तीरंदाजी : Archery में झंडे गाड़ रहा विकास भाकर, दोनों पांवों से दिव्यांग होने के पश्चात भी जुनून कम नहीं

तीरंदाजी : Archery में  झंडे गाड़ रहा विकास भाकर, दोनों पांवों से दिव्यांग होने के पश्चात भी जुनून कम नहीं
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दिव्यांगता तो धता बताते हुए दादी गौरी खेल मैदान में बच्चों को खेलता देख मन में उमंग जागी और आर्चरी कोच यतिन्द्र सारसर के मार्गदर्शन में आर्चरी खेल को चुना और फिर मुड़कर पीछे नहीं देखा।

बवानीखेड़ा। कौन कहता है आसमां में छेद नहीं होता एक पत्थर तो तबीयत से उछालो यारा कुछ इसी प्रकार की पंक्ति को दिमाग में बिठाकर दोनों पांवों से शत.प्रतिशत दिव्यांग होने पश्चात भी हिम्मत नहीं हारी है बवानी खेड़ा के लाडले और आर्चरी खिलाड़ी विकास भाकर ने।

पिता राममूर्ति और माता मूर्ति देवी के घर 6 संतानों में दो भाइयों व चार बहनों में 5 जुलाई 1985 को जन्में सबसे छोटे विकास भाकर की कहानी ही कुछ ऐसी है। अगर आम इंसान हो तो कभी का टूट जाता, लेकिन एक बात जहन में बिठाई जब हौसला कर लिया ऊंची उड़ान का फिर देखना फिजूल है कद आसमान का, डरना नहीं यहां तू किसी भी चुनौती से, बस तू ही है सिकंदर सारे जहान का और फिर पीछे मुड़कर नहीं देखा। हालांकि बड़े भाई का वर्ष 2001 में स्वर्गवास हो गया तो पिता भी वर्ष 2004 में भगवान को प्यारे हो गए। बहनों की शादी के बाद वे भी अपने ससुराल चली गई। लेकिन घर में मां संग अकेले होने व दोनों पांवों से दिव्यांग होने के बाद दिव्यांगता तो धता बताते हुए दादी गौरी खेल मैदान में बच्चों को खेलता देख मन में उमंग जागी और आर्चरी कोच यतिन्द्र सारसर के मार्गदर्शन में आर्चरी खेल को चुना और फिर मुड़कर पीछे नहीं देखा।

वर्ष 2019 में झटके तीन मैडल

विकास भाकर ने बताया कि भाई का साथ व पिता का साया सिर से उठने के बाद एक बार तो वे अपने आपको लुटा हुआ महसूस करने लगे क्योंकि वर्ष 2006 में एक एक्सीडेंट के बाद उसकी रीढ़ की हड्डी में ऐसी चोट लगी की फिर कभी उठ ही नहीं पाए और पूरी दुनिया ही विरान हो गई लेकिन परिजनों व साथियों ने खूब संभाला और उनके सहयोग से खेल में रूचि दिखाई और मार्च 2019 में रोहतक में आयोजित नेशनल आर्चरी प्रतियोगिता में दो गोल्ड और एक ब्राऊन प्राप्त कर बवानीखेड़ा दादूनगरी की झोली में डाल दिए।

सरकार से मांग

विकास भाकर ने बताया कि वे जिस हालात से गुजर रहे हैं वे उनके परिजन व उनके मित्र विनित, संदीप, सुनील, दीपक, श्याम, अमित सहित अन्य साथी जानते हैं। इस मुकाम पर पहुंचने पश्चात जहां सरकार द्वारा कैश अवार्ड मिलना था, लेकिन किसी पॉलिसी के तहत उसे बंद कर दिया। जबकि उनके जैसे खिलाड़ियों का मनोबल बढ़ाते हुए सरकार को आगे आकर उनका भरपूर सहयोग रकना चाहिए। इस खेल के लिए वे कभी अपने घर तो कभी बहन-बहनाेई व मित्रों के सहयोग से इस खेल को आगे ले जाने का कार्य कर रहे हैं। लेकिन सरकार से उनकी मांग है व उन्हें पूरी उम्मीद है कि वे उसकी और ध्यान देने का काम करेंगें ताकि उनके हौसलों को पंख लग सकें।

दोस्तों व परिजनों का एहसान सात जन्म नहीं उतार सकता

विकास भाकर की मानें तो उनके माता-पिता, बहन-बहनाेइयों, दोस्तों के भरपूर सहयोग का एहसान वे सात जन्मों तक नहीं उतार सकते। उनके दोस्त समय समय पर उन्हें पूरे कस्बा की आबो.हवा महसूस करवाने के लिए व्हीलचेयर पर बैठाकर घुमाते हैं और उनके कदमों से वे अपने आपको चलता हुआ महसूस करते हैं। ऐसे दोस्तों के रूप में मिले भाइयों को वे हरदम याद करते हैं और वे भी उनकी एक आवाज पर उनके पास खड़े होते हैं।

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