Bhopal AIIMS : इस तकनीक का उपयोग करने में मध्य भारत का पहला संस्थान बना एम्स

भोपाल। राजधानी के एम्स में प्रोस्टेट कैंसर की जांच के लिए ट्रांसपेरेनियल बायोप्सी की शुरुआत की गई है। इस तकनीक को दुनिया की सबसे उन्नत तकनीक माना जाता है। साथ ही एम्स भोपाल अब इस तकनीक के उपयोग करने में मध्यभारत का पहला संस्थान बन गया है। बुधवार को एम्स भोपाल के यूरोलॉजी विभाग में इस अत्याधुनिक तकनीक का शुभारंभ किया गया। इस मौके पर निदेशक डॉ. अजय सिंह ने बताया कि एम्स भोपाल में अब प्रोस्टेट कैंसर की जांच के लिए ट्रांसपेरेनियल बायोप्सी सुविधा मिलेगी। एम्स के यूरो सर्जन डॉ. कुमार माधवन लंदन के किंग्स कॉलेज अस्पताल में इस तकनीक का विशेष प्रशिक्षण लिया है। एम्स के यूरोलॉजी विभाग में यूरोलॉजिक कैंसर के लिए एक विशेष क्लिनिक भी है, जो प्रत्येक गुरुवार को दोपहर 2 बजे से चलाया जाता है।
लेजर से किया जा रहा पथरी का इलाज
एम्स के यूरोलॉजी विभाग ने पथरी के इलाज के लिए एक विशेष यूरीनरी स्टोन और प्रोस्टेट के लिए हाई पावर लेजर तकनीक की सुविधा भी शुरू कर दी है। इस हाई पावर लेजर की मदद से शरीर में बिना चीरा लगाए पथरी को निकाला जा सकता है। यह तकनीक उन बच्चों के लिए ज्यादा किफायती है, जिनके शरीर के अंग छोटे होते हैं।
प्रोस्टेट कैंसर के शुरुआती लक्षण
पेशाब में खून आना
बार-बार पेशाब आना
पेशाब करने पर तनाव होना
पेशाब की धारा धीमी होना
जलन महसूस होना
पेरिनियल क्षेत्र के आस पास दर्द
हड्डियों में दर्द
संक्रमण का खतरा न के बराबर
यूरोलॉजी इंचार्ज डॉ. देवाशीष कौशल ने बताया कि सामान्य बायोप्सी में निडिल को गुदा मार्ग से होते हुए प्रोस्टेट तक ले जाया जाता है। यह मार्ग लंबा होता है ऐसे में कई बार निडिल अन्य अंदरूनी अंगों में चुभ जाती है जिससे संक्रमण का खतरा बढ़ जाता है। दूसरी तरफ इस मार्ग से प्रोस्टेट के एक ही हिस्से में बायोप्सी की जा सकती है। ट्रांसपेरेनियल बायोप्सी में दो भागों में बायोप्सी की जाती है। पहला भाग प्रोब यानि दूरबीन को रेक्टम से प्रोस्टेट तक पहुंचाया जाता है। वहीं दूसरे हिस्से में निडिल को पेरेनियम (अंडकोष और गुदामार्ग के बीच का हिस्सा) के रास्ते स्किन के माध्यम से प्रोस्टेट तक ले जाते हैं। इससे निडिल का दूसरे अंगों में चुभने के मामले न के बराबर रह जाते हैं।
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