Sunday Special: हिमाचल में यहां बसते हैं मिनी स्विट्जरलैंड, किसी स्वर्ग से नहीं हैं कम, जानने के लिए पढ़ें ये खबर

Sunday Special: हिमाचल में यहां बसते हैं मिनी स्विट्जरलैंड, किसी स्वर्ग से नहीं हैं कम, जानने के लिए पढ़ें ये खबर
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Sunday Special: हिमाचल प्रदेश (Himachal Pradesh) की खूबसूरती अन्य राज्यों से हटकर है। इस छोटे से राज्य में मिनी स्विट्जरलैंड (Mini Switzerland), छोटी काशी, मिनी ल्हासा जैसे कई नगर (Town) बसते हैं।

Sunday Special: हिमाचल प्रदेश (Himachal Pradesh) की खूबसूरती अन्य राज्यों से हटकर है। इस छोटे से राज्य में मिनी स्विट्जरलैंड (Mini Switzerland), छोटी काशी, मिनी ल्हासा जैसे कई नगर (Town) बसते हैं। यहां तक की चंबा जिले के खजियार (Khajiyar) को मिनी स्विट्जरलैंड माना जाता है, मैकलोडगंज को मिनी ल्‍हासा कहा जाता है यहां तिब्‍बती धर्मगुरु दलाईलामा (Tibetan religious leader Dalai Lama) निवास करते हैं। वहीं मंडी जिले (Mandi district) को छोटी काशी कहा जाता है, यहां छोटे बड़े बहुत सारे मंदिर (Temple) हैं। खास बात यह है कि हिमाचल की हर ऋतु में घूमने का लुत्फ लिया जा सकता है। कई स्थान ऐसे हैं जहां हर मौसम (Weather) में घूमने का अलग ही आनंद आता है।


ट्रेकिंग के शौकीनों का स्वर्ग

बर्फ से ढके पहाड़ पर साहसिक ट्रेकिंग घाटी का सबसे रोमांचक ट्रेक हाई सर पास ट्रेक है। यह नगारू नामक कैंप साइट में नगाड़े की तरह गूंजती तेज हवाओं के लिए मशहूर है। बर्फ से ढके पहाड़ों पर सर पास तक पहुंचने के लिए कोई रास्ता नहीं है। ट्रेकिंग गाइड यहां अपने जूतों को बर्फ में पीट कर एक निशान बनाता चलता है, जिन पर उनके पीछे चल रहे लोग चलते हैं। चुनौतियों से भरी इस ट्रेक में साहसिकता का आनंद लेने मई से सितंबर तक सैकड़ों ट्रेकर्स पार्वती घाटी आते हैं। इस ट्रेक का रूट कसोल-ग्रहण- पदरी-मिंग थात्च-नगारु-बिस्केरी-भंडक थात्च-बरशैनी से कसोल तक 9-10 दिन में पूरा किया जाता है।


कुल्लू-मनाली की वादियां

कुल्लू घाटी को देवताओं की भूमि भी कहा जाता है। सर्दियों में यहां की चोटियां बर्फ की सफेद चादर से चमक उठती हैं। कुल्लू में द ग्रेट हिमालयन नेशनल पार्क में भूरे भालू, हिम तेंदुए, बाघ और विभिन्न प्रकार के हिमालयी पक्षी देखें जा सकते हैं। कुल्लू जाने के लिए बस और टैक्सी आसानी से उपलब्ध होती है। हवाई मार्ग से यहां पहुंचने के लिए भुंतर एयरपोर्ट है, जो कुल्लू से मात्र तीन किलोमीटर की दूरी पर स्थित है। यूं तो यहां हर मौसम में पर्यटकों की भीड़ रहती है, लेकिन बर्फबारी के दौरान इस शहर की रौनक कुछ अधिक बढ़ जाती है। कुल्लू के बीचोंबीच रघुनाथ जी का मंदिर है। इस मंदिर में स्थापित रघुनाथ जी की मूर्ति राजा जगत सिंह ने अयोध्या से मंगवाई थी। दशहरा उत्सव पर रघुनाथ जी की शोभायात्रा के दौरान सभी देवताओं का दर्शन एक ही स्थान पर ढालपुर मैदान में किया जा सकता है। कुल्लू से करीब 20 किलोमीटर दूर नग्गर है। करीब 1400 साल तक यह कुल्लू की राजधानी रही है। यहां 16वीं शताब्दी में बने पत्थर और लकड़ी के आलीशान महल हैं जो अब होटल में बदल चुके हैं।


