भ्रष्टाचारी के खिलाफ जांच में विरोधाभास! आबकारी के एसिस्टेंट कमिश्नर को पूर्व डीजी ने दी क्लीनचिट, लोकायुक्त डीजी मकवाना ने खोली दी फाइल, केंद्रीय जांच को करना पड़ा हस्तक्षेप

विवेक पाण्डेय, भोपाल।। लोकायुक्त में भ्रष्टाचारी के खिलाफ जांच में अफसरों के बीच विरोधाभास की स्थिति बन गई है। आबकारी विभाग के एसिस्टेंट कमिश्नर को पूर्व डीजी संजय राणा ने क्लीनचिट दी थी। अब मौजूदा डीजी कैलाश मकवाना ने फिर से फाइल खोल दी है। इसके पीछे की वजह है कि लोकायुक्त ने जिस अधिकारी को क्लीनचिट दी थी। इस मामले की एफआईआर और केस डायरी ईडी ने मांगी है। केंद्रीय जांच एजेंसी को इस मामले में हस्तापेक्ष करना पड़ा है।
वहीं आय के अधिक संपत्ति के मामले में सहायक आबकारी आयुक्त आलोक खरे के खिलाफ लोकायुक्त के बाद अब ईडी भी जांच करने की तैयारी कर रही है। ईडी ने लोकायुक्त डीजी कैलाश मकवाना को पत्र लिखते हुए एफआईआर मांगी है। ईडी आलोक खरे के खिलाफ मनी लाड्रिंग एक्ट के तहत मामला दर्ज कर जांच करेगी। इससे पहले लोकायुक्त ने छापेमारी कर पति और पत्नी दोनों को ही आरोपी बनाया था लेकिन अबतक खरे के खिलाफ कोई विभाग ने एक्शन नहीं लिया। सिर्फ इंदौर से हटाकर भोपाल कैंप में अटैच किया गया है। दरअसल, साल 2019 में लोकायुक्त ने शिकायत के आधार पर इंदौर में पदस्थ आबकारी विभाग के अधिकारी के 5 ठिकानों में छापेमारी की थी। हालांकि इस कार्रवाई की जानकारी पहले से ही अधिकारी के पास थी। लोकायुक्त को सूचना थी कि 1 करोड़ रुपए नगद घर में है लेकिन इससे पहले ही काफी रकम गायब हो गई। छापेमारी के दौरान लोकायुक्त को सिर्फ21 लाख रुपए नगद मिले थे। हालांकि जांच में खुलासा हुआ है कि 90 लाख रुपए की आय से 25 करोड़ से ज्यादा की संपत्ति मिली थी। जिसके बाद लोकायुक्त अधिकारी की पत्नी को भी आरोपी बनाया है। ईडी ने जुड़े हुए सूत्रों का कहना है कि आलोक खरे ने लाखों रुपए सीए को सिर्फ सलाह लेने के लिए दिया था। आशंका है कि पैसे की हेरफेरी के लिए सीए की मदद ली गई होगी। इसलिए अधिकारी के खिलाफ मनी लाड्रिंग एक्ट के तहत जांच करने की जरूरत है। वहीं लोकायुक्त के जांच से जुड़े अधिकारी ने बताया कि आरोपी को बचाने के लिए विभाग की तरफ से भी मौका दिया जा रहा है। यही वजह है कि ईडी भी संपत्ति और करोड़ों रुपए के ट्रांजेक्शन के मामले में जांच के लिए एफआईआर और जांच की जानकारी मांगी है। ईडी ने साफ किया है कि मनी लांड्रिंग के मामले में आरोपी से पूछताछ करने की जरूरत भी है। इसके अलावा चार्जशीट की कापी भी मांगी गई है। जिससे यह स्पष्ट हो सके कि लोकायुक्त ने जांच में क्या-क्या तथ्य पेश किए हैं।
क्लीनचिट पर पूर्व डीजी की भूमिका पर सवाल
- आय से अधिक संपत्ति के मामले में पूर्व डीजी संजय राणा ने क्लीनचिट दी थी। इस मामले में राणा की भूमिका पर सवाल उठ रहे हैं। आबकारी विभाग के एसिस्टेंट कमिश्नर आलोक खरे को फिर से जांच के दायरे में रखा जा सकता है। क्योंकि यदि ईडी ने पहले कार्रवाई शुरू कर दी तो लोकायुक्त की जांच व्यवस्था पर सवाल खड़े हो जाएंगे। सूत्रों ने बताया कि इस मामले में कैलाश मकवाना ने तत्कालीन विवेचक को भी तलब किया है। इसके पीछे की वजह है कि आखिर किन कारणों की वजह से क्लीनचिट पूर्व डीजी ने दी थी। जबकि छापेमारी में आय से अधिक संपत्ति बरामद हुई थी।
सेक्शन 50 के तहत जारी किया समन
- अधिकारियों ने बताया कि आरोपी के खिलाफ लोकायुक्त को जानकारी मांगने के लिए सेक्शन 50 का प्रयोग किया गया है। इसके तहत ईडी को अधिकार है कि समन, जांच से जुड़े हुए दस्तावेज और सबूतों को अन्य एजेंसी से मांगा जा सकता है। इसके प्रयोग के लिए डायरेक्टर, ज्वाइंट डायरेक्टर, डिप्टी डायरेक्टर, एडिशनल डायरेक्टर के पास पावर होते हैं।
150 करोड़ की संपत्ति के दस्तावेज
- लोकायुक्त से जुड़े सूत्रों ने बताया कि विभाग के पास छापेमारी के दौरान 150 करोड़ रुपए की संपत्ति के दस्तावेज मिले थे। दो फार्म हाउस, लग्जरी लाइफ से जुड़ी हुई संपत्ति भी मिली थी। आंकलन किया गया तो 150 करोड़ रुपए की संपत्ति होने की आशंका थी लेकिन विवेचना के बाद केस डायरी तैयारी करने में लापरवाही बरती गई है। जिसके चलते लोकायुक्त की जांच के बाद ईडी ने हस्ताक्षेप किया है।
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