लॉकडाउन में पहलवान को परिवार पालने के लिए कुली बनने की नौबत आई, 300 रुपये के लिए पीठ पर ढो रहा बोरे

कोरोना काल के कारण लाखों रुपएकमाने वाले पहलवान को अपना और अपने परिवार का पेट पालने के लिए कुली का काम करना पड़ रहा है। कुली का यह काम भी पहलवान को कड़ी मशक्कत के बाद मिला है। कांगड़ा जिला का यह नामी पहलवान बीते दो महीनों से मंडी में कुली का काम करके दो वक्त की रोटी कमा रहा है। गौर हो कि कोरोना वायरस से बचने के लिए सरकार को पूरे देश को लॉकडाउन लागू करना पड़ा।
हालांकि अब अनलॉक की प्रक्रिया पूरे देश में चली हुई है, लेकिन बहुत से ऐसे कार्यक्रम हैं, जिनके आयोजनों पर सरकार ने पूरी तरह से रोक लगा रखी है। इन्हीं में से एक है कुश्ती प्रतियोगिता। हिमाचल प्रदेश के बहुत से पहलवान ऐसे हैं, जिनकी रोजी-रोटी इन कुश्ती प्रतियोगिताओं पर ही टिकी हुई है। इन्हीं में से एक है कांगड़ा जिला के नुरपुर का रहने वाला 29 वर्षीय गोलू पहलवान उर्फ देशराज। 90 किलो भार और पांच फुट नौ इंच हाइट वाले गोलू पहलवान ने पांच वर्ष पहले पहलवानी शुरू की थी, लेकिन कोरोना के कारण जब से देश में लॉकडाउन हुआ तभी से गोलू पहलवान की पहलवानी भी लॉक हो गई।
गोलू पहलवान ने बताया कि काफी भटकने के बाद भी उसे अपने क्षेत्र में कहीं काम नहीं मिला तो वह कुली का काम करने मंडी आ गया। गोलू पहलवान मंडी में एक सरकारी गोदाम में कुली का काम कर रहा है। यहां उसे एक क्विंटल भार को ढोने के बदले में पांच रुपए मिलते हैं। इस तरह मुश्किल से वह महीने में आठ से 10 हजार कमाकर अपना और अपने परिवार का पेट पाल रहा है। मंडी में कुछ अन्य लोगों के साथ क्वार्टर शेयर करके रह रहा है, जबकि बीबी और बेटा नूरपुर स्थित घर पर ही हैं।
गोलू पहलवान के अनुसार पहलवानी से वह हर साल दो से अढ़ाई लाख रुपए कमा लेता था, लेकिन अब 8-10 हजार रुपए कमाकर गुजारा करना पड़ रहा है। गोलू पहलवान ने राज्य सरकार से गुहार लगाई है कि कुश्ती प्रतियोगिताओं पर लगे प्रतिबंध को सरकार तुरंत प्रभाव से हटाए, ताकि प्रदेश के पहलवान अपना दमखम दिखाकर रोजी-रोटी कमा सकें। उन्होंने सरकार को सुझाव दिया है कि प्रदेश में सिर्फ स्थानीय पहलवानों के बीच ही दंगल करवाए जाएं और बाहरी पहलवानों को फिलहाल न बुलाया जाए।
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