10 हजार मजदूरों की 20 करोड़ की कमाई सूदखोरों की तिजोरी से बाहर आई

विनोद त्रिपाठी . भोपाल
सूदखोरी में कर्जदार का शोषण एक महामारी की तरह बढ़ रहा है। पहले यह सब ग्रामीण क्षेत्र में ज्यादा था, लेकिन अब यह समस्या शहरों तक आ गई है। जिसमें साहूकार और कर्जदार के बीच नजदीकी संबंध होने से यह मामले तब बाहर आते हैं जब कोई व्यक्ति या परिवार अत्यधिक पीड़ित होकर आत्महत्या कर लेता है। परिवार के परिवार तक इस मामले में मिट जाते हैं। क्योंकि साहूकार दबंग होने से पीड़ित उसके खिलाफ शिकायत नहीं कर पाता। यह सार निकला है सीनियर आईपीएस पवन जैन से इस विषय पर की गई चर्चा में। आईपीएस जैन इस समय मप्र होमगार्ड के डीजी हैं, और राज्य आपदा आपातकालीन मोचन बल के भी मप्र के प्रमुख हैं। आईपीएस जैन जब सरगुजा के एसपी रहे, सीहोर और उज्जैन में पदस्थ रहे, तब इस विषय पर उन्होंने बहुत काम किए। सरगुजा में तो 10 हजार मजदूरों को कर्ज मुक्त कराया गया। साथ ही साहूकारों की तिजोरी से इन मजदूरों की 20 करोड़ की मेहनत की कमाई बाहर निकलवाई। आईपीएस जैन कहते हैं कि यह सब तथ्य ऑन रिकॉर्ड हैं।
इसलिए चर्चा की गई आईपीएस जैन से :
हरिभूमि ने भोपाल में सूदखोरी से पीड़ित परिवार द्वारा की गई सामूहिक आत्महत्या के बाद आईपीएस जैन से सूदखोरी की महामारी को मिटाने की दिशा में क्या काम होने चाहिए, इस विषय पर बात की। जिसमें उन्होंने कहा कि यह समस्या सामूहिक प्रयास से काफी हद तक कम हो सकती है। जिसमें पुलिस के साथ प्रशासन, मीडिया और सोशल वर्कर ग्रुप मिल-जुलकर काम करें तो यह समस्या मिट सकती है। इसके लिए जागरुकता अभियान चलाने से भी सफलता मिल सकती है। पुलिस को छोटी शिकायतें गंभीरता से लेकर आरोपी साहूकार के खिलाफ मजबूत केस बनाकर अदालत में पेश करने समेत पीड़ितों को सबल बनाने की दिशा में काम करने होंगे। समाज में लोगों को कानून के बारे में जानकारी देकर जागरुक करना होगा।
आखिर शुरुआत में बाहर क्यों नहीं आते सूदखोरी के मामले :
कर्ज लेने जरूरतमंद व्यक्ति अपने परिचित के साहूकार के पास ही जाता है। जबकि वह साहूकार उससे मनमाना ब्याज वसूलता रहता है। जिसके बारे में कर्जदार किसी से कुछ कह नहीं पाता। अलग-अलग क्षेत्रों के साहूकारों के ब्याज वसूलने के अलग-अलग तरीके हैं। कुछ तो ऐसे दस्तावेज रख लेते हैं कि कर्जदार बुरी तरह फंस जाता है। जब वह पूरी तरह तबाह होता है तब आत्मघाती कदम तक उठा लेता है। इसलिए इस ओर सब मिलजुलकर काम करें तो यह समस्या मिट सकती है।
आए दिन सामने आते हैं सूदखोर पीड़ितों के सुसाइड केस :
यहां बता दें कि सूदखोरी से पीड़ित होकर आत्महत्या के मामले आए दिन सामने आते हैं, लेकिन मरने वाला मरते-मरते भी नहीं बताता कि वह इसलिए सुसाइड कर रहा है। भोपाल में जो सूदखोर पीड़ित परिवार सामूहिक आत्महत्या के लिए मजबूर हुआ, उसने तो पूरे घर की दीवारों पर इस संबंध में लिखा। जबकि कई मामलों में देखा जाता है कि मरने वाला व्यक्ति दबंग साहूकार से इतना डरा हुआ रहता है कि वह मरने तक भी उसका नाम उजागर नहीं करता, उसे डर रहता है कि उसके मरने के बाद वह उसके परिवार को तंग कर सकता है। आईपीएस जैन कहते हैं कि पीड़ित इन दबंग साहूकारों के डर से पुलिस के समक्ष शिकायत करने से डरते हैं। जबकि वे पुलिस के पास आएं तो उनकी मदद समय रहते हो सकती है। इसलिए इस ओर जन जागरुकता की जरूरत सबसे पहले है।
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