पिछले 30 वर्षों से हर वर्ष नवरात्रि पर होती है चैतन्य देवियों की आराधना, प्रजापिता ब्रह्माकुमारी ईश्वरीय विश्वविद्यालय भोपाल करता है आयोजन

पिछले 30 वर्षों से हर वर्ष नवरात्रि पर होती है चैतन्य देवियों की आराधना, प्रजापिता ब्रह्माकुमारी ईश्वरीय विश्वविद्यालय भोपाल करता है आयोजन
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प्रजापिता ब्रह्माकुमारी ईश्वरीय विश्वविद्यालय भोपाल द्वारा पिछले 30 वर्षों से अधिक समय से नवरात्रि के पावन पर्व पर प्रतिवर्ष चैतन्य देवियों की झांकियां लगाई जाती है। इन झांकियों में पवित्र कन्याओं को देवियों के रूप में सजाया जाता है |

भोपाल। हमें नवरात्रि पर्व में देवियों की झांकी केवल देखना नहीं है, बल्कि अपने अंदर झांक कर भी देखना है कि हमारे अंदर कोई विषय विकार, कोई कमजोरियां विद्यमान तो नहीं है? यदि हमारे अंदर कोई भी अवगुण हैं तो हम मां दुर्गा से शक्तियां लेकर इस नवरात्रि पर उन कमी कमजोरी, दुर्गुणों, एवं विषय विकार को दूर करने का संकलन लें | प्रजापिता ब्रह्माकुमारी ईश्वरीय विश्वविद्यालय भोपाल द्वारा पिछले 30 वर्षों से अधिक समय से नवरात्रि के पावन पर्व पर प्रतिवर्ष चैतन्य देवियों की झांकियां लगाई जाती है। इन झांकियों में पवित्र कन्याओं को देवियों के रूप में सजाया जाता है | नवरात्रि का आध्यात्मिक रहस्य बताते हुए बीके रीना ने बताया कि भारत में परम्परागत तरीके से नवरात्र मनाया जाता है। नवरात्र का भावनात्मक अर्थ है दुर्गा के नौ रूपों की नौ दिनों तक पूजा-अर्चना और नवरात्र का आध्यात्मि अर्थ है नव या नए युग में प्रवेश करने से ठीक पहले की ऐसी घोर अंधियारी रात्रि, जिसमें शिव, अवतरण लेकर मनुष्यात्माओं के पतित अवचेतन मन (कुसंस्कार) का ज्ञान अमृत द्वारा तरण (उद्धार) कर देते हैं। अवतरण अर्थात्‌ अवचेतन का तरण। ऐसी तरित-आत्माएं फिर चैतन्य देवियों के रूप में प्रत्यक्ष हो कर कलियुगी मनुष्यों का उद्धार करती हैं। इस प्रकार पहले शिवरात्रि होती है, फिर नवरात्रि और फिर नवयुग आता है। माँ दुर्गा को शिव-शक्ति कहा जाता है। हाथ में माला भी दिखाते हैं। माला परमात्मा के याद का प्रतीक है। जब परमात्मा को याद करेंगे तो जीवन में सामान करने की शक्ति, निर्णय करने, सहन करने, सहयोग करने इत्यादि अष्ट शक्तियां प्राप्त होती हैं। इसलिए दुर्गा को अष्ट भुजा दिखाते हैं। इस तरह नौ देवियों की आध्यात्मिक रहस्यों को धारण करना ही नवरात्रि पर्व मानना है। वर्तमान समय स्वयं निराकार परमपिता परमात्मा इस कलियुग के घोर अंधकार में माताओ -कन्याओं द्वारा सभी को ज्ञान देकर पिर से स्वर्ग की स्थापना कर रहे हैं। परमात्मा द्वारा दिए गए इस ज्ञान को धारण कर अब हम ऐसी नवरात्रि मनाएं जो अपने अंदर रावण अर्थात्‌ विकार है, वह खत्म हो जाये, मर जाये। यही है सच्चा-सच्चा दशहरा मानना। ऐसा दशहरा मनायें ,तब ही दीवाली अर्थात्‌ भविष्य में आने वाली सतयुगी दुनिया के सुखों का अनुभव कर सकेंगे। इसलिए हे आत्माओ ! अब जागो, केवल नवरात्रि का जागरण ही नहीं करो बल्कि इस अज्ञान नींद से भी जागो। यही सच्ची-सच्ची नवरात्रि मानना और जागरण करना है ।


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