हरियाणा यूथ कांग्रेस चुनावों में दीपेंद्र हुड्डा खेमे का पलड़ा रहा भारी, जानें कौन बन सकते हैं प्रदेश प्रधान

यूथ कांग्रेस के चुनाव में एक बार फिर राज्यसभा सांसद दीपेंद्र सिंह हुड्डा खेमे ने जीत दर्ज की है। ज्यादातर जिला और विधानसभा अध्यक्ष पद के लिए दीपेंद्र समर्थकों ने जीत दर्ज की। मूल रूप से गोहाना के रहने वाले दिव्यांशु बुद्धिराजा ने यूथ कांग्रेस के प्रदेशाध्यक्ष पद के चुनावों में सफलता हासिल की है। दिव्यांशु ने इन चुनावों में 4 लाख 90 हजार 755 वोट हासिल किए। उनके निकटम प्रतिद्वंद्वी कृष्ण सातरोड से उन्होंने तकरीबन 2 लाख अधिक मत हासिल किए हैं। कृष्ण को 2,94,099 मत मिले हैं। इन दोनों के साथ 40,862 मत हासिल करने वाले मयंक चौधरी को प्रदेश अध्यक्ष पद के लिये पैनल में चुना गया है। इन तीनों उम्मीदवारो का अभी कांग्रेस आलाकमान के सामने साक्षात्कार होगा जिसके बाद यूथ कांग्रेस का प्रदेशाध्यक्ष तय होगा।
लेकिन जिस तरीके से चुनावों में दिव्यांशु ने एकतरफा जीत हासिल की है, उनका पलड़ा भारी होना तय माना जा रहा है। दिव्यांशु मूलरूप से गोहाना के रहने वाले हैं, लेकिन वे परिवार समेत काफी समय से पंचकूला रह रहे हैं। अब तक किसी उम्मीदवार ने प्रदेश अध्यक्ष चुनावों में इतने वोटों से जीत दर्ज नहीं की है। प्रदेश अध्यक्ष पद के लिए चुने गए 6 में से पांच उम्मीदवार भी दीपेंद्र हुड्डा खेमे से हैं। यूथ कांग्रेस चुनाव में 26 जनरल सेक्रेटरी में से 21 और 31 में से 24 जिलाध्यक्ष दीपेंद्र हुड्डा खेमे के हैं। वहीं दक्षिण हरियाणा के सभी जिलों में हुड्डा खेमे ने क्लीन स्वीप किया है। ऐसा ही प्रदर्शन अंबाला, भिवानी, जींद और हिसार ग्रामीण में रहा है। अंबाला शहरी-ग्रामीण, कालका, तोशाम, आदमपुर, यमुनानगर समेत लगभग लगभग सभी विधानसभा अध्यक्ष पद पर भी दीपेंद्र समर्थकों ने जीत दर्ज की। 90 में से लगभग 75 विधानसभाओं में दीपेंद्र हुड्डा खेमे का वर्चस्व रहा है।
कांग्रेस में युवा संगठन नेतृत्व का चयन वोटिंग के जरिए होता है। पिछले कई सालों से दीपेंद्र हुड्डा समर्थक उम्मीदवार ही चुनाव जीतते आ रहे हैं। हरियाणा के साथ दिल्ली और राजस्थान के यूथ कांग्रेस चुनाव में भी दीपेंद्र हुड्डा का खासा असर देखने को मिलता है। इन राज्यों में भी अक्सर दीपेंद्र समर्थक अध्यक्ष ही चुनाव जीते हैं। एनएसयूआई से लेकर यूथ कांग्रेस की राजनीति में दीपेंद्र हुड्डा जबरदस्त प्रभाव रखते हैं। इस बार उन्हें चुनौती देने के लिए रणदीप सुरजेवाला, कुमारी शैलजा, किरण चौधरी जैसे तमाम नेताओं ने सांझे उम्मीदवार को चुनावी मैदान में उतारा था। लेकिन इन सब पर दीपेंद्र के उम्मीदवार भारी पड़े और उन्होंने बड़े अंतर से जीत दर्ज की।
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