जब सब था बंद तक 200 से ज्यादा परिवारों तक पहुंचाई किताबें

भोपाल। लॉकडाउन में एक ऐसा समय देखने को मिला जब लोग खाने तक को मोहताज हो गए थे तपती दोपहरी में नंगे पैर सड़कों पर चलते मजदूर तो वहीं दूसरी ओर राशन और पैसे की कमी से जूझते परिवारों का दर्द भी सभी ने देखा लेकिन इनमें कई ऐसे भी सामाजिक कार्यकर्ता निकले जिन्होंने इनकी हर संभव मदद की और मुसीबतजदा और जरूरतमंद लोगों की मदद के लिए न सिर्फ सड़कों पर निकले, बल्कि घर-घर राशन व जरूरी सामान मुहैया भी कराया। लेकिन हरिभूमि ने तलाशे एक ऐसे शिक्षक को जिन्होंने लॉकडाउन में दिया शिक्षा का दान। जी हां कोलार के मंदाकिनी में रहने वाले एक शिक्षक और एक छात्र ने मिलकर किताबें मुहैया कराने का काम शुरू किया। जब सब कुछ बंद था तब अपने दोस्तों, परिचितों से किताबें एकत्र कर उन बच्चों और परिवारों तक पहुंचाने का काम किया जो निचले तबके के थे या किताबें नहीं खरीद सकते थे और वे पढ़ना चाहते थे। शुरूआत में उन्हें यह काम करने में खासी दिक्कतें आईं। लेकिन बाद में सोशल मीडिया के द्वारा उनका यह प्रयास सफल रहा और अधिक से अधिक लोगों तक जानकारी पहुंचने से उनके पास हर कक्षा की किताबें लोग मुहैया करा रहे हैं और यह किताबें वे जरूरतमंदों तक पहुंचाते हैं।
परिवार की आर्थिक तंगी के कारण बच्चों की पढ़ाई न रुके
किताबें मुहैया कराने की मुहिम से जुड़े स्टूडेंट चंदन मिश्रा ने बताया कि कोरोना ने आर्थिक स्थिति पर बहुत प्रभाव डाला था, कई परिवार ऐसे थे जिनके पास खाने तक को पैसे नहीं थे ऐसे में उनके बच्चे पढ़ने के लिए पुस्तकें कहां से लाते। लिहाजा हमनें अमितेश मिश्रा जो शिक्षक हैं उनकी मदद से ऐसे परिवारों और छात्रों तक किताबें पहुंचाने का बीड़ा उठाया। जिसमें हमारा सोचना था कि परिवार की आर्थिक तंगी के कारण बच्चों की पढ़ाई न रुके।
200 से ज्यादा परिवारों तक पहुंचाई किताबें
दोनों गुरु शिष्य ने मिलकर अब तक 200 से ज्यादा परिवारों और 400 से ज्यादा जरूरतमंद स्टूडेंट्स को किताबें पहुंचा चुके हैं। इसके लिए वे अलग-अलग बस्तियों, स्कूलों में संपर्क करते हैं। कक्षा-1 से लेकर 12 वीं तक के अलावा उच्च शिक्षा की किताबें भी वे मुहैया करवा रहे हैं।
कैंप लगाकर भी करते हैं किताबें वितरित
दोनों सदस्यों ने अब ऐसे लोगों से संपर्क करना शुरू कर दिया है जिनकी पढ़ाई पूरी हो चुकी है और किताबें अगर वे डोनेट कर सकते हैं तो उन तक पहुंचा दें ताकि वे जरूरतमंदों के काम आ सकें। अब लोगों ने अपनी किताबें भी पहुंचाना शुरू कर
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