Lagging India : टूटे पड़े विद्यालय, घरों में पढ़ा रहे शिक्षक

रिपोर्ट अविनाश दुबे
अनूपपुर। यूं तो सरकारें विकास के लाख दावे करती है पर जमीनी हकीकत कुछ और ही बयाँ करती है। शिक्षा का मंदिर कहे जाने वाले स्कूलों की हालत दयनीय है। नौनिहाल कहीं पेड़ की छांव में पढ़ाई करने को मजबूर हैं तो कहीं जर्जर भवनों में पढ़ाई करते नज़र आते है। आलम तो यह भी देखने को मिला कि विद्यालय के भवन खंडहर में बदल चुके हैं। ये तस्वीरें आजादी के 76 वर्ष बाद की है, जिन्हें देख कर अंदाजा लगाया जा सकता है कि अब तक कितना विकास हुआ है।
ताजा मामला है मध्यप्रदेश के अनुपपुर जिले का जिसे आदिवासी बाहुल्य क्षेत्र के नाम में भी जाना जाता है। जिले में कुल 1149 आगनबाड़ी केंद्र हैं। जिसमें 82 आंगनबाड़ी केंद्र भवन विहीन हैं। जिसमें 47 भवनों को स्वीकृत मिल चुकी है, पर 31 केंद्र को भवन की आवश्यकता है। तो दूसरी तरफ़ जिले में कक्षा 1 से 8 के लिए 1211 स्कूले हैं। जिनमे लगभग 70 से 72 विद्यालय भवन जर्जर स्थिति में हैं। 7 से 8 स्कूल अन्य स्थानों पर लग रहे हैं। कुछ भवनों के लिए स्वीकृति भी मिली चुकी है।
पेड़ की छांव के नीचे शाला
पुष्पराजगढ़ विधानसभा क्षेत्र में फरहदा के कानूटोला, और माँझेटोला, दो ऐसे स्कूल हैं जिनके भवन जजर्र और खंडहर में तब्दील होने के चलते शिक्षक अपने ही घरों को अब स्कूल बना चुके हैं। दूसरी तरफ परसेल कलां में आंगनबाड़ी भवन ही आज तक नहीं बना। मासूम पेड़ की छांव के नीचे या माध्यमिक शाला के अतिरिक्त भवन के बरामदे में ही पढ़ाई करते हैं। सरकारे बदलती रहीं पर तस्वीरें आजादी के 76 साल बाद भी नहीं बदली ऐसी मजबूरी को "मजबूरी की पाठशाला" कहना गलत नहीं होगा।
नहीं है विकल्प
वर्तमान वर्ष में शिक्षण सत्र की शुरुआत हुए 2 माह बीत गए हैं। मध्य प्रदेश के अनूपपुर जिले में शिक्षा विभाग की कड़वी सच्चाई सामने आई है। हालात ऐसे जो शर्मिंदगी से सर झुकाने को मजबूर कर दें। जिले में अधिकतर शासकीय स्कूल, आंगनबाड़ी भवन जजर्र स्थित के साथ बिना भवन अब भी संचालित हो रहे हैं। जिम्मदारों की लापरवाही के चलते इस तरह की तस्वीरें सामने आ रही हैं जिसे नकारा नहीं जा सकता। ऐसे में जब परसेलकला आगनबाड़ी केंद्र की बात करें तो आंगनबाड़ी संचालित होते हुए कई वर्ष बीते गए पर भवन की चिंता किसी ने नहीं की। तो दूसरी ओर क़ानूटोला, माझेटोला की बात करें तो भवन जजर्र हुए सालों बीत गए परेशानिया रोड़ा बनकर सामने खड़ी हैं पर, विकल्प किसी के पास नहीं है, आखिर क्यों है ऐसे हालात?
पुष्पराजगढ़ विधानसभा क्षेत्र ही नहीं सम्पूर्ण जिले के ऐसे ही हालात बने हुए हैं। बहरहाल सरकारी नुमाइंदों के साथ सरकारें भी अश्वाशन की डीगें हांक कर मामले से किनारा कर रही हैं। ऐसे में देश का भविष्य कहे जाने वाले इन मासूमों को कब बेहतर सुविधा मिल पाएगी यह कह पाना भी मुश्किल है। स्कूलों की इस दयनीय स्थिति को लेकर प्रशासनिक अधिकारियों का कहना है कि जीर्ण-शीर्ण विद्यालयों के नवीन भवन के लिए प्रस्ताव भेजा जा चुका है।
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