एमपी में 5 लाख लाइसेंसी हथियारधारी, चंबल में असले से पहचान

एमपी में 5 लाख लाइसेंसी हथियारधारी, चंबल में असले से पहचान
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यूपी के बाद प्रदेश में सबसे ज्यादा बने हथियार, महाराष्ट्र, राजस्थान भी पीछे, नेता जी नहीं पत्नियों के पास हथियार, आम आदमी से ज्यादा रिटायर्ड अफसरों के लाइसेंस

भोपाल - मध्य प्रदेश अपराध हो या कई नवाचार अक्सर सुर्खियों में रहता है। फिर भला शान और रसूख में पीछे क्यों। प्रदेश में 5 लाख लाइसेंसी हाथियारधारी है और चंबल के जिलों में लगभग हर 7 वें घर में असला होता है। यही नहीं माननीय भी बदूंकधारियों में शुमार है। उनके साथ कई नेताओं की पत्नियों ने भी रिवाल्वर का लाइसेंस बनवा रखा है।

हालांकि आम आदमी से ज्यादा रिटायर्ड अफसरों को पास सबसे ज्यादा हथियार हैं। जिसमें आर्मी, पुलिस और अन्य फोर्स के साथ कई प्रशासनिक अफसर भी शामिल है। गृह विभाग की रिपोर्ट की मानें तो साल 2020 और 2021 में पिछले 10 सालों में सबसे कम आवेदन आए लेकिन साल 2022 में संख्या में बढ़ोतरी है। अगस्त तक ही 25 हजार से अधिक लाइसेंस जारी किए गए हैं। जानकारों का कहना है कि साल 2015 से 2019 तक ढाई लाख से ज्यादा लाइसेंस बनाए गए हैं लेकिन राज्य ने बैरियर लगा दिया था। दो साल पहले राज्य सरकार ने दो से अधिक लाइसेंस होने पर रोक लगा दी थी। केंद्र गृह मंत्रालय के मुताबिक यूपी में मध्य प्रदेश की तुलना में 110 प्रतिशत से ज्यादा हथियारधारी है। मध्य प्रदेश की अपेक्षा बड़े राज्य, राजस्थान, कर्नाटक और महाराष्ट्र में लाइसेंस के नियम ठोस होने की वजह से कम बनते हैं।

हथियार से बढ़े अपराध

- पुलिस अधिकारियों का कहना है कि आत्मरक्षा के लिए लाइसेंसी जारी होते हैं लेकिन एनसीआरबी के आकड़े बताते हैं कि मर्डर 45 फीसदी लाइसेंसी हथियार से ही होते हैं। ऐसे में माना जा सकता है कि हथियार की अनुमति के लिए कठिन शर्तों को बनाने की जरूरत है। 12 बोर और राइफल की अनुमति जिला कलेक्टर देते हैं, जबकि पिस्टल के लिए राज्यपाल की टिप और गृह विभाग की स्वीकृति जरूरी होती है। इसलिए 12 बोर और राइफल की तुलना में पिस्टल के लाइसेंस मध्य प्रदेश में कम बने हैं।

इन जिलों में सबसे ज्यादा लाइसेंस

- ग्वालियर

- भिंड

- मुरैना

- छतरपुर

- भोपाल

- इंदौर

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इन जिलों में सबसे कम

- श्योपुर

- शिवपुरी

- आगरमालवा

- विदिशा

- रायसेन

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