पर्यावरण प्रहरी : दो जवान बेटों की मौत हुई तो पौधों को ही बच्चों की तरह पालने लगे 73 साल के श्रीभगवान, बोले : यही मुझे जिंदा रखेंगे

पर्यावरण प्रहरी : दो जवान बेटों की मौत हुई तो पौधों को ही बच्चों की तरह पालने लगे 73 साल के श्रीभगवान, बोले : यही मुझे जिंदा रखेंगे
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श्री भगवान पिछले आठ साल से फलों व ऑक्सीजन देने वाले पौधों के बीजों से पौध तैयार करते हैं और लोगों में नि:शुल्क वितरित कर रहे हैं। उन्होंने नीम की पकी निम्बोली एकत्रित करके पौधे उगाने शुरू किए थे।

हरिभूमि न्यूज : भिवानी

भले ही कोई आर्थिक मदद न मिलती हो, लेकिन पौधारोपण के प्रति शहर में रहने वाले श्री भगवान (73 वर्षीय) को गजब का जुनून है। खुद व आसपास के पड़ौसियों से खाली आटे की थैली मांगकर उनमें पेड़ों की पौध तैयार करते हैं और फिर लोगों में नि:शुल्क वितरित करते हैं। श्री भगवान पिछले आठ साल से रोहतक रोड स्थित प्लाट में फलों व ऑक्सीजन देने वाले पौधों के बीजों से पौध तैयार करते हैं और लोगों में नि:शुल्क वितरित कर रहे हैं। अब तक हजारों पेड़ बांट चुके हैं। खुद भी कई दर्जन त्रिवेणी व पौधे लगा चुके हैं। उनको यह जुनून दो जवान बेटे खोने के बाद लगा। उसके बाद पौधों को ही बच्चों की तरह पालने लगे। बुजुर्ग श्रीभगवान ने कहा कि मेरे जाने के बाद मुझे द्वारा लगाए गए पौधे ही मेरी संतान की तरह मुझे जिंदा रखेंगे। पेड़ की छांव में बैठने वाला व्यक्ति पौधा लगाने वाले को याद करता है।

रोहतक रोड रहने वाले श्रीभगवान ने जीवन में बहुत उतार चढाव देखे। दो जवान बेटे खोने के बाद श्रीभगवान ने पौधों को ही अपना सब कुछ मान लिया। घर पर ही फलों व छायादार पेड़ पौधों के बीजों को एकत्रित करते है और फिर घर में ही उनकी पौध तैयार करनी शुरू कर देते है। कोई वितिय मदद न मिलने की वजह से वे अपने घर व पड़ौसियों से आटे की खाली थैलियां एकत्रित करके उनके पौध तैयार करते हैं ताकि पॉलिथीन व पैकेट में लगे पौधा किसी व्यक्ति को आसानी से दिया जा सके। उनके प्लाट में सैंकड़ों पौधों की पौध तैयार कर रहे है।

नीम की निम्बोली जमीन में दबाकर पौध तैयार करनी शुरू की

श्रीभगवान ने बताया कि करीब आठ साल पहले बेटे की मौत से गम के सागर में डूबे हुए थे। चिंता में बैठे थे। अचानक उनकी नजर नीम के पेड़ के नीचे बिखरी निम्बोली की गुठली नजर आई। उन्होंने निम्बोली की गुठलियों को इक्कठा किया और जमीन में दबा दिया। कुछ दिनों बाद नीम की पौध तैयार हो गई। उन्होंने उनको उखाड़कर अन्य जगहों पर लगा दिया। अब वे नीम के पेड़ बन गए हैं। उसके बाद उनको जहां पर भी पिपल, बबड़ नीम या अन्य कोई छायादार पौधा उगा नजर आया। वे उसको तत्काल उखाड़कर अपने घर ले आते हैं और वहीं पर आटे के खाली थैली या टूटे मटके में लगा देते हैं। कोपल फूटने के बाद उस पौधे को सार्वजनिक जगह पर रोपित कर देते हैं या फिर कोई पौधारोपण करने वाला उनसे ले जाता है।

बच्चों की तरह पालते हैं पौधे

उन्होंने बताया कि बच्चों की तरह वे पौधे का पालन करते हैं। विगत में एक मीठा नीम का पौधा लगाया था। ज्यादा गर्मी होने की वजह से पौधा मुर्झाने लगा तो उनको लगा कि गर्मी की वजह से पौधा कभी खत्म न हो जाए। उन्होंने पौधे को गर्मी से बचाने के लिए टूटा मटके से ढक दिया। उन्होंने बताया कि वे जितने भी पौधे तैयार किए जाते हैं, उनमें सुबह व शाम के वक्त जरूर पानी देते हैं। अगर वह कहीं पर चला जाए तो उनकी पत्नी कमला पौधों की फुव्वारे या बाल्टी से सिंचाई करती है। सर्दियों में भी पौधों को पौधों को कपड़े या अन्य किसी चीज से ढका जाता है।

पौधे मेरी संतान की तरह रखेंगे मुझे जिंदा

श्री भगवान ने बताया कि जिस तरह संतान बाप को जाने के बाद भी जिंदा रखती है,उसी तरह पेड़.पौधे भी जिंदा रखते हैं। जो पौधे लगाए जाते हैं वे बड़े होकर हर व्यक्ति को छांव देते हैं। छाव में बैठने वाला व्यक्ति पौधे लगाने वाले को याद करता है। आज फलदार पौधा लगाया है तो आने वाली पीढी फल खाएंगी। बुजुर्गों द्वारा लगाए गए पौधों की छांव में बैठकर हम शुकुन महसूस कर रहे है।

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