भोपाल-इंदौर की पुलिस होगी प्रदेश के अन्य जिलों से ज्यादा पॉवरफुल, यहां लागू हो रही पुलिस कमिश्नर प्रणाली

विनोद त्रिपाठी- भोपाल।
मध्यप्रदेश की राजधानी भोपाल और आर्थिक राजधानी कहे जाने वाले महानगर इंदौर में पुलिस कमिश्नर प्रणाली लागू हो रही है। इसकी घोषणा रविवार को मुख्यमंत्री शिवराज सिंह चौहान ने कर दी है। इसके साथ ही पुलिस महकमे में हलचल तेज हो गई है। अफसरों से लेकर कर्मचारियों तक सब खुश हैं कि इसके लागू होने से पुलिस की पॉवर यानी ताकत बढ़ जाएगी, अधिकार बढ़ जाएंगे। हरिभूमि ने इस मौके पर प्रदेश के पूर्व डीजीपी नंदन दुबे से बात की तो उन्होंने कहा कि इस प्रणाली के लागू होने से अब कानून का राज होगा, यह जनता के लिए बहुत ही फायदेमंद साबित होगी। इस प्रणाली को लेकर जो भ्रांतियां हैं, वे भी दूर की जानी चाहिए।
पुलिस को मिलेंगे मजिस्ट्रियल पॉवर :
- भोपाल व इंदौर में लागू होने जा रही पुलिस कमिश्नर प्रणाली से यह बदलाव आएगा कि अब पुलिस अफसरों पर मजिस्ट्रियल पॉवर आ जाएंगे।
- अब पुलिस अफसर निषेधाज्ञा यानी सीआरपीसी की धारा 144 खुद लागू कर सकेंगे। इसके लिए अब वे कलेक्टर के आदेश के इंतजार में नहीं रहेंगे।
- कुछ धाराओं में आरोपियों को जमान दी जानी है कि नहीं, यह भी पुलिस कमिश्नर प्रणाली के तहत मिले पॉवर्स में तय करने का अधिकारी पुलिस अफसरों का ही रहेगा।
अफसरों ने जनता के हित में बताई प्रणाली :
- भोपाल व इंदौर महानगर में इस प्रणाली के लागू होने से वहां पुलिस कमिश्नर अब प्रशासनिक निर्णय लेने में सक्षम होंगे।
- अधिकतर अधिकारियों ने पुलिस कमिश्नर प्रणाली जनता के लिए अच्छी और अपराधियों के लिए भय पैदा करने वाली बताई है।
- अफसरों का कहना है कि पुलिसिंग काफी टाइट हो जाएगी, साथ ही पुलिस को राजस्व अफसरों के निर्णय पर निर्भर नहीं रहना पड़ेगा।
वर्तमान में क्या सिस्टम :
मध्यप्रदेश में जो पुलिस व्यवस्था है वह संभागीय पुलिस जोन में आईजी के सुपरविजन में संचालित होती है। जिनसे नीचे डीआईजी रहते हैं और जिले पर एसपी होते हैं। महानगरों में एसएसपी रखे जाते हैं, जहां उनके ऊपर डीआईजी और आईजी होते हैं। पुलिस को इस सिस्टम में मजिस्ट्रियल पॉवर नहीं है। वह किसी भी अपराधी पर कोई केस कायम करती है तो उसे वह सक्षम न्यायालय में ही भेजना पड़ता है।
क्या होता है मजिस्ट्रियल पॉवर न होने से :
जानकार अफसर बताते हैं कि जैसे किसी आदतन अपराधी को जिलाबदर करना है या किसी को रासुका यानी राष्ट्रीय सुरक्षा कानून में एक साल के लिए स्थाई रूप से जेल में रखना है तो इसके प्रकरण एसपी द्वारा कलेक्टर की ओर भेजे जाते हैं। कलेक्टर के विवेक पर निर्भर रहता है कि वह पुलिस अधीक्षक के प्रतिवेदन पर कितना गौर करके निर्णय देते हैं।
यह होता है वर्तमान प्रणाली में :
कई बार देखा गया है कि पुलिस अधीक्षक द्वारा कलेक्टर की ओर भेजे गए 20 आदतन अपराधियों के प्रकरणों में से 15 को ही जिलाबदर किया जाता है, पांच छूट जाते हैं। ये निर्णय भी लंबे समय में दिए जाते हैं, जबकि पुलिस कमिश्नर प्रणाली में अब ऐसा नहीं होगा।
पुलिस कमिश्नर प्रणाली में यह सिस्टम :
- अफसर बताते हैं कि पुलिस कमिश्नर प्रणाली में पुलिस खुद निर्णय करती है। पुलिस कमिश्नर को मजिस्ट्रियल पॉवर होते हैं कि वह आदतन अपराधियों को जिलाबदर करे या उन्हें एक साल के लिए जेल भेज दे।
- खास बात यह है कि पुलिस को पता रहता है कि अमुक बदमाश किस स्तर का है और इसके खिलाफ कितने कड़े स्तर की कार्रवाई की जरूरत है।
यह मामले खुद हैंडल करेगी पुलिस :
- पुलिस कमिश्नर प्रणाली में दंड प्रक्रिया संहिता की कुछ धाराओं जैसे 110, 151, 107-16 और अन्य एक्ट में पुलिस अपराधी को खुद जेल भेज सकेगी।
- किसी को बारूद भंडारण या पटाखे बनाने का लाइसेंस दिया जाना है तो वह एडीएम नहीं देंगे, बल्कि पुलिस कमिश्नर इसे जारी करेंगे। ऐसे ही कुछ और काम पुलिस कर सकेगी।
अंतर इसलिए है :
वर्तमान में पुलिस प्रशासनिक अधिकारियों के अधिकारों के आगे बौनी साबित हो जाती है, बदमाश इसका लाभ उठाते हैं। जबकि पुलिस कमिश्नर सिस्टम में अफसरों पर पॉवर ज्यादा रहती है, बदमाशों पर नकेल कसने में पुलिस खुद को सक्षम पाती है।
पुलिस कमिश्नर प्रणाली का स्ट्रक्चर इस प्रकार :
- महानगर में एक पुलिस कमिश्नर होते हैं, जबकि उनके नीचे एसीपी, डीसीपी होते हैं।
- डीसीपी एसपी रैंक के होते हैं। जबकि पुलिस कमिश्नर डीआईजी, आईजी और इससे ऊपर की रैंक के होते हैं।
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