शिमला: आईजीएमसी में कोरोना से सबसे ज्यादा मौतें, प्रदेश में अब तक 295 की जा चुकी है जान

हिमाचल प्रदेश के सबसे बड़े मेडिकल कालेज आईजीएमसी, शिमला में अभी तक कोविड संक्रमित 78 मरीज दम तोड़ चुके हैं। समर्पित कोविड अस्पताल और मेडिकल कालेज नेरचौक में भी कोविड से 65 मरीजों की मौत हो चुकी है। इसके अलावा कांगड़ा के टांडा मेडिकल कालेज में अब तक 45 मरीज इस बीमारी के उपचार के दौरान जिंदगी की जंग हार चुके हैं। इन तीनों मेडिकल कालेजों में अभी भी काफी संख्या में मरीज उपचाराधीन हैं। इनमें से कई मरीज तो गंभीर हालत में हैं। सरकार की ओर से लगातार तीनों मेडिकल अस्पतालों में सीनियर डाक्टरों को कोविड मरीजों की जांच करने को कहा जा रहा है।
प्रदेश के बड़े अस्पतालों को कोविड-19 के मरीजों को बचाने के लिए काफी संघर्ष करना पड़ रहा है। राज्य में अब तक 295 कोरोना मरीजों की मौत हो चुकी थी और इनमें से 188 कोविड संक्रमितों ने प्रदेश के तीन बड़े मेडिकल कालेजों में उपचार के दौरान दम तोड़ा है। मतलब आधे से ज्यादा मरीजों की मौत तीन मेडिकल कालेजों में हुई है। अब भी इन मेडिकल कालेजों में कोविड-19 के कई मरीज उपचाराधीन हैं।
शिमला आईजीएमसी की बात करें, तो यहां पर काफी संख्या में मरीजों का आना लगा रहता है। प्रदेश का सबसे बड़ा अस्पताल होने के कारण यहां पर प्रदेश भर से मरीज उपचार के लिए लाए जाते हैं, ऐसे में यहां पर मौत का ग्राफ भी सबसे ज्यादा है। इसके अलावा शिमला जिला भी मौत के मामलों में सबसे आगे चला गया है, क्योंकि आईजीएमसी में दर्ज होने वाली सभी मौतें शिमला जिला में ही काउंट होती हैं।
ऐसा ही हाल नेरचौक मेडिकल कालेज का भी है। यहां पर भी दो से तीन जिलों के कोविड मरीजों को उपचार के लिए भर्ती करवाया जाता है, जबकि टांडा मेडिकल कालेज में केवल कांगड़ा और आसपास के ही मरीजों को उपचार के लिए लाया जाता है। ऐसे में यहां पर कोविड से सबसे कम मौतें दर्ज हुई हैं। गौरतलब है कि इन सभी मेडिकल कालेजों में उन्हीं कोविड मरीजों को भेजा जाता है, जो गंभीर हालत में होते हैं। ज्यादा उम्र वाले मरीजों को भी उपचार के लिए अस्पताल में ही रखा जाता है। इसके अलावा जो मरीज पहले ही अन्य कई बीमारियों से ग्रसित होते हैं, इन्हें भी डाक्टरों की निगरानी में अस्पताल रखा जाता है, लेकिन इसके बावजूद कई अन्य बीमारियों से ग्रसित मरीज उपचार के दौरान दम तोड़ देते हैं। इसके अलावा सीएम जयराम ठाकुर भी कोरोना से मौतों पर चिंता जता चुके हैं।
उन्होंने कहा है कि 90 फीसदी मरीज अस्पताल पहुंचने के 24 घंटे के भीतर ही दम तोड़ रहे हैं, जिससे ऐसा लगता है कि लोग अस्पताल पहुंचने में देरी कर रहे हैं। एनएचएम के एमडी डा. निपुण जिंदल का कहना है कि सभी मेडिकल कालेजों में डाक्टर बेहतर तरीके से कोविड मरीजों का उपचार कर रहे हैं। किसी भी मरीज को बचाना ही डाक्टर की पहली प्राथमिकता होती है, लेकिन कई बार मरीज की हालत ज्यादा खराब होने से बचा पाना मुश्किल हो जाता है। इसलिए लोगों को कहा जाता है कि वे कोविड को हल्के में न लें और समय पर अस्पताल पहुंचें।
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