खानाबदोशों के जरिए भैरवगढ़ पहुंची बाटिक प्रिंट, आज विदेशों तक है मांग

भोपाल। उज्जैन के पास बसे भैरवगढ़ के बाटिक प्रिंट को पसंद करने वाले लोग भारत के साथ साथ विदेश में भी हैं। लगभग 5 सदी पुरानी यह कला अपनी सुंदर डिजाइनों के लिए बहुत प्रसिद्ध है। हालांकि तब इसका प्रयोग केवल खानाबदोश लोग करते थे। इस तकनीक में पिघले हुए मोम का उपयोग कर फूल और पत्तियाें की डिजाइन बनाई जाती हैं। वर्तमान में भैरवगढ़ की बाटिक प्रिंट 100 साल पुरानी मानी जाती है और इसकी मांग कई देशों में है। यही कारण है कि सरकार ने प्रयास कर इसे भी जीआई टैग दिलाया है। माना जा रहा है कि जीआई टैग मिलने से इस बाटिक प्रिंट का काम करने वाले 2500 लोगों के समृद्धि का द्वार खुल गया है। साथ ही भविष्य में अन्य कलाकारों को भी बाटिक प्रिंट की कला सिखाई जाएगी।
एक जिला एक उत्पाद में शामिल था बाटिक प्रिंट :
सरकार ने 2019 में बाटिक प्रिंट को पहचान दिलाने के लिए इसे एक जिला एक उत्पाद में शामिल किया था। इसके तहत बाटिक प्रिंट को एक्सपोर्ट के लिए तैयार किया जाना था। इसके विकास के लिए सरकार ने नए कारीगरों को प्रशिक्षण देने की तैयारी की थी। बंद हो रहे कारखानों का विकास कर इसे फिर से शुरू कराया गया था। पुराने कारीगरों से बातचीत कर उनके अनुभव के आधार पर काम शुरू किया गया था।
इस तरह तैयार होता है भैरवगढ़ प्रिंट :
भैरवगढ़ में रहने वाले 85 वर्षीय अब्दुल रहीम गुट्टी को आधुनिक बाटिक प्रिंट का जन्मदाता बताया जाता है। गुट्टी बताते हैं कि वर्तमान में बटिक का काम करने वाले ज्यादातर लोग भैरवगढ़ में ही रहते हैं। इसे बनाने के लिए मोम को पिघलाकर कपड़ों पर खास तरह से प्रिंट किया जाता है और गुट्टी का पुश्तैनी काम है। वे बताते हैं कि वर्तमान में 80 हैंडलूम भैरवगढ़ में संचालित हो रहे हैं। इसके पूर्व भी भैरवगढ़ प्रिंट के प्रचार प्रसार के लिए प्रशासन ने महाकाल मंदिर और अन्य स्थानों पर इसके स्टॉल लगाए हैं। कई कलाकारों को सरकार से मदद दिलाकर प्रिंट को फिर से शुरू कराया गया। रेलवे स्टेशन मेलों, बाजारों में भी स्टॉल लगाए गए हैं।
बाटिक प्रिंट को संरक्षित करने के लिए लगातार काम किया जा रहा है। जीआई टैग मिलने से पूरे देश में इसे पहचान मिलेगी। कारीगरों की मदद करने के लिए भी काम किया जा रहा है।
- कुमार पुरुषोत्तम, कलेक्टर उज्जैन
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