Bhopal Dakshin-Paschim Assembly Constituency: राजधानी की दक्षिण-पश्चिम सीट न कांग्रेस के लिए आसान, न भाजपा के लिए

Bhopal Dakshin-Paschim Assembly Constituency: राजधानी की दक्षिण-पश्चिम सीट न कांग्रेस के लिए आसान, न भाजपा के लिए
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प्रदेश की राजधानी भोपाल की दक्षिण पश्चिम विधानसभा भाजपा के असर वाली सीट है।

भोपाल। प्रदेश की राजधानी भोपाल की दक्षिण पश्चिम विधानसभा भाजपा के असर वाली सीट है। 1990 से अब तक हुए 7 चुनावों में पांच बार भाजपा को जीत मिली है जबकि कांग्रेस सिर्फ दो चुनाव जीत सकी। पहले 1990 एवं 1993 में भाजपा के शैलेंद्र प्रधान ने यहां से बड़ी जीत दर्ज की थी। पहला चुनाव वे 23 हजार से ज्यादा और दूसरा चुनाव 43 हजार से भी ज्यादा वोटों के अंतर से जीते थे लेकिन 1998 में उनका टिकट काट दिया गया। शैलेंद्र के स्थान पर भाजपा ने उनकी पत्नी सुहास प्रधान को चुनाव लड़ाया और वे कांग्रेस के पीसी शर्मा से 14 हजार से ज्यादा वोटों के अंतर से चुनाव हार गईं। इसके बाद भाजपा ने तत्कालीन महापौर उमाशंकर गुप्ता को टिकट दिया। उमाशंकर 2003, 2008 और 2013 में लगातार तीन चुनाव जीते। 2018 तक उनके खिलाफ एंटी इंकम्बेंसी पैदा हो गई। भाजपा के अंदर भी उनका विरोध हुआ।

इस सीट में कड़े मुकाबले के आसार

लिहाजा 2018 में भितरघात और एंटी इंकम्बेंसी के चलते वे कांग्रेस के पीसी शर्मा से चुनाव हार गए। शर्मा ने उन्हें लगभग साढ़े 6 हजार वोटों के अंतर से चुनाव हरा दिया। इस नाते पीसी शर्मा कांग्रेस के स्वाभाविक दावेदार हैं लेकिन संजय सक्सेना का भी मजबूत दावा है। पिछली बार सक्सेना को दिग्विजय सिंह ने चुनाव लड़ने से रोका था। इस बार वे मानने वाले नहीं हैं। दूसरी तरफ भाजपा से उमाशंकर फिर टिकट चाहते हैं। वे अपनी बेटी कीर्ति का नाम भी आगे बढ़ा रहे हैं। इनके अलावा राहुल कोठारी, राम दयाल प्रजापति, नेहा बग्गा, किशन सूर्यवंशी दावेदारों में शुमार हैं। हालांकि राजधानी के जातीय समीकरण के लिहाज से वैश्य समाज से ही किसी को टिकट मिलने की संभावना है। कांग्रेस और भाजपा का टिकट चाहे जिसे मिले लेकिन इस बार इस सीट में कड़े मुकाबले के आसार हैं।

कर्मचारी वर्ग निर्णायक

दक्षिण पश्चिम विधानसभा सीट को कर्मचारियों के प्रभाव वाली माना जाता है, पर जातिगत समीकरण की बात की जाए तो यहां सबसे ज्यादा दलित वोटर 55 हजार हैं। कायस्थ 32 हजार, ब्राह्मण 25 हजार, मुस्लिम 30 से 35 हजार, ओबीसी करीब 24 हजार बताए जाते हैं। इस सीट पर मुस्लिम मतदाता मात्र चार फीसदी है। दलित समाज के लोग वोट बैंक का एक बड़ा हिस्सा हैं, इसलिए ये हार-जीत प्रमुख भूमिका निभाते हैं। सरकारी कर्मचारी बाहुल्य इस सीट पर 75 प्रतिशत मतदाता सामान्य वर्ग व ओबीसी के हैं।

पुरानी पेंशन योजना मुद्दा

कर्मचारी बहुल होने के कारण दक्षिण पश्चिम विधानसभा क्षेत्र में पुरानी पेंशन योजना प्रमुख मुद्दा रहने वाली है। पेंशन योजना दक्षिण पश्चिम विधानसभा के कुछ क्षेत्रों में प्रभाव डाल सकता है। इसके अलावा बड़ी संख्या में लोग झुग्गी बस्तियों में रहते है। यहां लोगों की मूलभूत सुविधाओं को लेकर तमाम समस्याएं है। खास तौर पर आवास योजना और बेहतर सड़क की उम्मीद है। लोगों का कहना है कि कई मूलभूत सुविधाओं से अभी भी वो वंचित हैं।

