Bhopal Metro News: नहीं लगाए जाएंगे ओपन वायर पोल, इस आधुनिक तकनीक से दौड़ेगी भोपाल मेट्रो

भोपाल। मेट्रो का काम भोपाल में तेज़ गति सी चल रहा है। भोपाल मेट्रो को चलाने के लिए पटरी के किनारे बिजली के खंभे नहीं लगेंगे। ओपन पोल वायर से चलने वाली भोपाल मेट्रो में नहीं रहेंगी। अत्याधुनिक बोगी रहेंगी, जिसको चलाने के लिए पटरी के साथ ही इलेकि्ट्रक लाइन रहेगी, जिसे थर्ड रेल कहा जाता है। पटरी बिछाने के साथ ही थर्ड रेल बिछाने का काम चल रहा है। भोपाल और इंदौर में मेट्रो ट्रेन पटरी में प्रवाहित करंट से संचालित होगी। इसमें खास बात यह है कि ट्रेन रुकने के दौरान ब्रेक लगाने से जो ऊर्जा बेकार हो जाती थी, अब उसका भी पुर्नउत्पादन हो पाएगा। यानि कि ट्रेन में लगने वाले ब्रेक्स से पैदा होने वाली ऊर्जा को वापस सिस्टम में भेज दिया जाएगा। इससे भोपाल और इंदौर मेट्रो के संचालन में 40 से 45 फीसदी तक ऊर्जा की बचत होगी। इसके लिए रेलवे ट्रैक पर थर्ड रेल डीसी ट्रैक्सन सिस्टम लगाया जाएगा।
दूसरा तरीका है थर्ड रेल का
मेट्रो में पावर सप्लाई के लिए दो तरीके हैं। पहला है ओएचई का, जिसका प्रयोग आम ट्रेनों के लिए भी किया जाता है। दिल्ली समेत देश के कई शहरों में मेट्रो में भी इसी का इस्तेमाल होता है। दूसरा तरीका है थर्ड रेल का , इसमें ट्रेनों की पटरियों के बराबर या बीच में एक और पटरी बिछाई जाती है। इसे कंडक्टर रेल भी कहते हैं। इसी में करंट प्रवाहित होता है। देश में बैंगलौर, कानपुर और नागपुर में पावर सप्लाई के लिए थर्ड रेल का ही इस्तेमाल किया जा रहा है। वहां यह मेट्रो की दाहिनी पटरी के समानांतर बिछाई गई है।
सम्पर्क में आने पर भी नहीं लगता करंट
अधिकारियों ने बताया कि रेलवे ट्रैक के थर्ड रेल पर सिरेमिक इंसुलेटर लगाए जाते हैं, ताकि कोई इसके सम्पर्क में आ भी जाए तो उस पर करंट का प्रभाव न पड़े। जबकि मेट्रो में करंट के लिए ट्रेन में धातु ,मेटल का एक कॉन्टैक्ट ब्लॉक होता है, जिसे कलक्टर शूज कहा जाता है। यह कलक्टर शूज उसी तरह से थर्ड रेल के संपर्क में रहता है, जैसे आम ट्रेनों के इंजन का पेंटो ओएचई से रगड़ता रहता है। कलक्टर शूज का संपर्क थर्ड रेल के ऊपर, नीचे या फिर बराबर में कहीं से भी किया जा सकता है।
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