चंद्रखानी पास की खूबसूरती

चंद्रखानी पास रोमांचक होने के साथ एक पवित्र तीर्थ-यात्रा भी है। चल गांव के निवासी गर्मियों में इस पास पर मलाना के देव ऋषि जमलू की पूजा कर प्रसाद बांटते हैं। ट्रेक के दौरान भी आप यहां गांव वालों द्वारा स्थापित पत्थर के देवों के दर्शन कर उनकी लोक कथाएं सुन सकते हैं और बर्फ में बैठकर गरमा-गरम चाय और मैगी का लुत्फ उठा सकते हैं। यह ट्रेक जरी से शुरू होकर योस्गो-मलाना से चंद्रखानी पास पहुंचता है।


रावी नदी पर बसा चंबा शहर

रावी नदी के तट पर बसा है चंबा शहर। प्रदेश की सीमा पर बसे होने के कारण चंबा में हिमाचल के साथ-साथ पंजाब, जम्मू और जनजातीय क्षेत्र की संस्कृति का भी प्रभाव दिखता है। विरासत के तौर पर यहां की चप्पलें भी प्रसिद्घ हैं। चंबा का भूरि सिंह संग्रहालय शहर और आसपास की समृद्ध ऐतिहासिक विरासत से परिचय कराता है। चंबा जिले के उपमंडल सलूणी से 40 किलोमीटर दूर भलेई नामक गांव में प्रसिद्ध शक्तिपीठ भद्रकाली माता का मंदिर है। यह चंबा के ऐतिहासिक मंदिरों में से एक है। लक्ष्मीनारायण मंदिर मुख्य बाजार में है। मंदिर परिसर में श्री लक्ष्मी दामोदर मंदिर, महामृत्युंजय मंदिर, श्रीलक्ष्मीनाथ मंदिर, श्रीदुर्गा मंदिर, गौरी शंकर महादेव मंदिर, श्रीचंद्रगुप्त महादेव मंदिर और राधा कृष्ण मंदिर हैं।


मिनी स्विट्जरलैंड के नाम से मशहूर खजियार

मिनी स्विट्जरलैंड के नाम से मशहूर खजियार चंबा से 22 किलोमीटर दूर है। स्विट्जरलैंड के राजदूत ने यहां की खूबसूरती से आकर्षित होकर सात जुलाई,1992 को खजियार को हिमाचल प्रदेश के 'मिनी स्विट्जरलैंड' का नाम दे गए। यहां का मौसम, चीड़ और देवदार के ऊंचे-लंबे पेड़, हरियाली, पहाड़ और वादियां स्विट्जरलैंड का एहसास कराती हैं। खजियार का आकर्षण चीड़ व देवदार के वृक्षों से ढकी झील है। अंग्रेजी शासन के समय सन 1854 में अस्तित्व में आए इस पर्यटन स्थल की दूरी चंबा से 192 किलोमीटर है। डलहौजी के साथ नेताजी जी सुभाष चंद्र बोस व लेखक एवं साहित्यकार रविंद्र नाथ टैगोर जैसी महान हस्तियों का नाम भी जुड़ा है। चंबा से साठ किलोमीटर की दूरी पर धर्म मंदिर है। मान्यता है कि मरने के बाद हर व्यक्ति को इस मंदिर में जाना पड़ता है। मंदिर में एक खाली कमरा है, जिसे चित्रगुप्त का कमरा माना जाता है। कहते हैं किसी की मौत के बाद धर्मराज महाराज के दूत उस व्यक्ति की आत्मा को चित्रगुप्त के सामने प्रस्तुत करते हैं।

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