मध्य प्रदेश चर्चित ई-टेंडरिंग घोटाले के मामले में 6 आरोपी बरी, कोर्ट ने कहा - अभियोजन पक्ष आरोप साबित करने में हुआ नाकाम

भोपाल - मध्य प्रदेश के चर्चित ई-टेंडरिंग घोटाले में सभी 6 आरोपी को अदालत ने दोषमुक्त कर दिया है। अभियोजन पक्ष घोटाला साबित करने में विफल रहा। इस मामले को लेकर न्यायालय में 33 गवाहों के बयान दर्ज हुए थे। स्पेशल कोर्ट ने आरोपियों को बरी करते हुए कहा कि अभियोजन पक्ष अपने आरोप साबित करने में नाकाम रहा। खास बात है कि गुजरात की कंपनी के मालिक अबतक कोर्ट में पेश नहीं हुए है। कोर्ट ने उन्हें फरार घोषित किया है।
ई-टेंडरिंग घोटाला अप्रैल 2018 में उस समय सामने आया था जब जल निगम की 3 टेडर को खोलते समय कम्प्यूटर ने एक संदेश डिस्प्ले किया। इससे पता चला कि निविदाओं में टेम्परिंग की जा रही है। तत्कालीन मुख्यमंत्री शिवराज सिंह चौहान के आदेश पर इसकी जांच मप्र के ईओडबल्यू को सौंपी गई थी। प्रारंभिक जांच में पाया गया था कि जीवीपीआर इंजीनियर्स और अन्य कंपनियों ने जल निगम के तीन टेंडरों में बोली की कीमत में 1769 करोड़ का बदलाव कर दिया था। ई टेंडरिंग को लेकर ईओडब्ल्यू ने कई कंपनियों के खिलाफ एफआईआर दर्ज की हुई है। इस मामले में मध्य प्रदेश इलेक्ट्रानिक विकास निगम के ओएसडी नंद किशोर ब्रह्मे, ओस्मो आईटी सॉल्यूशन के डॉयरेक्टर वरुण चतुवेर्दी, विनय चौधरी, सुमित गोवलकर, एंटारेस कंपनी के डायरेक्टर मनोहर एमएन और भोपाल के व्यवासायी मनीष खरे आरोपी थे।
इस तरह हुआ फर्जीवाड़ा
- टेंडर टेस्ट के दौरान 2 मार्च 2018 को जल निगम के टेंडर खोलने के लिए डेमो टेंडर भरा गया, जब 25 मार्च को टेंडर लाइव हुआ तो पता चला कि डेमो टेंडर अधिकृत अधिकारी पीके गुरू के इनक्रिप्शन सर्टिफिकेट से नहीं बल्कि फेक इनक्रिप्शन सर्टिफिकेट से भरा गया था। बोली लगाने वाली एक निजी कंपनी 2 टेंडरों में दूसरे नंबर पर रही। कंपनी ने इस मामले में गड़बड़ी की शिकायत की। कंपनी की शिकायत पर तत्कालीन प्रमुख सचिव ने विभाग की लॉगिन से ई-टेंडर साइट को ओपन किया तो उसमें एक जगह लाल क्रॉस दिखाई दिया। जिसके बाद ईओडब्ल्यू में शिकायत के बाद एफआईआर दर्ज की गई थी।
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