MP election 2023 : 2018 का चुनाव... जिसने किया तख्तापलट

रिपोर्ट अर्पित बड़कुल
दमोह। मप्र में 18 सालों से सत्ता पर काबिज बीजेपी इस बार अपनी जीत को लेकर आश्वस्त नजर आ रही है। वजह सिर्फ इतनी है कि अपनों की नाराजगी और दलबदलू नेताओं को आगामी विधानसभा चुनाव में टिकिट देना है। तो वहीं विपक्ष खेमे ने वर्ष 2018 में आपसी अंतःकलह को लेकर भी अब सतर्कता बरती जा रही है। क्योंकि इसी अंतःकलह के चलते महज 13 महीने 3 दिन में ही कमलनाथ सरकार गिर गई थी।
सवाल तो क्या इस बार कांग्रेस के कमलनाथ बीजेपी के कमल को सत्ता में काबिज होने से रोक पाएंगे? इस सवाल का जवाब तो चुनावी नतीजे देंगे लेकिन उससे पहले यहां 56 जबेरा विधानसभा सीट के चुनावी समीकरण जान लेते हैं।
जबेरा सीट पर लोधी समाज की आबादी सबसे बड़ी संख्या में है, यही वजह है कि कांग्रेस हो या फिर बीजेपी दोनों ही दल इन्हीं दो समाज के नेताओं पर दाव आजमाते हैं। हालांकि इस सीट पर आदिवासी समुदाय का वोट भी निर्णायक साबित होता है। फिलहाल यहां भाजपा का कब्जा है और धर्मेन्द्र सिंह मौजूदा विधायक हैं।
दमोह लोकसभा के अंतर्गत ही जबेरा विधानसभा आती है जहां करीब 2 लाख वोटर हैं जो सड़क, पानी, बिजली, रोजगार जैसे मूलभूत समस्याओं के अलावा किसानों के लिए सिंचाई योजना और आदिवासियों के कल्याण के लिए लाई जाने वाली योजनाएं इस सीट पर मुख्य चुनावी मुद्दा साबित होती आई हैं।
2008 चुनाव के नतीजे
साल 2008 के विधानसभा चुनाव में कांग्रेस के कद्दावर नेता रत्नेश सालोमन को टिकट दिया और चुनाव जीते। इस बीच भाजपा की ओर से दशरथ सिंह लोधी चुनावी मैदान में थे, जिन्हें करीब 1762 मतों से हार का मुंह ताकना पड़ा। आपको बता दें इस चुनाव में गोंडवाना गणतंत्र पार्टी को करीब 17 फीसदी वोट हासिल हुए थे।
2013 में हुए चुनाव के नतीजे
साल 2013 के विधानसभा चुनाव में जबेरा सीट पर कांग्रेस के प्रताप सिंह और बीजेपी के दशरथ सिंह लोधी मैदान में थे। नतीजों में कांग्रेस उम्मीदवार प्रताप सिंह को करीब 11 हजार 500 वोटों से जीत मिली थी। तो वहीं गोंडवाना गणतंत्र और बीएसपी जैसी पार्टियां भी इस चुनाव में अपनी किस्मत आजमा चुकी थीं। तीसरे नंबर पर भारतीय शक्ति चेतना पार्टी रही जिसे करीब 5 फीसदी वोट हासिल हुए थे।
भाजपा का दामन छोड़, निर्दली चुनाव में उतरे नेता जी
2018 का विधानसभा चुनाव नजदीक था, ऐसे में भाजपा खेमे में भी बगावत के सुर उठने लगे थे। लगातार शिवराज के करीबी माने जाने वाले नेता दमोह सांसद वर्तमान में केंद्रीय मंत्री प्रहलाद पटेल से नाराजगी के चलते दूर होते जा रहे थे। नाराजगी इतनी बड़ी की भाजपा में अपनी अच्छी खासी बख्त रखने वाले बिजौरा खमरिया के राघवेंद्र सिंह उर्फ ऋषि भैया भाजपा का दामन छोड़ निर्दलीय ही चुनावी रण में उतर गए। जिन्हें करीब 21 हजार का जनमत प्राप्त हुआ। हालांकि ऋषि के चुनाव में उतरने से भाजपा को कोई लॉस नहीं हुआ था।
वहीं पार्टी की टिकिट वितरण पॉलिसी को लेकर कांग्रेस के कद्दावर नेता साथ ही 15 साल मंत्री रहे स्वर्गीय रत्नेश सालोमन के बेटे आदित्य रत्नेश सालोमन और बेटी तान्या भी नाराज़ थीं। हालांकि कांग्रेस के उम्मीदवार प्रताप सिंह लोधी ने सालोमन परिवार को खूब मनाने की कोशिश की, लेकिन सारे दांव खाली गए और पार्टी से बगावत कर आदित्य रत्नेश सॉलोमन भी चुनावी मैदान में निर्दलीय उतर गए। इस कारण कांग्रेस के लिए गॉड गिफ्ट मनी जाने वाली 56 जबेरा सीट हाथ से निकल गई और भाजपा ने अपने जीत का सहरा धर्मेंद्र सिंह लोधी के माथे बांध दिया।
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