Bhopal Uttar Vidhan Sabha : वली अहद बनाने अकील ने दांव पर लगाया राजनैतिक कॅरियर

भोपाल। राजधानी की भोपाल उत्तर से पांच बार के विधायक रहे आरिफ अकील ने अपने मंझले बेटे आतिफ अकील को वली अहद बनाने के लिए आरिफ ने राजनतिक जीवन से संन्यास ले लिया है। बताया जा रहा है कि स्वास्थ्य कारणों की वजह से उन्होंने इस बार चुनाव नहीं लड़ने का फैसला लिया है। जिसको लेकर कांग्रेस से बेटे को टिकट दिलवाया गया है।
आरिफ अकील ही विधायक बनते आ रहे हैं
हालांकि आरिफ के छोटे भाई आमिर इस सीट से दावेदारी कर रहे थे, जिसके लिए उन्होंने नामांकन फार्म भी ले लिया था, लेकिन अब वह भी किनारा कर रहे हैं। इधर, कांग्रेस नेता नासिर इस्लाम को उत्तर से टिकट देने की बात कही गई थी, जिसकी वजह से वह भी वगावती तेवर में आए, लेकिन वह भी अब ठंडे पड़ते नजर आ रहे हैं। ऐसे में आतिफ अकील के सामने खुलकर तो कोई बगावत करता नजर नहीं आ रहा है, लेकिन भितरघात का खतरा बना हुआ है। भाजपा ने यहां से भोपाल के पूर्व महापौर आलोक शर्मा को मदान में उतारा है। चूंकि उत्तर विधानसभा क्षेत्र कांग्रेस का गढ़ है। यहां साल 1998 से कांग्रेस के वरिष्ठ नेता आरिफ अकील ही विधायक बनते आ रहे हैं।
परिवार की आपसी फूट से होगा नुकसान
अगस्त 2015 में उत्तर विधानसभा में आयोजित हुए सार्वजनिक कार्यक्रम के दौरान विधायक आरिफ ने अपने उत्तराधिकारी के रूप में अपने मंझले बेटे आतिफ के नाम की घोषणा कर दी थी। अकील की इस घोषणा के साथ ही उनके परिवार की आपसी फूट जग जाहिर हो गई थी। उनके छोटे भाई और बड़े बेटे ने उत्तराधिकारी के नाम पर विरोध जता दिया था। विधायक अकील के भाई ने यह तो कह दिया था कि घुटना पेट की तरफ ही मुड़ता है, जबकि उनके बड़े बेटे ने भी मंच पर ही ताल ठोंक दी थी। फैमिली विवाद के बीच अब यहां मुकाबला रोचक नजर आ रहा है। फैमली विवाद होने से आतिफ को यहां नुकसान हो सकता है।
भाजपा के आलोक की घर-घर पैठ
भाजपा प्रत्याशी आलोक शर्मा मुख्यमंत्री शिवराज सिंह चौहान के नजदीक हैं। इस चुनाव मे मुख्यमंत्री चौहान ने भोपाल में चुनाव प्रचार अभियान की शुरूआत आलोक के ही क्षेत्र से की। उन्होंने भरोसा दिलाया कि आलोक किसी को निराश नहीं करेगा। आलोक खुद मेयर और भाजपा के जिलाध्यक्ष रहे हैं। वे चौक में रहते हैं और क्षेत्र के घर-घर में उनकी पैठ है। पार्टी कार्यकर्ताओं से भी उनके आत्मिक संबंध हैं। वह वोटर्स से बात करने में खुद के बर्रूकाट भोपाली होने की बात बार बार करते नजर आते हैं।
सहानुभूति के भरोसे आतिफ
बीमार होने के बावजूद आरिफ बेटे के लिए अपनी तरफ से वोट मांगने जाएंगे। आतिफ को उम्मीद है. कि उन्हें पिता की बीमारी के कारण पैदा सहानुभूति का लाभ जरूर मिलेगा। अपने पिता के संपर्कों पर भी उन्हें भरोसा है। इधर आतिफ को व्यवहार कुशल माना जाता है। इसका लाभ उन्हें मिल सकता है।
चार बार से कम हो रहा जीत का अंतर बढ़ा
उत्तर विधानसभा सीट पर आरिफ अकील 1990 में पहली बार निर्दलीय के रूप में 2 हजार 863 वोटों से जीते थे। इसके बाद 1992 के दंगे में भाजपा की सरकार गिरने के बाद इस सीट से भाजपा के गुट्टू भैया 9 हजार 677 वोट से जीते थे। इसके बाद 1998 से लेकर 2018 तक कांग्रेस के टिकट पर आरिफ अकील जीते है। हालांकि पिछले चार चुनावों में जीत का अंतर 16 हजार तक था, जबकि पिछले चुनाव में आरिफ ने भाजपा के टिकट पर चुनाव लड़ने वाली फातिमा सिद्दीकी को 34 हजार 857 वोटों से हराया था। इस विधानसभा में 2 लाख 45 हजार 652 मतदाता है, जिसमें 1 लाख 23 हजार 796 पुरुष और 1 लाख 21 हजार 849 महिलाएं शामिल हैं।
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