मनोहर लाख खट्टर की सरकार पर प्राइवेट स्कूलों को उजाड़ने की साजिश का आरोप क्यों लगा रहे हैं प्राइवेट स्कूल संचालक?

रोहतक। हरियाणा प्राइवेट स्कूल संघ ने शिक्षा विभाग द्वारा गत दिवस बिना एसएलसी के सरकारी स्कूलों में एडमिशन दिए जाने संबंधी निर्देशों पर कड़ी प्रतिक्रिया व्यक्त की है। संघ ने आरोप लगाया कि इस तरह के तुगलकी फरमान जारी कर प्रदेश सरकार प्राइवेट स्कूलों को खत्म करने का षडय़ंत्र रच रही है। अगर यह निर्णय वापस नहीं हुआ तो प्राइवेट स्कूल अपने अपने स्कूलों पर ताला लगाकर चाबी मुख्यमंत्री का सौपने पर मजबूर हो जाएंगे। इसके साथ ही संघ ने सरकारी आदेशों की प्रतियां जलाकर विरोध प्रदर्शन करने व करनाल स्थित मुख्यमंत्री आवास का घेराव करने की चेतावनी दी है।
हरियाणा प्राइवेट स्कूल संघ के प्रदेशाध्यक्ष सत्यवान कुंडू, संरक्षक तेलूराम रामायणवाला, प्रांतीय महासचिव पवन राणा व अशोक रोहतक, कोषाध्यक्ष श्यामलाल शर्मा, रणधीर पूनिया, संजय धत्तरवाल व प्रदेश प्रवक्ता विनय वर्मा ने कहा कि प्राइवेट स्कूल पहले ही करोना महामारी की मार झेल रहे हैं, और हजारों स्कूल बंद होने की कगार पर हैं। इस विकट परिस्थिति में सरकार को चाहिए कि प्राइवेट स्कूलों को वित्तीय सहायता मुहैया कराए, जबकि सरकार इसके उलट हर रोज तुगलकी फरमान जारी कर प्राइवेट स्कूलों को बंद करने के लिए आमाद है। अब शिक्षा निदेशालय ने सरकारी स्कूलों में दाखिलों को लेकर बड़ा ही दुर्भाग्यपूर्ण फैसला लिया है। इसके अनुसार अब सरकारी स्कूलों में दाखिला लेने के लिए एसएलसी की जरूरत नहीं पड़ेगी। सभी जिला शिक्षा अधिकारीयों को निर्देश जारी किए गए हैं कि सरकारी स्कूलों में आने वाले हर बच्चे को तुरंत दाखिला दिया जाए, चाहे उसके पास स्कूल लीविंग सर्टिफिकेट न हो। ऐसे विद्यार्थियों के पिछले स्कूल को सरकारी स्कूल की और से दाखिले के बारे में सूचित कर 15 दिन में स्कूल लीविंग सर्टिफिकेट जारी करने का आग्रह किया जाएगा। अगर 15 दिन में यह सर्टिफिकेट जारी नहीं हुआ तो इसे स्वत: ही जारी मान लिया जाएगा।
कोरोना महामारी के दौरान जारी हो चुके है दर्जनों तुगलकी फरमान
कुंडू ने कहा कि 19 मार्च से जून के मध्य तक शिक्षा विभाग ने दर्जनों ऐसे नोटिफिकेशन जारी किए हैं, जिसको देखकर ऐसा लगता है कि यह सरकार शिक्षा और शिक्षक विरोधी है। सरकार कभी यह कहती है कि बच्चों से फीस ना लो, कभी दाखिला ना लो या अन्य फंड ना लो। ऐसे में सेल्फ प्रबंधन के कम बजट के प्राइवेट स्कूल केवल ट्यूशन फीस में कैसे आधुनिक सुविधाएं दे पाएंगे। प्राइवेट स्कूलों को फीस लेनी ही पड़ेगी ताकि वह अध्यापक साथियों को वेतन दे सके और ट्रांसपोर्ट के सभी खर्चे वहन कर सकें। प्राइवेट स्कूलों में पढ़ रहे बच्चों के अभिभावकों ने अभी तक इस सत्र के तीन महीनों की फीस जमा नहीं करवाई है।
कई अभिभावकों का तो पिछले साल का भी काफी बकाया रह रहा है फिर भी प्राइवेट स्कूल जैसे तैसे अपने वित्तीय साधनों से अपने स्कूल की व्यवस्था को संभाले हुए हैं और ऑनलाइन काम दे रहे हैं कि हालात ठीक होने पर अभिभावक स्कूल संचालकों को फीस दे देंगे, जिससे अध्यापक साथियों को सैलरी समय पर दी जा सकेगी। उन्होंने कहा कि कभी सरकार स्कूलों के अध्यापकों पर पांच हजार रूपए का जुर्माना लगा देती है, तो कभी एफीलिएशन फीस दो से बढ़ाकर 20 हजार कर दी जाती है और फिर एक नोटिफिकेशन जारी होता है, जिसमें कहा जाता है कि सभी स्कूलों को 10 साल के बाद फार्म नंबर दो भरकर रिन्यू करवाएं क्योंकि रिन्यू कराने से भारी भरकम रिश्वत अधिकारियों तक पहुंचेगी और भ्रष्टाचार का नंगा नाच होगा। एक बार मान्यता लेने के लिए प्राइवेट स्कूल संचालकों को ना जाने कितने दरों पर माथा टेकना पड़ता है और इस तरह के फरमान जारी होने से कितना समय और पैसा बेकार में बह जाता है। उन्होंने कहा कि हाल ही में जारी पत्र से यह स्पष्ट हो गया कि विभाग और इसके अधिकारी सिर्फ और सिर्फ सरकारी स्कूलों की चिंता करते हैं।
उन्होंने इस पत्र की कड़ी निंदा करते हुए इसे तुरंत वापस लेने की मांग की। प्रदेशाध्यक्ष सत्यवान कुंडू ने कहा कि ग्रामीण क्षेत्र के स्कूलों में तो अभी अभिभावकों ने पिछले सत्र की फीस भी नहीं दी है। ऐसे में यदि उन्हें सरकारी स्कूल में जाने की छूट मिलती है तो ये गलत और दुर्भाग्यपूर्ण हैं। इस स्थिति में प्राइवेट स्कूलों की बकाया करोड़ों रूपए की फीस कौन भरेगा, अध्यापक व अन्य स्टाफ की सैलरी कौन देगा। ये तो सरकार अभिभावकों को प्राइवेट स्कूलों के खिलाफ उकसा रही है। उन्होंने कहा कि अगर सरकार इस निर्णय को वापस नहीं लेती है तो प्राइवेट स्कूल आंदोलन करने पर मजबूर होंगे व अपने स्कूलों को ताले लगाकर चाबियां अपने अपने क्षेत्र के विधायकों को सौंप देंगे। इसके साथ ही उन्होंने प्राइवेट स्कूल संचालकों से भी अपील की कि वे सरकार से तंग आकर कोई ऐसा फैसला ना लें, जिससे शिक्षा और समाज को हानि हो।
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