हिमाचल की सभी ईकोे टूरिज्म साइट्स बंद, जानें आख़िर क्यों हुआ ऐसा

हिमाचल सरकार के वन महकमे की ईको टूरिज्म साइट्स बंद हो गई हैं। जिन लोगों के साथ करार किए गए थे, उनको आगे नहीं बढ़ाया गया है और तुरंत प्रभाव से इनको बंद कर दिया गया है। सूत्रों के अनुसार खुद फोरेस्ट विभाग अपने ही जाल में फंस गया है। उसने अपनी ईको टूरिज्म साइट्स के लिए फोरेस्ट क्लीयरेंस नहीं ली, जिसके चलते अब इनको बंद करना पड़ गया है।
वहीं जिन लोगों के साथ पीपीपी मोड पर चलाने के लिए करार हुए, वे भी फोरेस्ट की क्लीयरेंस नहीं ले पाए। इस मामले से न केवल वन विभाग की किरकिरी हो रही है, बल्कि सरकार की भी फजीहत हुई है। शिमला के साथ लगते क्षेत्रों में ईको टूरिज्म साइट्स को प्राइवेट डिवेलपरों ने विकसित किया है, वहीं खुद वन विभाग ने भी अपनी सोसायटी बनाकर कुछ साइट्स को डिवेलप किया। वर्तमान सरकार चाहती थी कि इनको और अधिक विकसित किया जाए, मगर एफसीए का पेंच फंस गया है।
जानकारी के अनुसार प्रदेश में पांच स्थानों पर निजी उद्यमी ईको टूरिज्म साइट चला रहे थे, जिनको रोक दिया गया है। शिमला के शोघी में पीपीएम मोड पर ईको टूरिज्म साइट चल रही थी, वहीं चंबा के आयला नामक स्थान पर भी पीपीपी मोड पर ऐसी ही साइट चल रही थी। इनके अलावा सोलन जिला में तीन स्थानों पर पीपीपी आधार पर इको टूरिज्म का काम किया जा रहा था, मगर किसी के भी पास एफसीए की क्लीयरेंस नहीं थी। ऐसे में उनको काम करने से रोका गया है। इतना ही नहीं, सर्किल लेवल पर खुद वन विभाग की ईको फोरेस्ट सोसायटी भी कुछ स्थानों पर ऐसे साइट्स को चला रही थी, जिनको भी रोक दिया गया है।
सवाल यह खड़ा हुआ है कि क्या वन विभाग को पहले इसका पता नहीं था कि एफसीए की क्लीयरेंस इसमें भी जरूरी है या फिर पता होते हुए भी कैसे संचालित किया जाता रहा। बताया जाता है कि वन निगम ने भी इस तरह की साइट्स को डिवेलप कर रखा है, जिनमें से कइयों पर विवाद पहले से है। ऐसे में विभागीय वेबसाइट से भी ईको टूरिज्म साइट्स को हटा दिया गया है, जबकि इनका पूरा बखान इसमें किया जाता था। अधिकारियों का कहना है कि इस मसले पर जो फॉर्मेलिटी रह गई है, उसे जल्द पूरा कर दिया जाएगा, ताकि यहां पर ईको टूरिज्म की साइट्स दोबारा चल सके।
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