के लिए छोड़ जाएगा। श्रीकृष्णा गो एवं वन्य जीव उपचार केंद्र से जुड़े विक्रम विर्क ने कहा कि डॉ. इंद्रपाल में पशुओं के प्रति गहरा समर्पण भाव था। हर वक्त जीव सेवा के लिए तत्पर रहता था। दिन हो या रात, एक कॉल पर घायल जीव का उपचार करने पहुंच जाता था। घायल पशुओं का बच्चों की तरह ख्याल रखता था। उसके जाने के बाद केंद्र में मौजूद जीवों का सहारा छिन गया है। अन्य सेवादार सहित समिति से जुड़े तमाम लोग दुखी हैं। चिकित्सक इंद्रपाल सिंह केी कमी हमेशा खलेगी।

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