हरियाणा में सियासी गर्मी फिर तेज : कुलदीप बिश्नोई भाजपा में जाकर आदमपुर बचा पाएंगे या नहीं? यही बड़ा सवाल

धर्मेंद्र कंवारी : रोहतक
कुलदीप बिश्नोई जब से गृहमंत्री अमित शाह और भाजपा अध्यक्ष जेपी नड्डा से मिले हैं तब से तरह तरह की चर्चाएं देखने सुनने को मिल रही हैं। असल में हरियाणा की राजनीति है ही ऐसी कि कुछ ना कुछ होता ही रहता है अलग तरह का। हरियाणा राजनीति में वो करता है जिसकी देश ने कभी कल्पना भी नहीं की होती। अभी हाल ही में राज्यसभा चुनाव तो आपको याद ही होगा?
माकन जी का कांग्रेसियों ने मक्खन निकाल दिया और कुलदीप बिश्नोई भाजपा के हीरो बन गए। अब वो उसी भारतीय जनता पार्टी के साथ अपना राजनीतिक भविष्य संवारने की कोशिश करेंगे जिसे वो सबसे ज्यादा धोखेबाज पार्टी बताया करते थे लेकिन ये तब उनकी मजबूरी थी, राजनीतिक बयान के कोई खास मायने नहीं होते इसलिए हम आज उनके राजनीतिक भविष्य पर बात करेंगे। एक सवाल का जवाब और दें और खासकर आदमपुर से जुडे साथी तो बताएं ही कि कांग्रेस में उनके मुकाबले का कंडीडेट कौन हो सकता है?
चौधरी भजनलाल का परिवार आदमपुर में हाथी का कुनबा है। हाथी के पांव को उखाडने की हिम्मत सबमें नहीं होती है। कुलदीप बिश्नोई अपने पिता के जमाए इसी पांव की कमाई वर्षों से खा रहे हैं लेकिन राजनीतिक रूप से आज भी स्थापित नहीं हो पाए हैं लेकिन उनकी कोशिश जारी हैं। पहले तो भूपेंद्र सिंह हुड्डा की वजह से उनके पिता चौधरी भजनलाल को कांग्रेस छोडनी पडी थी और हजकां बनाकर कुलदीप बिश्नोई जी को उन्होंने स्थापित करने की कोशिश की लेकिन वो स्थापित नहीं हो पाए।
भाजपा से उन्होंने बहुत धोखे खाए और उसके बाद हजकां को तोडकर हुड्डा साहब ने अपना राज चलाया। कुलदीप बिश्नोई को पता चल गया कि कांग्रेस के बिना गुजारा नहीं है तो वो कांग्रेस में लौट आए लेकिन एक बार फिर से उनका यहां भूपेंद्र सिंह हुड्डा से पाला पड़ा हालांकि हुडडा साहब की कोठी पर बैठकर उनके हाथों से खीर खाकर उन्हें सबकुछ ठीक करने की कोशिश की लेकिन दोस्तों एक मयान में तो एक ही तलवार रह सकती है और नतीजा ये हुआ कि कांग्रेस की मयान से कुलदीप बिश्नोई को बाहर होना पडा। भले ही वो जाते जाते कांग्रेस को बडा दर्द दे गए हों लेकिन राजनीति हमेशा आगे की तरफ देखती है। जो पीछे हो चुका है उसको याद नहीं रखा जाता है? लोग तो ये जानने के इच्छुक रहते हैं ईब कै होगा?
