MP News : अंधविश्वास में डूबा परिवार, बच्चे के शरीर को जलाया 51 बार

MP News : अंधविश्वास में डूबा परिवार, बच्चे के शरीर को जलाया 51 बार
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एक अंधविश्वास के चलते कई मासूम बच्चों को गर्म सलाखों से दागा गया है। इस रोग से छुटकारा दिलाने वाले अंधविश्वास का नाम है 'डॉम'।

शहडोल। सदी आगे बढ़ती जा रही है, शहरों में भी भारी मात्रा में विकास हो रहा है, लेकिन अब भी भारत में कई ऐसे गांव हैं जहां कुंद मानसिकता का विस्तार है। इसी विस्तार के चलते आज भी भारत में कई कुप्रथाएं और अंधविश्वास प्रचलित हैं। इन्हीं में से एक अंधविश्वास के चलते कई मासूम बच्चों को गर्म सलाखों से दागा गया है। इस रोग से छुटकारा दिलाने वाले अंधविश्वास का नाम है 'डॉम'। शहडोल जिले के एक आदिवासी बाहुल्य गांव में 10 से ज्यादा बच्चों को इस अंधविश्वास के चलते गर्म सलाखों से दागा गया है। आदिवासियों का मानना है कि इससे बच्चों का स्वास्थ्य ठीक हो जाता है। लेकिन इसके विपरीत शहडोल के मेडिकल कॉलेज में एक बच्चे को गंभीर हालत के चलते भर्ती कराया गया है। कारण यही अंधविश्वास है।

दूधमुंहे बच्चे को दागा

मामला जिले के जनपद पंचायत सोहगपुर के गांव हरदी का बताया जा रहा है। दरअसल एक व्यक्ति ने शहडोल के मेडिकल कॉलेज में अपने डेढ़ माह के दूधमुंहे बच्चे को भर्ती कराया है। बच्चे के शरीर पर कई सारे गर्म सरिए से दागे जाने के निशान हैं। पिता से इस बारे में जानकारी लिए जाने पर उसने बताया कि बच्चे का डॉम किया गया है। बच्चे के शरीर पर जब निशानों पर गौर किया गया तो उसके शरीर पर 51 जगह गर्म सरिए से दागे जाने के निशान दिखाई दिए। डॉम किए जाने का यह पहला किस्सा नहीं है। इससे पहले 10 से अधिक इसी तरह के केस सामने आ चुके हैं।

क्यों किया बच्चे का 'डॉम'

इस निर्दयता किये जाने का कारण पिता प्रदीप से पूछा गया। असल में बच्चे को निमोनिया हुआ था। हालांकि पिता को नहीं पता था कि यह निमोनिया है, उसके अनुसार बच्चे को सांस लेने में तकलीफ हो रही थी। साथ ही तबियत भी खराब है। इसके इलाज के लिए बच्चे के पिता के परिजनों ने डॉम किए जाने की सलाह दी थी। पिता ने भी इस अंधविश्वास पर भरोसा कर लिया और डॉम किए जाने की हामी भर दी। पिता ने बताया कि इसके बाद बच्चे का डॉम किया गया। जाहिर है बच्चे को इससे लाभ नहीं हुआ और उसके हालात जस के तस ही रहे। हालात में सुधार न होने पर भी अंधविश्वास में लिप्त परिजनों को समझ नहीं आया। उन्होंने फिर से बच्चे का डॉम करवाया, लेकिन इस बार हालात पहले के मुकाबले और ज्यादा बिगड़ गए। बच्चे के गंभीर हो जाने पर आनन-फानन में उसे शहडोल के मेडिकल कॉलेज लाया गया। यहां डॉक्टरों ने मासूम की बीमारी का इलाज करना शुरू कर दिया। हालांकि इस निर्दयता के कारण बच्चा हॉस्पिटल में जिंदगी और मौत से जंग लड़ रहा है।

कैसे किया 'डॉम'

शहडोल के ग्रामीण आदिवासी अंचल में यह एक प्रथा है, अंधविश्वास है। यह एक ऐसी रूढ़िवादिता है जिसमें बिमार अबोध बच्चे पर अत्याचार किया जाता है। यदि कोई बच्चा बीमार है तो उसे एक ओझा के पास लेकर जाया जाता है। जो मासूम को शरीर में हर जगह सुई या किसी सलाखा को गर्म कर जलाने के निशान बनाता है। इस गर्म धातु की सुई या सलाखा को बच्चे के पूरे शरीप पर कुल 51 बार चिपकाया जाता है। इसी दर्दनाक और अपनी छाप छोड़ देने वाले कृत्य को डॉम कहा जाता है। इनका मानना है कि इससे बच्चे का स्वास्थ्य ठीक हो जाता है। हालांकि यह केवल एक रूढ़िवादिता है। इससे कोई लाभ नहीं होता। यह प्रथा केवल एक कष्टदायक प्रथा है।

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