अब नहीं सताएगा कुल्लू-मनाली में फंसने का डर, 48 साल बाद पूरी हुई मांग

अटल टनल रोहतांग ने जनजातीय जिला लाहौल-स्पीति, पांगी किलाड़ के 40 हजार लोगों का मर्ज दूर कर दिया है। अब न तो सर्दियों के मौसम में भारी बर्फ के बीच 50 किलोमीटर पैदल चलकर रोहतांग दर्रा को पार करना पड़ेगा और न ही कुल्लू-मनाली में फंसने का डर सताएगा। साल में छह माह तक बर्फ की आगोश में रहने वाले कबायली लोगों की सभी मुसीबतों को 9.02 किलोमीटर लंबी अटल टनल रोहतांग ने दूर कर दिया है।
घाटी वासियों को सबसे अधिक आफत उस वक्त आती थी, जब बर्फ में फंसे किसी मरीज को इलाज के लिए घाटी से बाहर निकालना होता था। बेहतर स्वास्थ्य सुविधा न होने से मरीजों को इलाज के लिए घाटी के बाहर रेफर करना एक मात्र विकल्प है। ऐसे में मरीजों को सर्दी के मौसम में हेलीकाप्टर के लिए एक सप्ताह तक का इंतजार करना पड़ता था।
मगर अब घाटी के लोग छह माह की सफेद कैद से आजाद हो गए हैं। लाहौल के लोग जब चाहें अब बाहर की दुनिया का सैर सपाटा कर सकेंगे। अब उन्हें न तो हेलीकाप्टर का इंतजार करना पड़ेेगा और न ही रोहतांग की चढ़ाई चढ़ने की चिंता करनी होगी। पूर्व जिला लोक संपक अधिकारी शेर सिंह शर्मा, जन चेतना समिति के अध्यक्ष टशी अंगरूप और प्रेस सचिव रमेश विद्यार्थी का कहना है कि अटल टनल के जनजातीय लोगों के जीवन में नया बदलाव आएगा।
उन्होंने खुशी जताई कि उनके दौर में मनाली-लेह मार्ग के बीच पड़ने वाली 13050 फीट ऊंचे रोहतांग दर्रा को भेदकर टनल का निर्माण किया है। उन्होंने कहा कि 70 के दशक से चली आ रही टनल निर्माण की मांग 48 साल बाद पूरी हुई है।
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