चौधरी भजनलाल तो बडे नेता थे ही इसमें कोई शक नहीं है। जब तक वो जीए एक राजा की तरह जीए लेकिन कुलदीप बिश्नोई अपने पिता जैसे नहीं है। राजनेताओं के बच्चों के साथ सबसे बडी दिक्कत तो ये होती है कि जनता हर राजनेता के बच्चे का आकलन उसके पिता की छवि के साथ तुलना करके देखती है और कुलदीप बिश्नोई यहीं मार खा जाते हैं।
अगर आप आदमपुर हलके के चुनावी इतिहास को देखें तो यहां से चौधरी भजनलाल का परिवार 2019 से पहले कभी नहीं हारा है। हां, एक आध पर चुनौतीपूर्ण दौर जरूर आया है और लगा है कि चौधरी भजनलाल का परिवार हार सकता है लेकिन लास्ट में जीत वही जाते हैं।
जीत और हार में अंतर कोई मायने नहीं रखता है क्योंकि जीत तो एक वोट की भी होती है। 2019 के लोकसभा चुनाव में आदमपुर की जनता ने पहली बार चौधरी भजनलाल के पोते और कुलदीप बिश्नाई के बेटे भव्य बिश्नोई को हराकर बृजेंद्र सिंह को हलके में जीत दिलवाई और उसके बाद ये उनके राजनीतिक विरोधियों को जरूर ये यकीन हुआ है कि अब वो समय आ गया है चौधरी भजनलाल के परिवार को भी आदमपुर में हराया भी जा सकता है लेकिन अब बड़ा सवाल ये है कि उनको हरा कौन सकता है? कौन ऐसे चेहरे और क्या ऐसी रणनीति विरोधी अपना सकते हैं?
आदमपुर के चुनाव इतिहास को देखें तो यहां पर चौधरी भजनलाल के परिवार की जीत का मार्जन दस हजार वोटों से कम का रहा है। 1987 में यहां से माता जसमा जी चुनाव लड रही थी और उनके सामने धर्मपाल जी थे। तब जीत का मार्जन 9272 वोटों का रहा था। इसके बाद 2009 में कुलदीप बिश्नोई जब हजकां से चुनावी मैदान में थे तब जयप्रकाश जेपी ने उन्हें अच्छी टक्कर दी थी और जीत का मार्जन 6015 रहा था। इसके अलावा उन्हें यहां से कभी कोई चुनौती सामने नहीं आई। हरियाणा बनने के बाद पहला चुनाव 1967 में हुआ था और यहां से विधायक बने थे चौधरी हरि सिंह डाबडा जी। 1968 में चौधरी भजनलाल यहां से चुनाव लडे और कुल पंद्रह चुनाव में चौधरी भजलाल परिवार ही यहां से जीत दर्ज कराता आ रहा है लेकिन अब उपचुनाव में क्या वो अपने इतिहास को कायम रखेगा या हार जाएगा ये जरूर बातचीत का विषय है।
आदमपुर ने हर हाल में चौधरी भजनलाल परिवार का साथ दिया है लेकिन सोचने वाली बात ये है कि 2019 के लोकसभा चुनाव में कुलदीप बिश्नोई जी के बेटे भव्य बिश्नोई को आदमपुर हलके के लोगों ने क्यों हराया है? क्या फिर से ऐसा हो सकता है?
कुलदीप बिश्नोई जी और उनके समर्थक उनको गैर जाट का नेता बताते हैं लेकिन अब सवाल ये है कि बिश्नोई के करीब अठाइश हजार वोटों के मुकाबले 58 हजार जाट वोटरों वाले आदमपुर हलके में चुनाव अगर तुल गया तो क्या परिणाम होंगे?
