मप्र से बड़ी संख्या में बालकों को चरवाहे के रूप में राजस्थान के संगठित गिरोह बंधुआ मजदूरी के लिए ले जाते है : राजपूत

भोपाल। मप्र से बड़ी संख्या में बालकों को चरवाहे के रूप में राजस्थान के संगठित गिरोह बंधुआ मजदूरी के लिए ले जाते है। करीब 1200 किलोमीटर तक फैले मप्र, महाराष्ट्र, गुजरात और राजस्थान के सीमावर्ती जंगलों में इन बाल चरवाहों को उनके माता-पिता की सहमति से काम पर लगाया जाता है। इन बाल चरवाहों को उनके अभिभावक लिखित अनुबंध कर शोषण के दलदल में धकेल देते है। जस्टिस मिशन के फेलो मुकेश राजपूत ने रविवार को यह बात चाइल्ड कंजर्वेशन फाउंडेशन की 69वीं ई-कार्यशाला को संबोधित करते हुए कही।
चाइल्ड कंजर्वेशन फाउंडेशन की कार्यशाला में देश भर के 16 राज्यों के बाल अधिकार कार्यकतार्ओं ने भागीदारी की। राजपूत के अनुसार बाल मजदूरी के मामलों में संरक्षक या अभिभावकों की सहमति विधिक रूप से मान्य नही होती है क्योंकि सहमति से अन्यत्र ले जाकर कार्य कराया जाना भी मानव तस्करी का ही हिस्सा है। मानव तस्करी वस्तुत: एक संगठित अपराध है। जिसका सशक्त नेटवर्क देश के सभी हिस्सों में कायम है। राजपूत ने विभिन्न अध्ययन का हवाला देते हुए बताया कि मानव तस्करी में बंधुआ मजदूरी, यौन शोषण, मानव अंग तस्करी, जबरिया विवाह, भिक्षा वर्त्ति जैसे विविध अपराध शामिल है। राजपूत ने बाल एवं बंधुआ मजदूरी रोकने के लिए सभी स्टेक होल्डर्स के बीच समन्वय की आवश्यकता बताई। ई-कार्यशाला का संचालन करते सीसीएफ के सचिव डॉ कृपाशंकर चौबे ने कहा कि बाल श्रम सभ्य और आधुनिक समाज की सभी उपलब्धियों पर एक बदनुमा दाग है। बचपन को बंधक बनाकर अर्जित की गई सम्पन्नता मानवीय दृष्टिकोण से बेमानी है।
महिलाओं को विवाह के लिए :
राजपूत ने बताया कि देश के जनजाति वर्गों से गरीब महिलाओं को मप्र, यूपी, महाराष्ट्र जैसे अनेक राज्यों में अनुबंध पर बहला फुसला कर विवाह के लिए लाया जाता है। इनमें 86 फीसदी महिला एवं बालिकाएं जनजाति एवं दलित वर्ग की होती हैं। उन्होंने बताया कि बंधुआ मजदूरों में भी इसी वर्ग का शोषण देश भर में जारी है।
4 करोड़ मजदूरों की स्थिति आर्थिक रूप से खराब :
राजपूत के अनुसार कोविड महामारी के बाद 4 करोड़ मजदूरों की स्थिति आर्थिक रूप से बुरी तरह खराब हुई है। 79 फीसदी मजदूरों के पास आज भी कार्य अनुरूप मजदूरी नही मिल पा रही है। अनलॉक के बाद श्रमिको की मांग तो बहुत तेजी से बढ़ी है लेकिन सब जगह सस्ती मजदूरी की मांग है। नतीजतन सस्ते श्रमिक के रूप में बाल मजदूरों एवं बन्धुओं मजदूरों की मांग बढ़ गई है।
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