शाहपुरा इलाके में फिर एक मासूम स्ट्रीट डॉग का हुआ शिकार

भोपाल। राजधानी की सड़कों पर स्ट्रीट डॉग की संख्या लगातार बढ़ती जा रही है। शुक्रवार को शाहपुरा इलाके में फिर एक मासूम स्ट्रीट डॉग का शिकार हो गया। बच्चों को काटने की बढ़ रही घटनाओं को रोकने के लिए नगर निगम शहर में तीन नए नसबंदी सेंटर पिछले डेढ़ साल से बना रहा है, लेकिन आज तक पूरे नहीं हो पाए हैं। इस बारे में जब भी नगर निगम अधिकारियों से चर्चा की जाती है, तो उनका यही कहना होता है कि स्वच्छता मिशन के तहत कार्य चल रहा है। जबकि यह पिछले साल के स्वच्छता सर्वेक्षण के तहत काम शुरू हुआ था।
नगर निगम अधिकारियों के अनुसार नए सेंटर बनाने का काम चल रहा है। इस पर करीब 65_65 लाख रुपए का खर्चा अएगा। नगर निगम के सेंटर न होने से अभी तक यह काम एनजीओ के भरौसे था, जिसके तहत 20 से 25 स्ट्रीट डॉग की रोजाना नसबंदी हो पाती थी। नए सेंटर खुलने से 200 से 250 स्ट्रीट डॉग की नसबंदी हो सकेगी, लेकिन लोगों का कहना है कि सेंटर बनने का कब तक इंतजार किया जाए। क्योंकि अब तो सड़क पर पैदल या दो पहिया वाहन पर निकलने में भी डर लगने लगा है।
रिकार्ड में 40 हजार से ज्यादा हैं स्ट्रीट डॉग
नगर निगम ने शहर में स्ट्रीट डॉग की गिनती नहीं करवाई, लेकिन संख्या दर्ज की हुई है। इसके तहत भोपाल शहर में स्ट्रीट डॉग की संख्या करीब 40 हजार है। निगम के पास है डेढ़ करोड़ का बजट अभी है, लेकिन पेट लवर के विरोध का भी सामना इन लोगों को करना पड़ता है। इस संबंध में अधिकारी मानते हैं कि डॉग स्काट अमले के पास सबसे बड़ी समस्या सेंटर न होने की है। क्योंकि कई बार एनजीओ कर्मी नहीं मिल पाते और स्ट्रीट डॉग को वापस छोड़ना पड़ता है।
सेंटर खुलने से कम होगी आबादी
स्वच्छ भारत मिशन के तहत आवारा कुत्तों के नसबंदी सेंटर का निर्माण कार्य तेजी से चल रहा है। शहर के तीन छोर में खुलने से रोजाना 200 से 250 कुत्तों की नसंबदी होगी तो इनकी संख्या कम हो सकेगी।
स्ट्रीट डॉग को पकड़ने के लिए मिल रही हैं रोजाना 60 शिकायतें
पुराने शहर के पीजीबीटी कॉलेज रोड, कोलार के दानिश हिल्स और अब शाहपुरा में स्ट्रीट डॉग के मासूमों पर हो रहे हमले के बाद भी निगम का अमला लापरवाही बरत रहा है। गली, मोहल्लों, सड़कों और तंग गलियों में कुत्तों का आंतक बढ़ रहा है। ये न सिर्फ रात के समय वाहन चालकों पर लपकते हैं बल्कि छोटे बच्चों का घर के समीप ही दुकानों पर सामान लेने जाना भी खतरे भरा है। कुत्ते अक्सर बच्चों पर लपकते हैं। ऐसा नहीं कि निगम के कॉल सेंटर पर इस मामले को लेकर शिकायतें नहीं पहुंचती।
रोजाना 40 शिकायतें दर्ज होती हैं जो अब बढ़कर 60 तक पहुंच गई हैं, लेकिन अमला एक भी स्थान पर समय पर नहीं पहुंचता। निगम के डॉग स्क्वाड अमले की लापरवाही को लेकर लोगों में गुस्सा है। एक सर्वे के अनुसार पूरे शहर में 40 हजार आवारा कुत्ते हैं। इनमें सबसे अधकि पुराने शहर के मोहल्लों, चौराहों, तंग गलियों, सार्वजनिक स्थलों यहां तक कि पार्कों और अस्पताल परिसर में घूमते नजर आते हैं। निगम के अमले पर नजर डालें तो उनके पास शहरभर से कुत्तों को पकड़ने के लिए केवल 31 कर्मचारियों की टीम है।
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