डॉक्टर ने पैरों से चलने से कर दिया था इनकार, National Racing चैंपियनशिप में जीता मेडल

पति की मौत के बाद एक महिला पूरी तरह टूट गई, लेकिन उन्होंने अपना संकल्प नहीं छोड़ा। दिव्यांग बेटे (Handicapped son) को संघर्ष और जिद्द के चलते पैरा एथलेटिक्स (Para athletics) बना दिया। महिला के दिव्यांग बेटे को डॉक्टरों ने पैरों पर खड़ा होने और बोलने में असमर्थ बता दिया। हमीरपुर (Hamirpur) चौकी जंवाला की सुनीता ने हिम्मत नहीं हारी।
बेटे के हर संभव इलाज कराने के लिए दर्जनों अस्पतालों (Hospital) में जगह-जगह भटकीं और डॉक्टरों से सलाह ली। सुनीता का कहना है कि डॉक्टरों ने उन्हें एक ही जवाब दिया। अगर बेटा चल सकेगा फिर बोल नहीं पाएगा। लेकिन उन्होंने हिम्मत नहीं हारी और चंडीगढ़ में एक डॉक्टर को दिव्यांग बेटे को दिखाया। जिसके बाद उसने हरकत करनी शुरू की तो मां की उम्मीद और बढ़ गई।
हालांकि, उन्हें बाद में कामयाबी हासिल हुई। दवाइयां और दिव्यांग बेटे की मां की देखभाल की वजह से पैरों पर खड़ा हुआ। फिलहाल यह नेशनल लेवल(National level) का राष्ट्रीय स्तर का पैरा धावक बन गया है। सुनीता ने बताय कि प्री मैच्योर डिलीवरी के बाद दिव्यांग बेटा पैदा हुआ था। चलने के साथ—साथ वह बोल नहीं सकता था। उसके तीन साल के होने के साथ सिर से पिता का साया उठ गया।
अब उसकी उम्र 20 साल है। हालांकि, अभी सुनीता उन्हें अपने आपसे दूर नहीं रखती है। मां के दृढ़संकल्प और संघर्ष की वजह से बेटा पैरा धावक है। साथ ही बीए सेकंड ईयर की पढ़ाई कर रहा है। पढ़ाई के दौरान गेम्स (Games) में हिस्सा लेता है। अब दिल्ली के जवाहर लाल नेहरू स्टेडियम में 4 से 7 मई तक हुई राष्ट्रीय पैरा एथलेटिक्स चैंपियनशिप (National Para Athletics Championship) में उसने ब्रांन्ज पदक (Bronze medal) जीता है। हालांकि, वे अभी तक पैरा एथलेटिक्स की दो बार स्टेट और एक नेशनल चैंपियनशिप में हिस्सा ले चुका है।
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