दक्षिण से ज्यादा उत्तर भोपाल की मिट्टी साॅफ्ट, भविष्य में भूकंप आया तो वेब तरंगों का ज्यादा असर

रिसर्च : आरजीपीवी के शोधार्थी रणजीत ने पहली बार भोपाल में भूगर्भीय स्थिति को लेकर किया शोध
अमित सोनी, भोपाल। विश्व में तेजी से भूंकपीय घटनाओं में इजाफा हो रहा है। भारत की सीमा से लगे नेपाल के काठमांडू में आए भूकंप की तबाही भी देख चुके हैं। भूकंप के अगर तेज झटके आते हैं तो क्या भोपाल की ईमारते उसका बल सह पाएंगी, इसको लेकर राजीव गांधी प्रौद्योगिकी विवि में पहला शोध हुआ है। जिसमंे दक्षिणी भोपाल के बदले उत्तरी भोपाल की मिट्टी कमजोर बताई गई है। उत्तरी भोपाल की सीमा से लेकर बैरसिया तक मिट्टी ज्यादा साॅफ्ट है जिसकी वजह से यहां भूकंप की वेब तरंगों को ज्यादा असर होगा।
आरजीपीवी के सिविल इंजीनियरिंग डिपार्टमेंट के शोधार्थी रणजीत जोशी ने भारतीय अंतरिक्ष अनुसंधान संगठन (इसरो) के रिमोट सेंसिंग उपग्रह कार्टोसैट-1 से भोपाल की चारों सीमाओं की मिट्टी का परीक्षण किया। परीक्षण में सतही तरंग परीक्षण( मल्टी-चैनल एनालिसिस ऑफ सर्फेस वेव्स) द्वारा भोपाल के आरजीपीवी कैम्पस, बरखेड़ी, कोलार, ईदगाह हिल्स, बेरसिया सहित विभिन्न स्थानों पर जमीन के 30 मीटर अंदर तक फील्ड एक्सपेरिमेंट की गणना की गई। भूकंप से उत्पन्न तरंगों के वेग के आधार पर लोकल साइट वर्गीकरण और विश्वविद्यालय द्वारा भूकंपीय शोध को बढ़ावा देने के उद्देश्य से सर्वे किया गया है।
भोपाल से बैरसिया के बीच नहीं लग सकते प्लांट
आरजीपीवी के शोध के मुताबिक भोपाल की उत्तरी सीमा में बैरसिया तक सरकार किसी भी प्रकार के भारी संयंत्र प्लांट को स्थापित नहीं कर सकती। भविष्य के विकास की दृष्टि से यहां भूगर्भीय स्थिति को भी ध्यान में रखा जाना आवश्यक होगा।
बी, सी और डी राॅक कैटेगरी में भोपाल का अर्थ
नेशनल अर्थक्वेक रीडक्शन प्रोग्राम द्वारा भूकंपीय स्थानीय साईट को पाँच वर्गों ए, बी, सी, डी और ई में बांटा गया है। जिसमें ए हार्ड रॉक, बी रॉक, सी सॉफ्ट रॉक या वेरी डेंस, डी स्टीफ सॉइल और ई सॉफ्ट सॉइल मानी जाती है। भोपाल की जमीन के 30 मीटर अंदर भूकंपीय वेव तरंगों की जो वेलोसिटी पाई गई उसमें पूरे क्षेत्र को रॉक, सॉफ्ट रॉक और स्टीफ मृदा में वर्गीकृत किया गया है। दक्षिणी भोपाल क्षेत्र की मिट्टी को भूकंप आने की स्थिति में सॉफ्ट सॉइल के मुकाबले अधिक सुरक्षित माना गया है। शोध में पाया गया है कि दक्षिणी भोपाली क्षेत्रों के मुकाबले उत्तरी भोपाली क्षेत्रों में भूकंप आने की स्थिति में लोकल साइट प्रभाव अधिक रहने की सम्भावना है।
टेक्टोनिक्स प्लेट से आते हैं भूकंप
विश्वभर में सात मेजर अफ्रीकी, अंटार्कटिक, यूरेशियन, इंडो-ऑस्ट्रेलियाई, उत्तरी अमेरिकी, प्रशांत और दक्षिण अमेरिकी और कई माइनर प्लेट्स हैं जिनके टकराव के कारण भूकंप उत्पन्न होते हैं। भारतवर्ष की सर्वाधिक भूकंपीय गतिविधियाँ इंडो-ऑस्ट्रेलियाई प्लेट के यूरेशियन प्लेट से टकराव के कारण देखी जाती है। यह मूवमेंट बहुत स्लो होता है। लगभग 2 से 5 सेंटीमीटर प्रति वर्ष की गति से होता है जो नाखून उगने की गति के बराबर होता है।
कब-कब आए खतरनाक भूकंप
हिस्टोरिकल भूकंप रिकॉर्ड के अनुसार 3.5 से 6 रेक्टर तीव्रता के भूकंप वर्ष 1993 लातूर-किल्लारी, वर्ष 1997 जबलपुर और 2001 भुज में आया था। सम्पूर्ण भारत को टेक्टोनिक प्लेट दो भागों में बंटी हुई हैं। पहला सक्रिय इंटरप्लेट क्षेत्र और दूसरा स्थिर महाद्वीपीय क्षेत्र जिसमें मध्यप्रदेश स्थिर महाद्वीपीय क्षेत्र के अंतर्गत आता है इसलिए यहाँ उच्च तीव्रता वाले भूकंप बहुत कम आते हैं।
भविष्य के विकास के लिए कारगर
भूंकप की स्थिति जानने के लिए मध्यप्रदेश में सिर्फ आरजीपीवी के पास ही यंत्र उपलब्ध है। दिल्ली आईआईटी इस पर ज्यादा काम करता है। हमने पहली बार इस तरह का यंत्र की मदद से भूगर्भीय स्थिति जानने की रिसर्च की है जो भविष्य के विकास के लिए कारगर होगी।
- रणजीत जोशी, शोधार्थी, सिविल इंजीनियरिंग डिपार्टमेंट
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