सीमावर्ती क्षेत्रों में सड़कें न होने से घोड़ों, खच्चरों पर सामग्री ढो रही सेना

सीमावर्ती क्षेत्रों में सड़कें न होने से घोड़ों, खच्चरों पर सामग्री ढो रही सेना
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भारत और चीन अधिकृत तिब्बत सीमा से सटे इलाकों में वर्षों बाद भी व्यवस्था में सुधार नहीं हो पाया है। सीमा से सटे इलाकों में सेना का बेड़ा तो बढ़ा दिया गया है, लेकिन मूलभूत सुविधाओं में कोई इजाफा नहीं हो पाया है।

भारत और चीन अधिकृत तिब्बत सीमा से सटे इलाकों में वर्षों बाद भी व्यवस्था में सुधार नहीं हो पाया है। सीमा से सटे इलाकों में सेना का बेड़ा तो बढ़ा दिया गया है, लेकिन मूलभूत सुविधाओं में कोई इजाफा नहीं हो पाया है। आईटीबीपी और सेना के जवानों को अपने बेस कैंप पहुंचने के लिए घोड़े, खच्चरों का सहारा लेना पड़ रहा है। जवानों को पीठ पर भी ढुलाई कर खाद्य व अन्य आवश्यक सामग्री पहुंचानी पड़ रही है।

सामरिक दृष्टि से महत्वपूर्ण तिब्बत सीमा से सटे सीमावर्ती क्षेत्र कुन्नोचारंग, छितकुल, नेसंग और पूह के डुबलींग ऋषि डोगरी तक सड़कों का निर्माण नहीं हो पाया है। चीन के साथ भारत के बढ़ते विवाद को देखते हुए इन दुर्गम क्षेत्रों में सड़कों का निर्माण होना बेहद जरूरी है। केंद्र और प्रदेश सरकार सहित सीमा सड़क संगठन की सीमावर्ती क्षेत्रों में सड़कों की डीपीआर बनाने की योजना कागजों और फाइलों तक ही सिमट कर रह गई है।

ऐसे में किन्नौर के इन दुर्गम क्षेत्रों की सरहदों पर तैनात भारतीय तिब्बत सीमा पुलिस बल और सेना के जवानों को आधुनिक दौर में भी अपनी पोस्टों तक सामग्री पहुंचाने के लिए जानवरों का सहारा लेना पड़ रहा है, या फिर पीठ पर ढोकर अपना सामान पहुंचाना पड़ रहा है। वहीं, सीमा सड़क संगठन के ओसी पोवारी किन्नौर डीके राघव ने कहा कि सीमावर्ती क्षेत्रों में नई सड़कें बनाने को लेकर संगठन गंभीर है। सड़कों को खोलने का हर संभव प्रयास किया जा रहा है।


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