पत्रकार की टिप्पणी

राजधानी की दक्षिण पश्चिम विधानसभा सीट इस बार भाजपा-कांग्रेस दोनों के लिए ज्यादा महत्वपूर्ण है। भाजपा के लिए पिछली बार की हार चौंकाने वाली थी क्योंकि भाजपा ने 2003 में सरकार बनाने के बाद भोपाल में अपनी स्थिति बहुत मजबूत की थी। 2018 में भोपाल में तीन सीट हारना एक संयोग नहीं हो सकता। भोपाल नॉर्थ भाजपा के लिए मुश्किल सीट हो सकती है पर दक्षिण पश्चिम और मध्य दोनों विधान सभा क्षेत्रों में पार्टी का हारना इस बात का संकेत था कि कैंडिडेट सिलेक्शन में पार्टी ठीक से काम नहीं कर पाई। भोपाल की राजनीति को देखते हुए यह कहा जा सकता है कि इस बार कैंडिडेट सिलेक्शन और महत्वपूर्ण कारक होगा। हालांकि एक वजह क्षेत्रीय विधायक उमाशंकर गुप्ता और सरकार के खिलाफ एंटी इंकम्बेंसी भी हार की वजह थी। इस बार फिर चुनाव इसलिए ज्यादा महत्वपूर्ण है क्योंकि इस बार सरकार के खिलाफ पिछली बार से बड़ी एंटी इंकम्बेंसी दिख रही है। भोपाल में कोई सोच नहीं सकता था कि मौजूदा दौर में भोपाल की हुजूर, गोविंदपुरा और दक्षिण-पश्चिम सीट भाजपा हार सकती है लेकिन पिछली बार ऐसा हो गया। इसलिए इस बार पार्टी ज्यादा सावधान और सतर्क है। खासकर प्रत्याशी चयन में ज्यादा सावधानी बरती जा रही है क्योंकि चेहरा ही भाजपा- कांग्रेस की हार-जीत तय करेगा। कांग्रेस में मौजूदा विधायक पीसी शर्मा के अलावा संजीव सक्सेना ही प्रमुख दावेदार हैं।

- वरिष्ठ पत्रकार , रंजन श्रीवास्तव

भाजपा की ताकत

कार्यकर्ताओं में एकजुटता

राजधानी की हुजूर, गोविंदपुरा, नरेला की तरह की दक्षिण-पश्चिम सीट भी भाजपा का गढ़ मानी जाती है। इस सीट पर भाजपा कार्यकर्ताओं में एकजुटता होने के साथ संगठन का बेहतर नेटवर्क है। वर्ष 2003 से 2013 तक इस सीट पर भाजपा का कब्जा रहा। हालांकि वर्ष 2018 में यहां से कांग्रेस को जीत मिली थी।

भाजपा की कमजोरी

कर्मचारी वर्ग नाराज

राजधानी की दक्षिण पश्चिम सीट पर सबसे ज्यादा वोटर कर्मचारी और अधिकारी वर्ग के है। पुरानी पेंशन योजना लागू नहीं होने से कर्मचारियों का एक बड़ा वर्ग भाजपा से नाराज दिखाई पड़ रहा है। इधर कांग्रेस ने कर्मचारियों को साधने के लिए सरकार बनने पर पुरानीे पेंशन योजना लागू करने की घोषणा की है।

कांग्रेस की ताकत

मतदाताओं से सीधा संपर्क

दक्षिण पश्चिम सीट पर 108 एंबुलेंस के नाम से पहचाने जाने वाले वर्तमान विधायक पीसी शर्मा का मतदाताओं से सीधा संपर्क है। वह सुख-दुख में हमेशा उनके साथ खड़़े रहते है। संजीव सक्सेना का भी लोगों से सीधा संपर्क है। यह कांग्रेस की ताकत है। कर्मचारी वर्ग के वोट लेने के लिए कांग्रेस ने पुरानी पेंशन योजना लागू करने, संविदा, आउटसोर्स, आंगनवाड़ी कार्यकर्ताओं को नियमित करने की घोषणा का रखी है, इसका लाभ कांग्रेस को मिल सकता है।

कांग्रेस की कमजोरी

अपने नेताओं से ही नुकसान संभव

दक्षिण पश्चिम सीट से वर्तमान विधायक पीसी शर्मा का चुनाव लड़ना तय माना जा रहा है। कांग्रेस नेता संजीव सक्सेना ने भी चुनाव लड़ने के लिए ताल ठोंक दी है। अगर दोनों नेताओं में सामंजस्य नहीं बैठा, तो कांग्रेस का जीतना आसान नहीं है। यह कांग्रेस के लिए सबसे बड़ी कमजोरी साबित होगी।

क्या काम हुए

सात संजीवनी क्लीनिक की शुरूआत

सुपर स्पेशलिस्ट अस्पताल बना काटजू

स्मार्ट सिटी रोड का निर्माण

प्रमुख दावेदार

भाजपा

उमाशंकर, राहुल मुख्य दावेदार

दक्षिण-पश्चिम सीट में भाजपा की ओर से उमाशंकर गुप्ता स्वाभाविक दावेदार हैं। उनके बाद राहुल कोठारी का नाम तेजी से चल रहा है। वैसे भी सामाजिक समीकरण साधने के लिहाज से भाजपा इस सीट पर किसी वैश्य को ही टिकट दे सकती है। उमाशंकर अपने स्थानी पर अपनी बेटी कीर्ति का नाम भी आगे बढ़ा रही हैं। सीट से भाजपा के अन्य दावेदारों में रामदयाल प्रजापति, नेहा बग्गा, किशन सूर्यवंशी शामिल हैं।

कांग्रेस

पीसी, संजीव के बीच मुकाबला

दक्षिण पश्चिम विधानसभा सीट के लिए कांग्रेस से दावेदारों की कमी नहीं है लेकिन मुख्य मुकाबला पीसी शर्मा और संजीव सक्सेना के बीच ही है। ज्यादा संभावना शर्मा की है और टिकट कटा तो संजीव को मौका मिल सकता है। कांग्रेस ने संजीव को 2013 में टिकट दिया था लेकिन वे उमाशंकर से 18 हजार से भी ज्यादा वोटों से चुनाव हार गए थे। इस सीट से महिला कांग्रेस की जिला अध्यक्ष संतोष कंसाना भी मुख्य दावेदार हैं।

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