आदमपुर में वोटिंग का ट्रेंड समझने की कोशिश करोगे तो आपको एक चीफ साफ साफ पता चल जाएगी कि वहां पर दो ही तरह के वोटर हैं। एक वो जो चौधरी भजनलाल के साथ हैं और एक वो जो चौधरी भजनलाल परिवार के खिलाफ हैं। चौधरी भजनलाल परिवार के खिलाफ जो वोटबैंक है वो भी चौधरी भजनलाल परिवार के खिलाफ तभी वोट करता है जब उन्हें ऐसा लगे कि ये चौधरी भजनलाल परिवार को हरा सकता है तो ही वो उसको वोट डालते हैं नहीं तो चौधरी भजनलाल के परिवार को ही उनमें से बहुत सारे लोग वोट दे देते हैं। 2009 में भी यही हुआ था। चौधरी भजनलाल के विरोधियों को ये लगा था कि अब इनको हराया जा सकता है तभी उन्होंने वोटिंग की। 2019 में भी कुलदीप बिश्नोई की कोई बहुत अच्छी पॉजिशन नहीं थी लेकिन भाजपा ने सोनाली फौगाट को उतारकर उन्हें जीतने का मौका दे दिया।
इतना तो करीबन तय है कि कुलदीप बिश्नोई चुनाव नहीं लडने जा रहे हैं वो अपने बेटे भव्य को चुनाव लडवाएंगे क्योंकि वो हर कोई चाहता है कि बेटा सैट हो जाए किसी तरह से। ये कोई बुराई वाली बात नहीं है नेता का बेटा नेता नहीं बनेगा तो और क्या बनेगा? कुलदीप का उपयोग कह रहे हैं कि भाजपा राजस्थान में बिश्नाेइयों के बीच करेगी ऐसा कहा जा रहा है लेकिन राजनीति में हमेशा नए कारनामे करने के लिए महशूर हरियाणा में कहीं इतना बडा उलटफेर ना हो जाए कि कुलदीप बिश्नोई उपयोग करने लायक भी पता नहीं बचेंगे या नहीं भी बचेंगे?
आदमपुर की वर्तमान में स्थिति ये है कि भाजपा से चाहे कुलदीप आएं या भव्य आएं मुकाबले में केवल दो पार्टिया हैं। कांग्रेस और आप पार्टी। इन दोनों में कौन मुख्य मुकाबले में रहेगी ये कंडीडेट पर निर्भर करता है। कांग्रेस की टिकट भूपेंद्र सिंह हुड्डा को देनी है और कल वह जींद में कह चुके हैं बरौदा वाली फिल्म दिखा देंगे? यानी टिकट हुड्डा ही देंगे? हुड्डा टिकट देंगे तो किसको देंगे ये भी अहम सवाल है? क्योंकि जयप्रकाश जी दावेदार के रूप में भले ही नाम लिया जा रहा लेकिन ये सच्चाई है कि 2009 और 2022 में 13 साल का अंतर है। तेरह साल से जयप्रकाश ना केवल हिसार से बाहर हैं बल्कि पुल के नीचे से काफी पानी बह चुका है। अब तो बिश्नोइयों में ही एक बडा वर्ग ये चाहने लगा है कि क्या सारी उम्र की ठेकेदारी एक ही परिवार के पास रहनी चाहिए या नया नेतृत्व सामने आना चाहिए। जाटों में ये इस पर निर्भर करते कि कुलदीप के सामने कंडीडेट हुड्डा कौन देंगे। पिछले काफी समय से स्थानीय स्तर पर कई युवा खुद को बहुत मजबूत कर चुके हैं। भूपेंद्र सिंह हुड्डा ने अगर यहां सतेंद्र सिंह जैसे कंडीडेट को मैदान में उतारते तो बडा उलटफेर भी संभव है लेकिन अभी दिल्ली दूर है क्योंकि फिलहाल तो सतेंद्र सिंह भी भाजपा में प्रदेश उपाध्यक्ष ही है लेकिन सुनने में आ रहा है वो जल्द ही भाजपा छोड सकते हैं क्योकि उनका हर हाल में चुनाव लडना उनकी राजनीतिक मजबूरी है। वो कांग्रेस में जाएंगे या आप में जाएंगे ये इस पर निर्भर करता है कि कौन उन्हें टिकट देता है? उनके अलावा भी बहुत सारे लोग टिकट चाहते होंगे या जिनके कयास लगाए जा सकते हैं लेकिन अभी समय लगेगा और वक्त बहुत करवट लेगा।
बड़ा सवाल यही है कि आदमपुर में क्या चौधरी भजनलाल परिवार को कोई टक्कर दे सकता है या फिर ये परिवार हमेशा की तरह यहां अजेय ही रहेगा? गढ बहुत मुश्किल से बनते हैं लेकिन इतिहास गवाह है कि कभी ना कभी गढ टूटते भी हैं।
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